सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में ‘मीडिया ट्रायल’ को लेकर आपत्ति जताई है. मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल से ‘न्याय का प्रशासन’ प्रभावित हो रहा है. साथ ही आपराधिक मामलों में पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से आरोपी के बारे में संदेश जाता है कि उसने ही अपराध किया है.
पीठ ने कहा कि 'मीडिया ट्रायल' व्यक्ति की निजता का उल्लंघन भी कर सकता है. बुनियादी स्तर पर बोलने और अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार मीडिया द्वारा विचारों, समाचारों को चित्रित करने और प्रसारित करने के अधिकार दोनों के संदर्भ में शामिल है लेकिन हमें 'मीडिया ट्रायल' की अनुमति नहीं देनी चाहिए.
शीर्ष कोर्ट ने गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वो आपराधिक मामलों में पुलिस कर्मियों को मीडिया ब्रीफिंग के बारे में विस्तृत दिशानिर्देश जारी करे. मंत्रालय को एक विस्तृत मैनुअल तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एक तरफ लोगों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है. वहीं, दूसरी तरफ आरोपी के निजता के अधिकार का भी सम्मान करना ज़रूरी है. साथ ही जांच के दौरान अहम सबूतों का खुलासा होने पर जांच भी प्रभावित हो सकती है. कोर्ट ने कहा कि जिस आरोपी के आचरण की जांच चल रही है वह भी पुलिस द्वारा निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच का हकदार है.
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सभी राज्यों के शीर्ष पुलिस अधिकारी (डीजीपी) और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को एक महीने के भीतर गृह मंत्रालय को सुझाव देने का आदेश दिया गया है. वहीं, गृह मंत्रालय को तीन महीने के भीतर पुलिस कर्मियों को मीडिया ब्रीफिंग के बारे में विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने को कहा गया है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है. जिसमें 2017 में सरकार से पुलिस द्वारा मीडिया ब्रीफिंग के लिए मानदंड तय करने को कहा गया था. इस मामले पर अगली सुनवाई जनवरी, 2024 के दूसरे सप्ताह में होगी.
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