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निकिता सिंह

आया राम गया राम, भाग 9: दलबदलू सिंधिया और यादवेंद्र सिंह के बीच रोचक मुकाबला

सांप्रदायिक बयानबाजी, बड़े पैमाने पर यौन उत्पीड़न का मामला सामने आने और चुनाव के घंटों पहले पार्टी बदलने वाले नेताओं के बीच 7 मई को होने वाले तीसरे चरण के चुनावों में कुल 12 पाला बदलने वाले उम्मीदवार रहे. 12 राज्यों की 94 लोकसभा सीटों पर इस चरण में मत डाले गए. 

इन 12 दलबदलू नेताओं में से 4 मध्य प्रदेश, 2 महाराष्ट्र से उम्मीदवार हैं. वहीं बिहार, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, दादरा नगर हवेली व उत्तर प्रदेश से एक-एक उम्मीदवार है. इस चरण में सबसे ज्यादा गुजरात की 26 सीटों पर चुनाव हुआ. पर गुजरात में एक भी दलबदलू उम्मीदवार नहीं है. तीसरे चरण में गोवा, असम, और जम्मू एवं कश्मीर से एक भी पाला बदलने वाले उम्मीदवार नहीं हैं. 

पाला बदलने वाले उम्मीदवारों में 6 भाजपा के एनडीए गठबंधन में हैं और 6 कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन में हैं. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा मध्य प्रदेश की गुना सीट की है. यहां से पूर्व कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार भाजपा के उम्मीदवार हैं. वह पूर्व भाजपा नेता और अब कांग्रेस प्रत्याशी यादवेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. 

आइए एक नजर इस कांटेदार मुकाबले पर एक नजर डालते हैं. 

ज्योतिरादित्य सिंधिया: युवराज, परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता

23 साल पहले साल 2001 में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की हवाई जहाज हादसे में मृत्यु हो गई. उसके बाद 53 वर्षीय ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी. राजपरिवार के उत्तराधिकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया 19 वर्षों तक कांग्रेस में रहे. फिर साल 2020 में उनका पार्टी के साथ नाटकीय ढंग से अलगाव हो गया. 

कोविड संकट शुरू होने के कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश में सिंधिया ने कई नेताओं के साथ पार्टी छोड़ने का नेतृत्व करके कांग्रेस को राजनीतिक संकट में डाल दिया. 6 मंत्रियों समेत कुल 22 विधायक कांग्रेस से इस्तीफा सौंपकर भाजपा में चले गए. दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद से ही मध्य प्रदेश में शीर्ष पद (मुख्यमंत्री) के लिए 2 सालों तक खींचतान चलती रही. अंततः बाग़ी विधायकों ने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरा दिया. भाजपा ने सिंधिया को नागरिक उड्डयन और स्टील मंत्रालय का केंद्रीय मंत्री बनाकर उपहार दिया. 

गौरतलब है कि साल 2014 तक सिंधिया गुना से 4 बार विधायक रह चुके थे. यूपीए के दोनों कार्यकाल के दौरान वे कई मंत्रालयों के साथ ही योजना आयोग तक के उच्च पदों पर बैठ चुके थे. सिंधिया पार्टी के बड़े और धनी युवा नेताओं में से एक थे. साल 2019 लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेस से भाजपा में गए एक अन्य नेता कृष्ण पाल सिंह से 1.25 लाख वोटों से हार गए थे. 

मार्च 2020 तक सिंधिया भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों के कटु आलोचक थे. वह विशेष रूप से किसानों की स्थिति पर गाहे-बगाहे उन पर कटाक्ष किया करते थे. उन्होंने भारत बचाओ रैली का भी आयोजन किया था. 

सिंधिया की दादी विजया राजे ने भी 52 साल पहले साल 1967 में कांग्रेस छोड़कर राज्य में डीपी मिश्र की सरकार गिरा दी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने को उनकी बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया द्वारा ‘घर वापसी’ करार दिया गया.

ज्यादा साल नहीं बीते जब 2010 में तीनों बुआ-भतीजे न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे थे क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लगभग 20 हजार करोड़ की राजपरिवार की सारी संपत्ति का एकलौता वारिस होने का दावा किया था.

स्कूल के दिनों से ही राहुल गांधी के साथी रहे सिंधिया के पास स्टैनफोर्ड से एमबीए की डिग्री है. साल 2024 में उनके पास 40 करोड़ की संपत्ति है. इसके अलावा जीवाजीराव सिंधिया के अविभाजित हिन्दू परिवार खाते में 382 करोड़ की संपत्ति भी है. उनकी कुल संपत्ति साल 2019 में 379 करोड़ थी, जो काफी तेजी से बढ़ी. 

काबिले जिक्र है कि उनके कांग्रेस के साथी बागी नेता ही उनके पतन का कारण बन सकते हैं. न्यूजलॉन्ड्री की यह विशेष रिपोर्ट पढ़िए

यादवेन्द्र राव देशराज सिंह: किसान, भाजपा के बागी, 2 आपराधिक मुकदमे 

39 वर्षीय यादवेन्द्र राव सिंधिया के विपरीत एक ‘आम’ व्यक्ति तो हैं पर वे भी राजनीतिक घराने से आते हैं. उनके स्वर्गीय पिता देशराज सिंह यादव भाजपा के विधायक रहे और 22 साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ गुना से लड़कर हार गए थे. 

लेकिन यादवेन्द्र राव ने खुद अपना राजनीतिक जीवन जिला पंचायत सदस्य से शुरू किया था. वह पिछले साल मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तक भाजपा में थे. फिर उन्होंने पाला बदल लिया और कांग्रेस की टिकट पर गुना में मुंगावली विधानसभा से चुनाव लड़े. वह ये चुनाव 5,422 मतों के अंतर से भाजपा के बृजेन्द्र सिंह यादव से हार गए. 

मार्च 2023 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाते समय उन्होंने यह शिकायत की कि सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद पार्टी में बाकी सब को ‘नजरअंदाज और किनारे’ कर दिया गया था. संभवतः, भाजपा द्वारा सिंधिया को मैदान में उतारने से नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने पिछड़ा-बहुल गुना से यादवेन्द्र राव को टिकट दिया है. इस लोकसभा क्षेत्र में 4 लाख यादव मतदाता हैं.

राव पर दो आपराधिक मुकदमे हैं. गौरतलब है कि उनके परिवार से 6 लोग राजनीति में सक्रिय हैं. उनकी माता, पत्नी और भाई जिला पंचायत सदस्य हैं. उन्होंने ग्रामीण विकास में परास्नातक की पढ़ाई की है. हलफनामे में उन्होंने अपना व्यवसाय किसानी बताया है. 

हलफनामे के मुताबिक, उनकी संपत्ति पिछले साल नवंबर में 1.39 करोड़ के मुकाबले थोड़ी कम होकर 1.35 करोड़ हो गई है. उनके कई एक्स अकाउंट साल 2018 से बंद पड़े हैं. उन पर भाजपा के एक्स अकाउंट के रिट्वीट और भाजपा नेताओं वाली कवर तस्वीर पड़ी हुई हैं. 

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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