निजी नेटवर्कों द्वारा प्रसारित सामग्री की निगरानी करने के लिए, नरेंद्र मोदी सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर में उपकरणों के रखरखाव और वेतन का भुगतान करने के लिए पिछले वित्तीय वर्ष में 9 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं.
जयपुर से भाजपा सांसद रामचरण बोहरा के सवाल, “जिसमें उन्होंने टेलीविजन सामग्री को देखने के लिए सरकार द्वारा स्थापित निगरानी केंद्र का विवरण मांगा” था, का उत्तर देते हुए, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को लोकसभा में ये जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सभी कार्यक्रम निजी तौर पर प्रसारित होते हैं. सैटेलाइट टीवी चैनलों को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के तहत निर्धारित प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड का पालन करना आवश्यक है.
उन्होंने आगे कहा, “सरकार ने उक्त कोड का उल्लंघन रोकने के लिए निजी टीवी चैनलों की सामग्री की निगरानी के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर (ईएमएमसी) की स्थापना की है. ईएमएमसी द्वारा उठाए गए मामलों का निपटारा अधिनियम के तहत स्थापित त्रिस्तरीय शिकायत निवारण तंत्र के अनुसार किया जाता है.
ईएमएमसी की स्थापना 2008 में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत एक अधीनस्थ कार्यालय के रूप में की गई थी, जिसका विशेष कार्य केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम, 1995 के तहत प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड के उल्लंघन के लिए निजी सैटेलाइट टीवी चैनलों की सामग्री की निगरानी करना था.
वर्तमान में , ईएमएमसी लगभग 600 टीवी चैनलों को रिकॉर्ड और मॉनिटर करता है. वह रिकॉर्ड किए गए क्लिप के साथ एक रिपोर्ट जांच समिति को भेजता है, जो कथित उल्लंघनों की जांच करती है और आगे की कार्रवाई के लिए अपने निष्कर्षों को बाकी संबंधित मंत्रालयों और अन्य निकायों को भेजती है.
अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को कहा, “ईएमएमसी "भारत के चुनाव आयोग द्वारा अनिवार्य सहित अन्य संबंधित गतिविधियों" की भी निगराती करता है.
“वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान, ईएमएमसी में उपकरणों के रखरखाव और कर्मियों के वेतन पर 9.19 करोड़ रुपये का खर्च किया गया.
फैक्टली ने पहले रिपोर्ट दी थी कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर ने टेलीविजन चैनलों द्वारा मीडिया कानूनों के हजारों उल्लंघनों की सूचना दी थी. लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 2013 के बाद से केवल कुछ ही मामलों में कार्रवाई की है.
इस बीच, मोदी सरकार केबल नेटवर्क अधिनियम की जगह एक नया कानून लाने की तैयारी में है.
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