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बसंत कुमार

बालासोर ट्रेन हादसा: अपनों के शव लेने के लिए भटकते बिहार के लोग, सरकार नदारद

बिहार जिले के मोतिहारी के हरसिद्धी थाने के रहने वाले मुसाफिर सहनी के बेटे अनिल कुमार की मौत उड़ीसा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे में हो गई थी. घटना के बाद से ही वे शव की तलाश में भटक रहे थे. उन्होंने डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल भी दिया. इसी बीच बुधवार को उन्होंने अपने बेटे के शव की पहचान कर ली.

शव लेने की तमाम प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बारी रेलवे से मुआवजा राशि लेने की आई. रेलवे अधिकारियों को अंदेशा हुआ कि अनिल की शादी हो गई है और उनके परिजन पत्नी को पैसे देने के बजाय खुद ले रहे हैं. मुसाफिर सहनी टूटी फूटी हिंदी में लगातार कह रहे थे कि उनके बेटे की शादी नहीं हुई है, लेकिन रेलवे के अधिकारी मानने को तैयार नहीं थे. इसके बाद वे बिहार के अधिकारियों को तलाशने लगे. रात के आठ बज रहे थे. बिहार सरकार का कोई अधिकारी एम्स भुवनेश्वर में मौजूद नहीं था.

घंटों भटकने के बाद जब कोई रास्ता नहीं निकला तो रेलवे अधिकारियों ने कहा कि आप अपने गांव के मुखिया से लिखवाकर लाएं कि अनिल की शादी नहीं हुई है. मुसाफिर सहनी के गांव के मुखिया ने रात 11 बजे लिखकर भेजा, जिसके बाद उन्हें बेटे का शव मिला. वे रात में एक बजे शव लेकर अपने गांव के लिए निकल गए. 

मुसाफिर सहनी शव लेकर चले गए, लेकिन बिहार के ही मुजफ्फरपुर के रहने वाले रवि कुमार अभी भी अपने पिता के शव के लिए भटक रहे हैं. 

एम्स भुवनेश्वर के ग्राउंड पर अपने परिवार के अन्य लोगों के साथ बैठे रवि न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘मेरे टोले के चार लोग कोरोमंडल से चेन्नई जा रहे थे. एक का इलाज चल रहा है. तीन की मौत हो गई है. दो का शव भी मिल गया है. मेरे पिता का शव अब तक नहीं मिला है. मैं तो एक दिन पहले ही यहां आया हूं. मेरे परिवार के सदस्य बीते छह दिनों से उन्हें तलाश रहे थे.’’

रवि, मल्लाह समुदाय से हैं. इनके पिता और दूसरे अन्य लोग चेन्नई में सीमेंट की फैक्ट्री में काम करने जा रहे थे. क्या यहां बिहार सरकार के अधिकारियों से आपको मदद मिली? वे इसका जवाब ना में देते हैं. 

रवि और या उनके दूसरे साथी हिंदी भी ठीक से नहीं बोल पाते हैं. ज्यादातर ईट-भट्टों पर काम कर अपना जीवन यापन करते हैं. ऐसे में उनकी मदद के लिए नगर पार्षद बुंदेल पासवान उनके साथ आए हुए हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए पासवान कहते हैं, ‘‘यहां आने के बाद मुझसे सबसे ज़्यादा दुःख यह हुआ कि बिहार सरकार का कोई अधिकारी नहीं हैं. यहां लोगों के लोगों को हमारी भाषा समझ में नहीं आ रही है और उनकी हमें. अगर अधिकारी होते तो वे हमारी बात रखते.’’

ऐसा सिर्फ रवि या मुसाफिर सहनी नहीं कहते हैं.  एम्स के बाहर अपनों की तलाश में भटक रहे दस लोगों ने ऐसा कहा. 

मालूम हो कि गत 2 जून को ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेन आपस में टकरा गई थीं. इनमें एक माल गाड़ी थी तो दूसरी कोरोमंडल एक्सप्रेस, जो पश्चिम बंगाल के शालीमार से चेन्नई के लिए चलती है. वहीं तीसरी ट्रेन यशवंतपुर एक्सप्रेस, बंगलौर से हावड़ा आती है. यूं तो इन ट्रेनों का बिहार से कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन हादसे में मारे जाने वाले काफी लोग बिहार के हैं. मृतकों की संख्या के लिहाज से बात करें तो बिहार का दूसरा नंबर है. 

एम्स और दूसरे अस्पतालों में हादसे के बाद जो 193 शव आए थे. उसमें से मंगलवार तक 96 शव लोगों को दिए गए. इनमें से 48 पश्चिम बंगाल के थे और 40 बिहार के. फिलहाल, डीएनए जांच के बाद ही प्रशासन शव सौंप रहा है. हालांकि, इस बीच भी जो लोग अपनों की पहचान ठीक से कर पा रहे हैं उन्हें शव सौंप दिया जा रहा है.  बताया जा रहा है कि एम्स से बिहार के लिए पचास शव गए हैं. 

एम्स में जहां शवों की शिनाख्त के लिए हेल्प डेस्क बनाया गया है. वहीं पश्चिम बंगाल का भी हेल्प डेस्क बना हुआ है. पश्चिम बंगाल के कई अधिकारी वहां बैठे नजर आते हैं. जो अपने राज्य के नागरिकों की शव दिलवाने, डीएनए सैंपल समेत अन्य प्रक्रियों में मदद करते हैं. झारखंड के भी अधिकारी नजर आते हैं. आंध्र प्रदेश, जहां के किसी भी नागरिक की अब तक इस हादसे में मौत होने की ख़बर नहीं आई है. वहां के अधिकारी भी यहां बैठे नजर आते हैं. वहीं बिहार के ना अधिकारी नजर आते हैं और न ही कोई हेल्प डेस्क जबकि मृतकों में और डीएनए सैंपल देने वालों में बिहार के लोगों की संख्या काफी है. 

होर्डिंग के कोने में बिहार हेल्पडेस्क की जानकारी

यहां एम्स, भुवनेश्वर में नगर निगम ने बड़ा सा होर्डिंग लगाया है. जिसपर हेल्प लाइन नंबर दिया गया है. बिहार सरकार के अधिकारियों ने एक ‘ए4’ साइज के पेज में प्रिंट निकालकर इस होर्डिंग के कोने पर चिपका दिया है. इसी पेज पर आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार द्वारा जारी फोन नंबर लिखा है.  

बिहार सरकार के इस रवैये की आलोचना ओडिशा और रेलवे के अधिकारी भी करते नजर आते हैं. रेलवे के एक अधिकारी ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि बिहार के अफसर आए तो हैं, लेकिन रहते कहां हैं, किसी को खबर नहीं है. चेक देते समय इतनी परेशानी आती हैं कि क्या बताएं. जैसे-तैसे हम काम कर रहे हैं. अधिकारी आते हैं, दर्शन देकर चले जाते हैं.’’

गुरुवार को इतफाक से हमारी मुलाकात बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के डिप्टी कमिश्नर शहरयार अख्तर से हुई. उनसे हमने पूछा कि बिहार के लोग भटक रहे हैं, लेकिन बिहार सरकार गायब है? उन्होंने इसके जवाब में कहा, ‘‘चार जून से एक आईएएस श्याम बिहारी मीणा, एक आईपीएस डॉक्टर कुमार आशीष, आपदा प्रबंधन विभाग के ओएसडी अविनाश कुमार और मुझ समेत चार लोग यहां मौजूद हैं.’’ गौर करने वाली बात ये है कि घटना दो जून को हुई और बिहार सरकार के अधिकारी यहां चार जून को पहुंचे हैं. 

हमने अख्तर से आगे पूछा कि मृतकों में बिहार के लोगों की संख्या काफी ज़्यादा है. ऐसे में यहां कोई हेल्प डेस्क क्यों नहीं हैं? इसपर वे कहते हैं, ‘‘दक्षिण भारत के लिए बिहार से कम ट्रेन हैं. ऐसे में लोग कोलकत्ता से जाते हैं. जहां तक हेल्प डेस्क की बात है तो हम बिहार के तमाम लोगों के संपर्क में हैं. यहां से अब तक 50 से ज्यादा शव भेजे जा चुके हैं. बिहार सरकार लोगों की मदद कर रही है. कटक और बालेश्वर, हरेक जगह लोगों की मदद की जा रही है.’’

अख्तर दावा कर रहे हैं कि वे लोगों के संपर्क में हैं. जब हम उनके इस दावे को लेकर बिहार के रहने वाले सुभाष सहनी, जो अपने छोटे भाई का शव तलाशते हुए यहां पहुंचे हैं, से पूछते हैं तो वे कहते हैं, ‘‘संपर्क में तो हैं, लेकिन दिनभर हमसे ही पूछते रहते हैं, क्या हुआ? अभी क्या चल रहा है? अगर हम ही शव बता देंगे तो वे क्या करेंगे? यहां एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकना पड़ रहा है. यहां के बारे में ज्यादा जानते हैं नहीं.’’

सिर्फ बिहार के अधिकारी ही नहीं बिहार सरकार के मंत्री या मुख्यमंत्री भी अपनों की सुध लेने नहीं आए. वहीं दूसरे राज्यों के मंत्री और मुख्यमंत्री घटना के बाद से ही कई चक्कर लगा चुके हैं. 

बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘यह कोई पहली बार नहीं है. बिहार सरकार का रवैया अक्सर ही ऐसा होता है. आप कोरोना में ही देख लीजिए. तब सरकार अपने लोगों को आना भी नहीं देना चाहती थी. लोग जैसे तैसे दक्षिण भारत से, पंजाब से, दिल्ली से आ जा रहे थे लेकिन उन्हें बिहार के बॉर्डर पर रोक दिया जा रहा था.’’

बिहार में आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री शहनवाज हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमारे चार अधिकारी अभी भी वहीं हैं. सारी रिपोर्ट हम लोग ले रहे हैं. वहां से लोगों को यहां लाया जा रहा हैं. कोई ऐसा मामला है तो हमें उनका नंबर दीजिए हम सीधे उनकी मदद करेंगे.’’ 

बिहार के जिन लोगों की मौत इस हादसे में हुई है. उसमें से ज़्यादातर लोग जनरल डिब्बे में सफर कर रहे थे. वे गरीब तबके से थे और मज़दूरी करने दक्षिण भारत के राज्यों में जा रहे थे. मृतकों/घायलों के परिजन 30-30 हज़ार रुपए में गाड़ी कर यहां पहुंच रहे हैं. किसी को शव मिल चुका हैं तो वहीं कोई डीएनए सैंपल देने के बाद उसकी रिपोर्ट आने का इंतज़ार कर रहा है. उन्हें चिंता है कि अगर शव नहीं मिला तो क्या होगा? उनके अपने भी चले गए और दूसरी तरफ वो कर्ज में भी डूब जायेंगे. 

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