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देश की राजधानी अपनी ही आबोहवा में घुट रही है. लेकिन ऐसा लगता है कि सत्ता का केंद्र जैसे इस संकट से पूरी तरह अछूता और सुरक्षित है, ये संकट न केवल इस शहर बल्कि कई अन्य राज्यों के लिए भी अस्तित्व का सवाल बनता जा रहा है. असल में ‘बर्बाद हो चुकी’ आबोहवा के बीच संसद का ये शीतकालीन सत्र शुरू हुआ था. सत्र के दौरान कुछ ही सांसदों ने इस मुद्दे पर सवाल उठाने की जहमत उठाई.
संसद के शीतकालीन सत्र में 17 दिसंबर तक लोकसभा और राज्यसभा में कुल 6800 सवाल पूछे गए, लेकिन इनमें से केवल 52 सवाल वायु प्रदूषण से जुड़े थे. यह कुल सवालों का मात्र 0.76 प्रतिशत है. लेकिन इसमें भी दिल्ली की हवा पर ध्यान खींचने वाले सवालों की संख्या सिर्फ 10 थी, यानी कुल सवाल के 0.14 प्रतिशत सवाल दिल्ली को आबोहवा को लेकर पूछे गए थे.
इसके अलावा, वायु प्रदूषण का मुद्दा चार सांसदों ने अपनी टिप्पणियों में उठाया, जबकि तीन अन्य सांसदों ने सदन में इससे संबंधित बयान दिए. हालांकि, वायु प्रदूषण पर न तो कोई प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया गया और न ही खास जिक्र किया गया.
अगर सवालों, मौखिक टिप्पणियों और बयानों को ध्यान में रखा जाए तो संसद भवन में सांसदों की कुल संख्या में से 10 प्रतिशत से भी कम सांसदों ने खुद को इस मुद्दे से जोड़ा.
इस बीच, तीन सासंदों के सवालों के जवाब में सरकार ने तुंरत वही बात दोहराई कि वायु प्रदूषण से किसी की मौत के कोई सबूत नहीं मिले हैं और न ही इससे जुड़ी कोई बीमारी सामने आई है.
लेकिन वो सवाल क्या थे और किन सांसदों ने वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे पर सबका ध्यान खींचने की कोशिश की? न्यूज़लॉन्ड्री ने उन सवालों और सांसदों पर नज़र डाली है, जो इस मुद्दे पर सक्रिय दिखे.
दिल्ली से राज्यसभा सांसदों से कोई सवाल नहीं
लोकसभा में इस सत्र में कुल 4,000 सवाल पूछ गए. इनमें से 37 सांसदों की ओर से पूछे गए केवल 29 सवाल ही वायु प्रदूषण से ताल्लुक रखते थे. इनमें से छह सवाल दिल्ली-एनसीआर से जुड़े थे, पांच केंद्र सरकार के प्रमुख राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) पर केंद्रित थे और आठ छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण की चिंताओं से जुड़े थे.
राज्यसभा में 25 सांसदों ने वायु प्रदूषण को लेकर 23 सवाल पूछे. इनमें से केवल चार सवालों में दिल्ली का जिक्र था, जबकि बाकी के ज्यादातर राष्ट्रव्यापी एयर क्वालिटी में गिरावट और एनसीएपी (NCAP) के अमल में लाए जाने से संबंधित थे.
इस मुद्दे पर सवाल उठाने वाले कुल 62 सांसदों में से 24 भाजपा के, 17 कांग्रेस के और दो-दो सांसद आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के थे. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, बीजू जनता दल और शिवसेना जैसे कई दलों के एक-एक सांसद ने वायु प्रदूषण को लेकर सवाल किए.
वायु प्रदूषण से जुड़े सभी सवाल इन छह मंत्रालयों को संबोधित किए गए थे: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, ऊर्जा मंत्रालय, भारी उद्योग मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय.
दिल्ली के सात लोकसभा सांसदों में से सिर्फ चार ने शहर के प्रदूषण संकट के बारे में सवाल उठाए. दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन राज्यसभा सांसदों में से किसी ने भी राजधानी की खराब एयर क्वालिटी के बारे में कोई सवाल नहीं पूछा.
दिल्ली के चांदनी चौक से भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने दिल्ली के बिगड़ते वायु प्रदूषण के गंभीर प्रभाव का मुद्दा उठाया. उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या दिल्ली सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए केंद्र सरकार की ओर से मुहैया किए गए धन और संसाधनों का पूरा इस्तेमाल किया है और अगर हां, तो इन संसाधनों का इस्तेमाल कैसे किया गया, इसका ब्यौरा कहां है. उन्होंने अपना सवाल पूरा करते हुए पूछा कि अगर फंड का इस्तेमाल नहीं किया गया है और इसे खर्च नहीं किया जा सका तो क्या इसकी जवाबदेही के लिए कोई तरकीब निकाली गई.
दिल्ली के तीन अन्य भाजपा सांसदों रामवीर सिंह बिधूड़ी, योगेंद्र चंदोलिया और हर्ष मल्होत्रा ने दिल्ली की एयर क्वालिटी में सुधार के लिए केंद्र सरकार की ओर से की गई पहलों के बारे में सवाल किया. उन्होंने वाहनों के प्रदूषण को रोकने के उद्देश्य से इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिए नई नीतियों, एयर क्वालिटी प्रबंधन आयोग (CAQM) की ओर से एयर क्वालिटी में सुधार के लिए उठाए गए कदमों और एनसीएपी की प्रगति के बारे में भी जानकारी मांगी.
कर्नाटक के भाजपा सांसद पीसी गद्दीगौदर ने दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में शुरू किए गए 'प्रदूषण क्लिनिक' के बारे में सवाल पूछा. उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सरकार की बाकी के शहरों में भी इसी तरह के क्लीनिक स्थापित करने की कोई योजना है.`
बिहार के भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण को रोकने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ स्थापित करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने के लिए की गई कार्रवाई के बारे में पूछा. उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सरकार ने वाहनों के उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषकों और निर्माण से जुड़ी धूल जैसे अन्य स्थानीय स्रोतों की तुलना में दिल्ली में पराली जलाने के लिए जिम्मेदार वायु प्रदूषण के अनुपात को निर्धारित करने के लिए अध्ययन कराया है.
पराली जलाने के मुद्दे का संसद के दोनों सदनों में प्रदूषण से जुड़े कई सवालों में जिक्र किया गया.
लोकसभा में भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता और शिवसेना सांसद धैर्यशील माने ने दिल्ली-एनसीआर में एयर क्वालिटी को खराब होने से रोकने के लिए पराली जलाने पर किसानों पर लगाए गए जुर्माने का ब्योरा मांगा था. एक दूसरा सवाल केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को पराली के प्रबंधन के लिए मुहैया की जाने वाली सहायता पर केंद्रित था.
राज्यसभा में दिल्ली की गिरती एयर क्वालिटी में पराली जलाए जाने से होने वाले प्रदूषण के अलावा कुछ प्रदूषण नियंत्रण उपायों की व्यवहार्यता और जहरीली हवा से होने वाली मौतों के बारे में सवाल उठाए गए.
आप पार्टी के सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने संसद में सवाल किया कि क्या वायु प्रदूषण से निपटने के मद्देनजर आर्टीफिशियल बारिश की संभावना पर आकलन करने के लिए दिल्ली सरकार ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अधिकारीयों और अन्य संबंधित पक्षों के साथ बैठक करने का कोई प्रस्ताव रखा है?
कांग्रेस के सांसद प्रमोद तिवारी ने सवाल किया कि क्या देश के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण से 7 फीसदी मौतें हो रही हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली में PM 2.5 की उच्च फ्रैक्शन के कारण सबसे ज्यादा सालाना मौतें हो रही हैं. PM 2.5 एक प्रमुख वायु प्रदूषक है.
सरकार ने दिल्ली की प्रदूषित हवा के लिए कई वजहों को ज़िम्मेदार ठहराया, जिनमें गाड़ियों और उद्योगों से निकलने वाला धुआं, खुले में कचरा जलाना और बायोमास जलाना शामिल हैं. सरकार के मुताबिक, मानसून के बाद और सर्दियों के महीनों में कम तापमान, हवा की कम ऊंचाई, इनवर्ज़न की स्थिति और ठहरी हुई हवाएं प्रदूषकों को फंसा देती हैं, जिससे क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ जाता है.
सरकार ने कहा कि इसे पराली जलाने और पटाखों जैसे मौसमी कारणों से और भी बढ़ावा मिलता है. संसद में पेश किए गए एक जवाब में यह भी बताया गया कि इन सभी कारणों का मिलाजुला असर दिल्ली की हवा को ज़हर बना रहा है.
एनसीएपी की चर्चा
वायु प्रदूषण से जुड़े सवालों में से एक बड़ी संख्या (कुल 52 में से 14 सवाल) राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) पर केंद्रित रही. यह केंद्र सरकार की प्रमुख योजना है, जिसके तहत 130 से ज़्यादा शहरों को उनकी हवा बेहतर करने के लिए फंड दिया जाता है.
इन सवालों में से ज़्यादातर सवाल एनसीएपी योजना के लागू होने की स्थिति, इस योजना के तहत हासिल की गई प्रगति और कई शहरों की ओर से फंड का इस्तेमाल करने पर थे. 2019 में शुरू हुआ एनसीएपी कई मंत्रालयों के जवाबों में भी शामिल रहा.
हालांकि, कार्यक्रम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे कि धन का कम इस्तेमाल, संबंधित शहरों की ओर से एयर क्वालिटी टारगेट को हासिल नहीं करना. एक जवाब में, सरकार ने कबूल किया कि कार्यक्रम लॉन्च के बाद से एनसीएपी के तहत आवंटित धन का केवल 70 फीसदी इस्तेमाल किया गया है.
प्रदूषकों को नियंत्रण में रखना
कुछ सांसदों ने वायु प्रदूषण के कारणों की पहचान करने और उनसे निपटने को लेकर सदन का ध्यान खींचा. तेलुगु देशम पार्टी के सांसद गंटी हरिश माधुर ने एक सवाल में शहरी इलाकों में ग्राउंड-लेवल ओज़ोन को अहम प्रदूषक बताया. उन्होंने पूछा कि क्या सरकार ने ग्राउंड-लेवल ओज़ोन के कई स्रोतों और इसके संपर्क से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान की है.
समाजवादी पार्टी की इकरा चौधरी ने कूड़े से ऊर्जा बनाने वाले प्लांट्स से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में पूछा.
पहली बार सांसद बने यदुवीर वाडियार ने भारत में कोयला आधारित बिजली उत्पादन और उससे होने वाले उत्सर्जन के आंकड़े मांगे हैं. एक अलग सवाल में, उन्होंने नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति के तहत कार्बन उत्सर्जन में कमी पर भी सवाल उठाया है.
वायु प्रदूषण पर कई सवालों के जवाब में सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसी केंद्रीय एजेंसियों की ओर से उठाए गए उपायों, एनसीएपी के तहत शुरू की गई पहलों, पराली जलाने पर अंकुश लगाने के प्रयासों और इसी तरह के उपायों का बार-बार जिक्र किया.
दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के कदमों पर सरकार ने 1,500 से ज्यादा स्टेशनों के नेटवर्क के जरिए एयर क्वालिटी की निगरानी पर रोशनी डाला, जिसमें लाइव डेटा ट्रैकिंग, दैनिक एक्यूआई रिपोर्ट और सीपीसीबी की ओर से ट्रेंड एनालिसिस भी शामिल थे.
सरकार ने कहा कि वाहनों, उद्योगों और निर्माण गतिविधियों जैसे प्रमुख स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को दूर करने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) और सेक्टर पर आधारित नीतियों जैसी नियामक कार्रवाइयों को लागू किया गया था.
इसमें स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने, डीजल जनरेटर सेट को फिर से लगाने और अन्य उपायों के बीच पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ईवी और सीएनजी बसों में बदलने जैसे कदमों को भी रेखांकित किया गया है. सरकार ने कहा कि पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के लिए वित्तीय सहायता और जैव ईंधन के इस्तेमाल की नीतियां शुरू की गई हैं.
हालांकि, सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए अपनी कई पहलों को सूचीबद्ध करने की जल्दी की है, लेकिन इसने वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों पर कोई ब्यौरा नहीं दिया. इस मुद्दे को कम से कम तीन सांसदों ने अपने सवालों में शामिल किया.
यह कबूलते हुए कि वायु प्रदूषण श्वसन संबंधी बीमारियों और संबंधित बीमारियों की वजहों में से एक है, सरकार ने कहा कि "वायु प्रदूषण के कारण खास तौर से मौत/बीमारी का सीधा संबंध स्थापित करने" के लिए कोई निर्णायक डेटा उपलब्ध नहीं है.
सरकार ने अपनी एक प्रतिक्रिया में कहा, "वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर कई और बातों का एक मिलाजुला प्रभाव है. इसमें फूड हैबिट, काम-धंधे की आदतें , सामाजिक आर्थिक स्थिति,अतीत की बीमारियां, इम्यूनिटी और आनुवंशिकता वगैरह शामिल हैं. इसमें वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए कदमों को भी सूचीबद्ध किया गया है.
'हमारे राजनीतिक ढांचे में प्रदूषण'
लोकसभा में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने 17 दिसंबर को एक बयान दिया था जिसमें प्रदूषण के कारण होने वाले स्वास्थ्य मुद्दों को हल करने के लिए व्यापक उपायों की जरूरत के बारे में बताया गया था. भाजपा सांसद रामवीर सिंह बिधुड़ी ने 28 नवंबर और दिलीप सैकिया ने 29 नवंबर को दिल्ली में एयर क्वालिटी से जुड़े मुद्दे पर बयान दिया था.
12 दिसंबर को आपदा प्रबंधन अधिनियम में संशोधन पर चर्चा के दौरान ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (AIMIM) पार्टी के प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी और आरएलपी के नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने वायु प्रदूषण और औद्योगिक प्रदूषण को आपदा प्रबंधन के चश्मे से देखने की जरूरत बताई. ओवैसी ने मांग की कि आपदा की परिभाषा का विस्तार किया जाए, जिसमें वायु प्रदूषण और हीट वेव्स (गर्मी की लहरें) को भी शामिल किया जाए.
इस बीच, 6 दिसंबर को राज्यसभा में केरल से कांग्रेस (एम) के सांसद जोस के मणि ने देश में गैर-संक्रामक बीमारियों के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि बिगड़ती वायु गुणवत्ता इन बीमारियों के कारणों में से एक है.
16 दिसंबर को कपिल सिब्बल ने संविधान के 75 साल की यात्रा पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए प्रदूषण को राजनीतिक रूपक के तौर पर पेश किया था. उन्होंने कहा, “यह संविधान एक अद्भुत दस्तावेज है. और जब हम सब यहां बैठे हैं, हम राजनीतिक आकाश में सितारों की तरह हैं. लेकिन अगर आप आज आसमान को देखें, तो यह प्रदूषित है. आप सितारों को भी नहीं देख सकते हैं. और मैं प्रदूषण के बारे में चिंतित हूं, जो हमारे राजनीतिक ढांचे में प्रवेश कर गया है और इसकी वजह हमारी नाकामी है.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने प्रतिक्रिया के लिए इनमें से कई सांसदों को संपर्क किया है. अगर उनकी कोई प्रतिक्रिया आती है तो उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
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अनुवाद: चंदन सिंह राजपूत
नोट: यह लेख वायु प्रदूषण को लेकर हमारी मुहिम ‘हवा का हक’ का हिस्सा है. आप इससे कैसे जुड़ सकते हैंं, जानने के लिए यहां क्लिक करें और हमें समर्थन देने के लिए यहां क्लिक करें.
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