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अनमोल प्रितम

चरखी दादरी: दलितों के श्मशान के रास्ते में सवर्णों की दीवार

हरियाणा के चरखी दादरी के रानिला गांव में दो समुदायों की बीच विवाद बढ़ता जा रहा है. विवाद की वजह गांव का श्मशान घाट है. दरअसल दलित समुदाय का आरोप है कि गांव के तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने जानबूझकर दलितों के श्मशान घाट जाने के रास्ते में दीवार खड़ी कर दी है, ताकि दलित समुदाय श्मशान का प्रयोग न कर सकें.

बता दें कि जुलाई महीने में सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी वायरल हुआ था. वीडियो में रानिला गांव के दलित समुदाय के लोग श्मशान घाट में बनाई गई दीवार फांदकर एक महिला की अर्थी ले जा रहे थे.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए 30 वर्षीय पवन कुमार कहते हैं, “10 जुलाई को जब हम अपनी दादी की अर्थी लेकर श्मशान घाट पहुंचे, तो हमने देखा कि रास्ते में दीवार खड़ी कर दी गई है. मजबूरन हमें दीवार फांदकर अर्थी ले जानी पड़ी. हमारा श्मशान रास्ते के अंत में पड़ता है और ब्राह्मण और राजपूत समुदाय का श्मशान घाट हमसे पहले पड़ता है. इसलिए इन लोगों ने रास्ता रोकने के लिए जानबूझकर दीवार खड़ी कर दी ताकि हम परेशान होकर होकर श्मशान छोड़ दें."

रानिला गांव में अलग-अलग जातियों के अलग-अलग श्मशान घाट हैं. श्मशान घाट पर राजपूत समुदाय का एक मंदिर भी है. मंदिर के सामने ब्राह्मण समुदाय और राजपूत समुदाय का श्मशान है. दोनों श्मशान घाट और मंदिर के बीच से एक पक्का रास्ता दलित समुदाय के श्मशान घाट तक जाता था, जिसे अब दीवार बनवाकर बंद कर दिया गया है.

रानिला गांव के ही 58 वर्षीय सुरेश ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “दलित समुदाय उक्त रास्ते का उपयोग पीढ़ियों से कर रहा है. ये सब वोट की राजनीति है. अगर इनको वोट दिया जाए तो रास्ता आज ही खुल जाएगा."

वहीं श्मशान घाट पर स्थित मंदिर के बारे में सुरेश कहते हैं, “ये कोई मंदिर नहीं है, और कोई सती नहीं है. इसे जबरदस्ती बढ़ावा दिया जा रहा है. पहले छोटा मंदिर था फिर बड़ा कर दिया. ये सब जमीन पर कब्जा करने में लगे हुए हैं. ये हमको यहां से भगाने की कोशिश कर रहे हैं. मंदिर तो है नहीं ये. मंदिर तो ऐसे ही एक बनाया जा रहा है."

वहीं दूसरी तरफ राजपूत समुदाय का कहना है कि रास्ते की जमीन पर दलितों का कोई हक नहीं है. उक्त जमीन हमारे मंदिर के बाबा की है. बाबा ने जमीन हमें दे दी है.

राजपूत समुदाय के 45 वर्षीय दिनेश सवालिया लहजे में कहते हैं, "वो जमीन उनके (दलितों) पुरखों की है क्या? हमारे बाबा की है."

वहीं राजपूत समाज से ही आने वाले एक अन्य स्थानीय निवासी और पूर्व फौजी ओमवीर सिंह कहते हैं, "यहां पहले से ही मंदिर था, अब उसको सिर्फ बड़ा किया है. चबूतरा भी बन गया है. अब जब चबूतरा बन गया है तो अब वो लोग उसे कूदकर थोड़े ही जाएंगे, दूसरे रास्ते से जाएंगे."

वह आगे कहते हैं कि दीवार बनवाने का फैसला राजपूत समाज की पंचायत में सर्वसम्मति से लिया गया है. किसी एक आदमी ने नहीं बनाया पूरे गांव ने बनाया है.

क्या पंचायत में दलित समुदाय के लोगों को भी शामिल किया गया था? इस सवाल पर वह कहते हैं, “पंचायत में उनको शामिल करने की क्या जरूरत है? उनका चबूतरा अलग है.”

इस विवाद के संबंध में हमने चरखी -दादरी के एसडीओ अनिल कुमार यादव से बात की.

वह कहते हैं, “मैंने मौके पर जाकर दोनों समुदायों के बीच समझौता करवाया,और एक वैकल्पिक रास्ते का प्रावधान भी किया. इसके बावजूद अगर रोज-रोज नया विवाद खड़ा करेंगे तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं.”

प्रशासन द्वारा वैकल्पिक रास्ता दिए जाने पर सुरेश कहते हैं, “हमको रास्ता सीधा चाहिए जो हमारा पहले से है. ये आज कह रहे हैं दूर से रास्ता ले लो, कल कहेंगे और दूर से ले लो. रास्ता रोज-रोज नहीं मिलता है. जब सीधा रास्ता है तो हमें वही रास्ता चाहिए, नहीं तो नहीं चाहिए. चाहे हमें लाशों को अपने घरों में फूंकना पड़े.”

चरखी-दादरी में खड़े हुए इस जातिगत मतभेद पर न्यूज़लॉन्ड्री ने स्थानीय लोगों से बात की. देखें पूरा वीडियो…

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