हर शाम लगभग 4.30 बजे, छह कारों जिनमें दो अर्टिगा, दो जगुआर, एक नेक्सॉन, एक स्कोडा और एक मर्सिडीज बेंज का कारवां संसद मार्ग स्थित दिल्ली भाजपा के कार्यालय से निकलता है, और बांसुरी स्वराज के प्रचार अभियान के लिए रवाना होता है.
स्वर्गीय सुषमा स्वराज की 40 वर्षीय बेटी बांसुरी इस चुनाव से अपनी राजनैतिक पारी की शुरुआत कर रही हैं और वह नई दिल्ली से चुनावी मैदान में हैं. यह भारत के सबसे प्रतिष्ठित निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है, जिसमें सेंट्रल विस्टा से लेकर राष्ट्रपति भवन, पुराने सचिवालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आते हैं. यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व भाजपा सुप्रीमो लालकृष्ण आडवाणी और सुपरस्टार राजेश खन्ना भी चुनाव जीत चुके हैं.
बांसुरी स्वराज ने 1 मई को दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा के साथ अमर कॉलोनी का दौरा किया. जैसे ही वे अपने वाहनों से बाहर निकले, ढोल-नगाड़ों की जोरदार आवाज़ के बीच, एक डीजे ने 2024 चुनावों के लिए भाजपा का गीत बजाया: "जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे."
पत्रकारों और कैमरामैनों ने स्वराज को घेर लिया, उन्होंने कैमरे के सामने हनुमान की एक तस्वीर उठाई और ज़ोर से "जय श्री राम" का नारा लगाया. हालांकि इन दोनों ही बातों से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होता है, लेकिन स्वराज पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद वह अपनी एक कार की सनरूफ पर खड़ी हो गईं और रोड शो शुरू हुआ.
स्वराज भाजपा की "नई प्रतिभा" हैं जो इस चुनाव में मीनाक्षी लेखी की जगह ले रही हैं. स्वराज की तरह लेखी भी सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में मोदी लहर पर सवार होकर नई दिल्ली के मौजूदा कांग्रेस सांसद अजय माकन के खिलाफ 1.6 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की. 2019 में वह न केवल फिर से जीतीं बल्कि अपनी जीत का अंतर 2.5 लाख से अधिक वोटों तक बढ़ा लिया.
लेकिन इस साल लेखी को टिकट नहीं दिया गया. उन्होंने ट्वीट किया कि उन्होंने स्वराज को "जिम्मेदारी सौंप दी है", लेकिन पार्टी के सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि लेखी और मतदाताओं के बीच "दूरी बढ़ रही" थी.
बीजेपी ग्रीन पार्क मंडल के प्रमुख भुवन शर्मा ने कहा, ''हम लेखीजी से बेहद निराश थे. उन्होंने कार्यकर्ताओं से मिलना बंद कर दिया था और जमीन से नदारद थीं. दरअसल, मतदाताओं के सामने उनका बचाव करना हमारे लिए शर्मनाक साबित हो रहा था."
नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि लेखी "अहंकारी" हैं और उन्होंने जल निकासी और सीवर जैसे स्थानीय मुद्दों पर "ध्यान देना बंद कर दिया" था.
उधर विपक्षी इंडिया गठबंधन ने लोकप्रिय आम आदमी पार्टी के नेता और मालवीय नगर से दो बार के विधायक सोमनाथ भारती के पीछे अपना पूरा जोर लगा दिया है.
नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में 10 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. हालांकि यहां भाजपा ने 2014 और 2019 दोनों में जीत हासिल की, और 2019 में भाजपा का वोट शेयर 57 प्रतिशत था, लेकिन कांग्रेस-आप गठबंधन ने 2019 में जबरदस्त मुकाबला किया और उसका वोट शेयर 41 प्रतिशत रहा.
शायद इसीलिए लेखी की कथित अलोकप्रियता को लेकर भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी. स्वराज भले ही राजनीति में पहली बार आई हों, लेकिन वह राजनीति की दुनिया में नई नहीं हैं. जब से उन्होंने अपना अभियान शुरू किया है, भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि वह "हमेशा उपलब्ध" रहती हैं.
"मुझे याद नहीं है कि लेखी ने कार्यकर्ताओं की एक भी बैठक आयोजित की हो, जब वह नई-नई थीं तब भी. लेकिन बांसुरी उन कार्यकर्ताओं के साथ भी बैठकें कर रही हैं जो पार्टी में सबसे निचले पायदान पर हैं. इससे पता चलता है कि वह समझती हैं कि भाजपा जैसी कैडर-आधारित पार्टियां कैसे काम करती हैं," भुवन शर्मा ने कहा.
शर्मा ने आगे कहा, “हाल ही में उनके घर-घर प्रचार के दौरान एक आरडब्ल्यूए सदस्य ने पूछा कि अगर वह सांसद के रूप में चुनी गईं तो क्या उन्हें उन तक पहुंचने में कोई समस्या होगी. उन्होंने उत्तर दिया, "बस भुवनजी को फ़ोन करिए और निश्चिन्त रहिए. अगर आपने उन्हें बता दिया है, तो इसका मतलब है कि आपकी समस्याएं मुझ तक पहुंच गई हैं. मैं सिर्फ बीजेपी ग्रीन पार्क मंडल का प्रमुख हूं, लेकिन उन्होंने मुझे और मेरे काम को भी पहचाना."
यह भावना पार्टी कार्यकर्ताओं में व्याप्त हो गई है. भाजपा दिल्ली मीडिया इकाई के एक कार्यकर्ता अमन पांडे ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह स्वराज से केवल "एक-दो बार" मिले हैं. “लेकिन उन्हें मेरा नाम याद है. जब भी वह मुझसे मिलती हैं, मुझसे पूछती हैं, 'अमन भैया, कुछ अच्छा खाने में कब लाओगे?' वह सभी से बहुत गर्मजोशी से पेश आती हैं और मिलनसार हैं."
उनका यह मिलनसार व्यक्तित्व स्वराज का सबसे प्रभावशाली गुण प्रतीत होता है. आमतौर पर रोड शो के दौरान नेता पर फूल फेंके जाते हैं, लेकिन स्वराज अपने रोड शो के दौरान बीजेपी के मतदाताओं और कार्यकर्ताओं पर गुलाब की पंखुड़ियां फेंकती हैं. यदि कोई मतदाता उन्हें माला पहनाने के लिए आगे आता है तो वह माला लेकर उसी के गले में डाल देती हैं. वह जितना संभव हो उतने लोगों से नज़रें मिलाती हैं, अपनी बालकनियों से देखने वालों की ओर हाथ हिलाती हैं, हाथ जोड़ती हैं और मुस्कुराती हैं. वह बच्चों के साथ भी मिलती हैं, और चेहरे के भावों से उन्हें बताती हैं कि वे "बहुत प्यारे" हैं.
सबसे जरूरी बात यह है कि हालांकि नरेंद्र मोदी अब तक स्वराज के लिए प्रचार करने नहीं आए हैं, लेकिन वह सुनिश्चित करती हैं कि उनका नाम लिया जाए. जब बीजेपी कार्यकर्ता उनके नाम के नारे लगाते हैं तो वह सिर हिलाकर जवाब में मोदी के नाम का नारा लगाती हैं.
दिल्ली भाजपा की मीडिया इकाई के सह-प्रमुख प्रवीण कुमार ने कहा, "मुझे लगता है कि बांसुरी में अपनी मां के समान ही नैतिक मूल्य हैं. सबसे बड़ी समानता यह है कि सुषमाजी भी एक जनवादी नेता थीं. उन्हें भी सबका नाम याद रहता था. यही गुण बांसुरी में है. इसी वजह से उन्होंने पार्टी में सभी को अपना सहयोगी बना लिया है वो भी इतने कम समय में."
यह "कम समय" की बात महत्वपूर्ण है. स्वराज आधिकारिक तौर पर 2023 में ही भाजपा में शामिल हुईं और दशकों से पार्टी में रहे अन्य लोगों को पछाड़कर वह तेजी से शीर्ष पर पहुंच गईं. कार्यकर्ता और मतदाता जूनियर स्वराज के बारे में क्या सोचते हैं? न्यूज़लॉन्ड्री ने यह जानने के लिए नई दिल्ली के सूत्रों से बातचीत की.
सबसे पहले, एक फैक्ट-चेक
स्वराज को निस्संदेह अपनी मां की विरासत का लाभ मिलता है. फिर भी वह खुद को इससे दूर रखने का प्रयास करती हैं, संभवतः इसलिए क्योंकि यह मोदी के उन दावों के विरुद्ध है कि कांग्रेस के विपरीत भाजपा एक वंशवादी पार्टी नहीं है. (लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भाजपा के भीतर भी कई परिवार हैं.)
उदाहरण के लिए, मीडिया साक्षात्कारों के दौरान वह अपनी मां का उल्लेख तब तक नहीं करती जब तक कि विशेष रूप से इसके बारे में उनसे न पूछा जाए. उनकी एक्स प्रोफ़ाइल पर मोदी की कई तस्वीरें हैं, लेकिन उनकी मां की केवल एक तस्वीर है जो 15 फरवरी को सुषमा जी के जन्मदिन पर पोस्ट की गई थी. उनके रोड शो के दौरान मोदी के नाम पर वोट मांगते हुए एक भाजपा कार्यकर्ता आमतौर पर उनके पीछे-पीछे चलता है और इसके बाद ही उनका सुषमा स्वराज की बेटी के रूप में परिचय देता है.
स्वराज इस तथ्य का अधिक ज़िक्र नहीं करना चाहतीं कि यह उनका पहला चुनाव है. साक्षात्कारों में यहां और यहां देखें. वह 17 वर्षों तक एबीवीपी कार्यकर्ता होने के बारे में बात करती हैं और कहती हैं कि उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक भाजपा और उसके कानूनी प्रकोष्ठ के साथ मेहनत से काम किया है. वह इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त करती हैं कि उन्हें नई दिल्ली से पार्टी का टिकट मिला.
यह सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन हो सकता है यह सच न हो.
स्वराज की स्कूली शिक्षा वसंत कुंज के वसंत वैली स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने वारविक विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सेंट कैथरीन कॉलेज से कानून में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. वह यूके में बैरिस्टर के रूप में उत्तीर्ण हुईं.
जबकि एबीवीपी की सदस्यता के लिए एक छात्र को भारतीय कॉलेज या विश्वविद्यालय में अध्ययन करना आवश्यक है. इसकी पुष्टि परिषद के मीडिया संयोजक आशुतोष ने भी की है. वैकल्पिक रूप से, वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के छात्र नामांकन कर सकते हैं, लेकिन वसंत वैली के स्वराज के सहपाठियों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके बैच से कोई भी एबीवीपी से जुड़ा नहीं था. साल 2000 से 2015 तक संगठन के साथ रहे दो वरिष्ठ एबीवीपी नेताओं ने भी कहा कि उन्होंने अपने काम के दौरान बांसुरी स्वराज के बारे में कभी कुछ देखा या सुना नहीं.
हमने भाजपा युवा मोर्चा से भी पूछा कि क्या स्वराज ने उसके साथ काम किया है, लेकिन एक वरिष्ठ नेता ने 'ना' में जवाब दिया. इसके बाद हम एबीवीपी के आशुतोष के पास लौटे और उनसे संगठन में स्वराज के तथाकथित योगदान के बारे में दोबारा पूछा. उन्होंने कहा कि वह हमसे संपर्क करेंगे और फिर उन्होंने हमारा फ़ोन नहीं उठाया.
स्वराज का अगला दावा है कि उन्होंने एक दशक तक भाजपा के कानूनी प्रकोष्ठ के साथ काम किया है. 2020 से कानूनी सेल के प्रमुख नीरज ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि बांसुरी “एक दशक पहले सदस्य बनी थीं. जैसे, जो कोई भी भाजपा का सदस्य बनता है और कानूनी मामलों पर काम करने में रुचि रखता है तो उसे सेल का हिस्सा बना दिया जाता है, ठीक उसी तरह जैसे आप भाजपा के अन्य विंग जैसे एसटी/एससी मोर्चा का हिस्सा बन जाते हैं. इसलिए, सदस्य बनने का कोई औपचारिक प्रावधान नहीं है. वर्तमान में प्रकोष्ठ के 700 से अधिक सदस्य हैं."
सेल की 40-सदस्यीय कोर टीम के एक सदस्य ने भी कहा कि स्वराज एक दशक तक नाममात्र के लिए सेल की सदस्य थीं, लेकिन वह "पिछले साल की शुरुआत तक" कभी भी सक्रिय नहीं थीं.
उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं है कि वह 10 साल से सेल में कड़ी मेहनत कर रहीं थीं. वह पिछले साल की शुरुआत में सक्रिय हुईं और फिर उन्हें तुरंत एक वरिष्ठ पद दे दिया गया."
यह "वरिष्ठ पद" है सेल के सह-संयोजक का, जो उन्हें मार्च 2023 में सौंपा गया था. कोर टीम के उक्त सदस्य ने कहा, "वह एक प्रतिभाशाली वकील हैं लेकिन सभी प्रतिभाशाली वकील इतनी जल्दी शीर्ष पर नहीं पहुंच पाते. जाहिर तौर पर अब पार्टी इसे सही ठहराने की कोशिश करेगी, क्योंकि यह वंशवादी राजनीति के उनके नैरेटिव के खिलाफ है. आपको उस पृष्ठभूमि को श्रेय देना होगा जहां से वह आती हैं."
नीरज ने कुछ अधिक कूटनीतिक तरीके से कहा कि स्वराज को शीर्ष पद इसलिए मिला क्योंकि पार्टी ने "उनके काम को पहचाना". “उन्होंने हाल ही में मुकदमों का मसौदा तैयार करने और दिल्ली उच्च न्यायालय में भाजपा नेताओं के खिलाफ मानहानि जैसे मामलों में लड़ने में मदद की. यह अच्छा है कि पार्टी ने जल्द ही उनकी क्षमता को पहचान लिया और उन्हें टिकट दे दिया."
टिकट की जंग
2021 और 2022 के बीच, स्वराज ने हरियाणा राज्य के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में कार्य किया (उनका कार्यकाल मनोहर लाल खट्टर सरकार द्वारा बढ़ा दिया गया था). वह लीगासिस पार्टनर नामक एक निजी फर्म में भी कार्यरत हैं, जहां वह मुख्य रूप से सफेदपोश अपराध, यानी वित्तीय मामलों के गैर-हिंसक अपराधों से जुड़े मुक़दमे देखती हैं. लेगासिस के अनुसार स्वराज अभी भी इस फर्म से जुड़ी हुई हैं, हालांकि उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए "कुछ समय का ब्रेक" लिया है.
मार्च 2023 में जब स्वराज को कानूनी प्रकोष्ठ का सह-संयोजक नियुक्त किया गया, तो उन्हें दिल्ली भाजपा का पदाधिकारी भी बनाया गया था. उनकी नियुक्ति दिल्ली अध्यक्ष बीरेंद्र सचदेवा ने की थी, जो उनकी दिवंगत मां के करीबी माने जाते थे. लगभग उसी समय, भाजपा के भीतर अफवाहें फैल गईं कि स्वराज राजनैतिक पारी की शुरुआत करना चाहती हैं और नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से उनके नाम पर विचार किया जा रहा था.
उस समय स्वराज ने कहा था, "मैं केवल वर्तमान पद पर ध्यान केंद्रित करना और उस पर काम करना चाहूंगी और भविष्य के चुनावों के बारे में नहीं सोचना चाहूंगी."
दिल्ली भाजपा के एक सूत्र ने कहा, ''पिछला साल बांसुरी के लिए सबसे अच्छा समय था. संजय सिंह और मनीष सिसोदिया जैसे आम आदमी पार्टी के नेताओं के गिरफ्तार होने की ख़बर जोरों पर थी. भाजपा में ऐसे मामलों पर टिप्पणी करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम प्रवक्ता नहीं थे. बांसुरी ने अपने पद का भरपूर फायदा उठाया."
उक्त सूत्र ने कहा, "वह एक अच्छी वक्ता भी हैं और मीडिया-फ्रेंडली भी. मीडिया को उनकी तल्ख़, तीखी बातें पसंद आईं और उन्हें वह सारी सुर्खियां मिलीं जिनकी उन्हें जरूरत थी. एक कहावत है कि भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जिन्हें जीवन में सफल होना ही है."
पार्टी का टिकट पाने की दौड़ में स्वराज ने एक और 'नेपो किड' दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली को हरा दिया.
2023 तक करोल बाग में भाजपा के प्रमुख रहे धनेश तिवारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "भाजपा के जिला स्तर के अधिकारियों ने रोहन की सिफारिश नहीं की थी, क्योंकि वह जमीन पर मौजूद नहीं थे. उनके बारे में कहा जाता है कि उनमें एक बड़े नेता के बेटे होने की हनक है. हम नहीं चाहते थे कि लेखी के बाद एक और नेता हो जो जमीन पर मौजूद न रहे. तभी हमारी सिफारिश पर बांसुरी को बढ़त मिली. पार्टी के छोटे-छोटे कार्यक्रमों से लेकर कार्यकर्ताओं की शादी तक वह हर जगह मौजूद रहती थीं."
एक और वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता ने भी उनसे सहमति जताई. "जेटली जी के बेटे की अपेक्षा, बांसुरी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्च को प्रभावित करने के लिए पिछले साल कड़ी मेहनत की. आमतौर पर बड़े राजनेताओं के बच्चे पदाधिकारी जैसे नियमित पद नहीं संभालते. लेकिन उन्होंने शीर्ष नेतृत्व को टिकट के लिए अपनी उत्कंठा दिखाने के लिए ऐसा किया."
बांसुरी की टीम
हालांकि बांसुरी अपने कैंपेन में अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि का ज़िक्र नहीं करती हैं, लेकिन उन्हें इसके कई लाभ मिलते हैं.
दिल्ली में पार्टी की मीडिया इकाई के सह-प्रमुख प्रवीण कुमार ने कहा कि इससे स्वराज को "बढ़त" मिलती है.
"राजधानी में भाजपा के सभी उम्मीदवारों की स्थिति अच्छी हैं. लेकिन मेरी राय में, बांसुरी की स्थिति अन्य भाजपा उम्मीदवारों के मुकाबले बेहतर है क्योंकि उनके पास अपने अभियान का प्रबंधन करने के लिए सबसे अच्छी टीम है,” उन्होंने कहा. "प्रचार से लेकर वोट वितरण तक, हर बात अलग होने वाली है. उन्होंने पिछले एक साल में हर किसी का दिल जीत लिया है."
स्वराज की कोर टीम में भाजपा दिल्ली के प्रवक्ता वीरेंद्र बब्बा और चार बार उत्तर प्रदेश के एमएलसी रह चुके दिनेश प्रताप सिंह सहित एक दर्जन लोग शामिल हैं. टीम में दक्षिण दिल्ली के पूर्व मेयर, जिले के प्रमुख और कभी सुषमा स्वराज के करीबी रहे श्याम शर्मा भी हैं. उनकी प्रचार रणनीति के प्रभारी विजय द्विवेदी हैं, जो पहले सुषमा स्वराज के अभियानों को भी संभाल चुके हैं.
“मैं दशकों से स्वराज परिवार से जुड़ा हुआ हूं. लेकिन किस हैसियत से, चुनाव के समय मैं आपको बता नहीं सकता," द्विवेदी ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा.
बांसुरी का वॉर रूम हरियाणा के फ़रीदाबाद से भाजपा सांसद कृष्ण पाल गुर्जर के घर से संचालित होता है, जो वर्तमान में उनके अभियान की देखरेख में मदद कर रहे हैं.
गुर्जर के एक रिश्तेदार ने कहा, "गुर्जरजी ने पहली बार अपना आधिकारिक आवास किसी अन्य उम्मीदवार को दिया है, क्योंकि वह सुषमा स्वराज को अपनी बहन मानते थे. उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में एक-दूसरे को जाना और चूंकि राजनीति में दोनों के विरोधी एक ही थे, इसलिए उनका संबंध और प्रगाढ़ हुआ. जब सुषमा जी हरियाणा से राज्यसभा सांसद के रूप में चुनी गईं, तो गुर्जर राज्य में उनके सबसे पसंदीदा व्यक्ति थे. अब वह बांसुरी को अपनी भतीजी मानते हैं. इससे नई दिल्ली में 1.5 लाख से अधिक गुर्जर वोटरों को एक मजबूत संदेश भी गया है कि वह बांसुरी के साथ आएं."
भाजपा ने स्वराज की मीडिया से बातचीत को प्रबंधित करने के लिए पार्टी की मीडिया इकाई के पूर्व सह-प्रमुख राघव पाल मंडल को भी नियुक्त किया है. एक सूत्र ने कहा कि यह "अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले एक बड़ा फायदा है क्योंकि पार्टी समझती है कि यह सीट कितनी प्रतिष्ठित है और वे उनके लिए सबसे अच्छा प्रयास करना चाहते हैं."
“राघव और अन्य उम्मीदवारों के मीडिया प्रबंधकों के बीच मुख्य अंतर यह है कि राघव यह सुनिश्चित करते हैं कि मीडिया का ध्यान स्वराज की ओर रहे. अगर कोई रिपोर्टर उनकी बाईट लेता है, तो वह उसके पीछे पड़कर सुनिश्चित करते हैं कि उसे समय पर प्रकाशित किया जाए," उपरोक्त सूत्र ने कहा.
वसंत वैली स्कूल में स्वराज के एक पूर्व सहपाठी ने कहा, "वह हमेशा खुद को पाक-साफ़ रूप में प्रस्तुत करती थीं और इस बात का कठिन प्रयास करती थीं कि हर कोई, खासकर प्रिंसिपल, उन्हें अच्छी नज़रों से देखे. इतनी प्रतिष्ठित पृष्ठभूमि से आने के बावजूद, वह हमेशा खुद को एक उपेक्षित व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती थीं."
उधर जमीनी स्तर पर पार्टी की मशीनरी प्रयास कर रही है कि स्वराज की प्रतिष्ठा एक मेहनती और अपनी मां की विरासत को आगे बढ़ाने वाली नेता के रूप में बने.
ग्रीन पार्क में भाजपा महिला मोर्चा की समन्वयक पूनम फोगाट ने कहा, "हम सुबह के अभियान के दौरान और शाम को ड्राइंग रूम की बैठकों के माध्यम से मतदाताओं को टारगेट करते हैं."
“हमारी बातचीत में, हम मुख्य रूप से मोदी सरकार की उपलब्धियों और कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं. जब बांसुरी की बात आती है तो हम उन्हें बताते हैं कि वह दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी हैं. जिस तरह वह हमेशा लोगों के लिए उपलब्ध रहती थीं, उसी तरह बांसुरी भी रहेंगी. लेकिन हम उन्हें यह भी बताना चाहते हैं कि टिकट दिए जाने से पहले उन्होंने एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में पार्टी में कड़ी मेहनत की थी."
भाजपा नई दिल्ली जिले के महासचिव जितेंद्र गौड़ ने कहा कि स्वराज की विरासत महत्वपूर्ण है क्योंकि सुषमा ने दक्षिण दिल्ली की सीट 1996 और 1998 में बड़े अंतर से जीती थी.
"परिसीमन के बाद दक्षिणी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र की छह विधानसभाएं नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में चली गईं. तो यहां के 60 प्रतिशत मतदाता ऐसे हैं जिनके बीच सुषमा स्वराज अभी भी बहुत लोकप्रिय हैं. इसलिए, पीएम मोदी के अलावा, हम उस पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं,” गौर ने कहा.
लेकिन मतदाता क्या सोचते हैं?
अमर कॉलोनी के 61 वर्षीय निवासी हरप्रीत पाल सिंह ने कहा, "मोदी ने पिछले 10 सालों में देश के लिए जो किया है, उससे हम खुश हैं. लेकिन इस चुनाव में हम वास्तव में लेखी से परेशान थे और हम मोदी की भी परवाह नहीं करते. लेकिन चूंकि सुषमा हमेशा कनाडा में हमारे लोगों के लिए खड़ी रहीं, इसलिए हमारा मानना है कि बांसुरी को वोट देकर उसका बदला चुकाने का समय आ गया है."
एक अन्य वोटर सुभाष वोहरा ने कहा, “हम उन्हें केवल इसलिए वोट देंगे क्योंकि वह सुषमाजी जैसी दिखती हैं. वह एक महान नेता थीं. बांसुरी अपने प्रचार अभियान में विनम्र दिखती हैं लेकिन अपनी मां की विरासत के साथ खड़े रहना उनके लिए कठिन है. वह ऐसा कर पाएंगी या नहीं, यह तो समय ही बताएगा.''
न्यूज़लॉन्ड्री ने साक्षात्कार के लिए कई बार स्वराज से संपर्क किया लेकिन इसे बार-बार स्थगित किया गया. जब इस रिपोर्टर ने स्वराज से मुलाकात की और साक्षात्कार के लिए पूछा, तो उन्होंने कहा कि उनका मीडिया मैनेजर संपर्क करेगा. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
अनुवादक: उत्कर्ष मिश्रा
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