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अवधेश कुमार

बाबा सिद्दीकी हत्याकांड: “जो एक बकरी नहीं मार सकता वह ‘शेर’ को कैसे मारेगा”

मुंबई के चर्चित नाम बाबा सिद्दीक़ी की 12 अक्टूबर को गोली मारकर हत्या कर दी गई. सिद्दीकी दो दशकों तक कांग्रेस में रहे लेकिन फिलहाल वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी- अजित पवार गुट) के नेता थे. उनकी हत्या के बाद से भारतीय राजनीति खासतौर से महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल सा आ गया है. इसकी एक वजह राज्य में जल्द ही होने वाले चुनाव भी हैं. 

मुंबई पुलिस डीसीपी क्राइम ब्रांच दत्ता नलवाड़े के मुताबिक, घटनास्थल पर तीन लोगों ने फायरिंग की. इस दौरान दो आरोपियों को पकड़ लिया गया जबकि एक भागने में कामयाब रहा. जिसकी तलाश जारी है.

पकड़े गए आरोपियों की पहचान हरियाणा के कैथल निवासी 23 वर्षीय गुरमेल बलजीत सिंह और उत्तर प्रदेश के बहराइच निवासी 19 वर्षीय धर्मराज कश्यप के रूप में हुई है. वहीं फरार आरोपी की पहचान शिव कुमार गौतम उर्फ शिवा निवासी ब​हराइच के रूप में हुई है. धर्मराज कश्यप और शिव कुमार गौतम दोनों जिला बहराइच के गांव गंडारा के रहने वाले हैं. दोनों आपस में दोस्त और पड़ोसी भी हैं. 

न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने गंडारा पहुंचकर इन दोनों के परिवारों और गांव के लोगों से बात की. हमने गांव पहुंचकर वहां की मौजूदा स्थिति और इनके अतीत को भी झांका.

गंडारा गांव की एक सड़क. जिस पर पुलिस चौकी का बोर्ड लगा है.
गंडारा गांव की एक सड़क.

लखनऊ के करीबी जिले बहराइच का ये गांव बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद से चर्चा में बना हुआ है. करीब 12 हजार की आबादी वाले इस गांव में 70 फीसदी मुसलमान और 30 फीसदी हिंदू रहते हैं. वहीं करीब 200 घर दलितों के हैं. अन्य जगहों की तरहां यहां भी दलितों की स्थिति अच्छी नहीं है. दोनों आरोपियों का घर गांव के आखिरी छोर पर है. शिव कुमार का घर गांव का अंतिम घर है. एक कमरा ईटों से तो बाकी घर छप्पर का है. आर्थिक रूप से कमजोर इस दलित परिवार की स्थिति ऐसी है कि अगर एक दिन कमाई न हो तो घर पर शायद खाना भी न बने.  

लखनऊ से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर बसे गंडारा गांव को अब हर कोई जानने लगा है. पता पूछने पर लोग कहते नजर आते हैं कि अरे वही गांव, जहां के दो लड़कों का नाम (हत्या में) आया है. 

गांव में पहुंचने पर भी लोग घर की ओर इशारा कर देते हैं. साथ ही कहते हैं कि इनके चलते पूरा गांव बदनाम हो गया. बातचीत आगे बढ़ने पर गांव के लोग कहते हैं कि लड़के तो ऐसे नहीं थे. सीधे थे, कभी कोई गलत काम में तो उनका नाम नहीं सुना पर पता नहीं यहां से जाकर उनकी संगत कैसी हो गई कि इतना बड़ा अपराध कर दिया. 

गांव में अंदर जाने वाले रास्ते के किनारे पर कुछ लोग कुर्सी डाले बैठे हैं. दोनों आरोपियों के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि सीधे जाकर दाएं मुड़ जाना और किसी से भी पूछ लेना कोई भी बता देगा कि उनका घर कहां है. 

इस दौरान एक शख्स कहता है कि धर्मराज कश्यप मेरे यहां पेंट का काम करता था. स्वभाव का अच्छा था लेकिन पता नहीं पुणे गया था, मुंबई कैसे पहुंच गया. किसी ने क्या लालच दिया कि वो इतना बड़ा कांड कर दिया. हम तो उम्मीद भी नहीं कर सकते कि वो लड़का कभी ऐसा काम कर सकता था. कैमरे पर बात करने के सवाल पर वे कहते हैं कि मैं मुसलमान हूं, वो हिंदू हैं. इसलिए मैं बात नहीं कर सकता हूं.

एक अन्य शख्स ने कुछ दूरी पर खाली पड़ी जमीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि देखिए वहां पर धर्मराज कश्यप के पिता राधे मछली बेचा करते थे. तब धर्मराज वहां बाल्टी से पानी पहुंचाता था. वो अपने पिता के काम में हाथ बंटाता था, वो बाहर जाने से पहले यहीं घूमता रहता था. हमसे अक्सर बातचीत होती रहती थी.

यहां बैठे सभी लोगों ने दोनों आरोपियों की तारीफ तो की लेकिन किसी ने भी कैमरे पर बोलने से मना कर दिया. उनका कहना था कि पुलिस लगातार लोगों को गांवों से उठा रही है, जिस किसी से भी उनका कोई संपर्क निकलता है, उसी के घर पहुंच जाती है, इसलिए हम किसी भी पचड़े में फंसना नहीं चाहते हैं. 

इस बात की तस्दीक गांव के कई अन्य लोग भी करते हैं. हमने खुद गांव में पुलिसवलों को घूमते हुए देखा. हमने एक पुलिसकर्मी को एक लिस्ट लेकर गांव के लड़कों से पूछताछ करते हुए पाया. ऐसे कुछ लड़कों से हमने बात की. ये बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में जिसने भी धर्मराज कश्यप और शिवकुमार से फोन पर बात की है पुलिस उन्हें कॉल डिटेल के आधार पर पूछताछ के लिए उठा रही है. 

गांव के ही अली हुसैन को गंडारा पुलिस चौकी बुलाया जा रहा है. अली, शिव कुमार के पड़ोसी हैं. वे बताते हैं, “मेरी शिव के नंबर पर शायद दो बार बात हुई है. पुलिस मुझसे कह रही है कि मैं शिवराज से टेलीग्राम पर बात करता था. जबकि मैंने कभी टेलीग्राम का प्रयोग ही नहीं किया है.” 

अली आगे कहते हैं, “पुलिस मुझे नोटिस देने आई थी लेकिन मैंने रिसीव नहीं किया, और अपने वकील से बात की. मेरे वकील ने पुलिस को नोटिस का जवाब दे दिया है. तब से हमारे पास कोई नहीं आ रहा है.”

बता दें कि धर्मराज कश्यप और शिव कुमार गौतम, पुणे स्थित हरीश की दुकान पर कबाड़ का काम करते थे. करीब एक महीने पहले हरीश गंडारा में अपने घर आए थे, इस बीच इनका एक्सीडेंट हो गया. इसके बाद ये अपनी दुकान पर नहीं जा सके. इसी दौरान बाबा सिद्दीकी की हत्या हो गई. जैसे ही पता चला कि मारने वाले तीन आरोपियों में से दो हरीश के यहां काम करते थे तो हरीश को भी घर से उठा लिया गया.

हम हरीश के घर पहुंचे. जहां हमें उनकी मां और बेटी मिलीं. हरीश के पिता की 10 साल पहले ही मौत हो गई है. उनकी मां श्याम कली कहती हैं, “मेरे बेटे हरीश को पुलिस घर से उठाकर ले गई है. हरीश पुणे में कबाड़ का काम करता था. 2-3 साल से वहां रह रहा था. मेरी तबीयत खराब थी तो मैंने कहा था कि कुछ दवा-पानी करवा दे तो वह आया था लेकिन उसका यहां आकर एक्सीडेंट हो गया. फिर वह जा नहीं पाया. उसको पुणे से यहां आए हुए एक महीना हो गया. शिव और धर्मराज कश्यप मेरे बेटे हरीश की दुकान पर ही काम करते थे.” 

पढ़ाई

शिव कुमार ने पांचवी तक तो धर्मराज कश्यप ने 10वीं तक की पढ़ाई की है. दोनों ने गांव के ही अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई की है. 

धर्मराज कश्यप ने सरदार पटेल इंटर कॉलेज से पढ़ाई की है. यहां के प्रबंधक पवन सिंह कहते हैं, “धर्मराज ने 2019-21 यानी दो साल तक पढ़ाई की है. तब कोरोना काल चल रहा था. बच्चे स्कूल नहीं आते थे. इसलिए इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन यहां से इसने 9वीं और 10वीं की है.” 

गांववालों के मुताबिक, इसके बाद धर्मराज ने पढ़ाई नहीं की. वह बाहर चला गया था. बीच-बीच में गांव आता था. 

वहीं, शिव कुमार ने गांव के ही स्कूल से 5वीं तक पढ़ाई की है.

उनको पढ़ाने वाले शिक्षक राकेश गौतम कहते हैं, “उन्होंने हमारे यहां यानी यूपीएस (अपर प्राइमरी स्कूल) गंडारा से 2014 से 2018 तक पढ़ाई की है. 2018 में उन्होंने यहां से 5वीं कक्षा पास की.” 

वे आगे कहते हैं, “हम बाहर के हैं. यहां सिर्फ नौकरी कर रहे हैं. गांव में ज्यादा आना जाना नहीं है. इसलिए हम धर्मराज कश्यप के बारे में भी ज्यादा नहीं जानते हैं.”

पेशकार कश्यप
पेशकार कश्यप

दोनों आरोपियों के पड़ोसी और दोस्त पेशकार कश्यप कहते हैं कि वे दोनों टेंट हाऊस, ईंट भट्टा या मजदूरी करते थे. लेकिन पता नहीं उन्होंने ऐसा कैसे कर दिया, उन दोनों में इनती हिम्मत नहीं थी. उन्हें किसी ने भड़काकर या फिर बहकाकर ऐसा काम करवाया है. उनका यहां गांव की चौकी में कोई खराब रिकॉर्ड नहीं है. उनका आज तक किसी अपराध में नाम नहीं आया है.

वे जब गांव से गए थे तो कबाड़ का काम करने गए थे. फिर पता नहीं वे किसके संपर्क में आए कि उनका लिंक मुंबई से हो गया. गांव में आज तक उन्होंने किसी से कोई झगड़ा तक नहीं किया है. जब इस बात का पता चला तो हम भी हैरान थे कि उन्होंने ऐसा कैसे कर दिया. शिवा पहले भी इसी कबाड़ के काम के लिए कई बार वहां जाकर गांव वापस आ चुका है. 

पेशकार कहते हैं कि हम इतना चाहते हैं कि इन दोनों भोले लड़कों का इस्तेमाल करने वाले मास्टरमाइंड का पता चले. इस मामले की ठीक से जांच होना बहुत जरूरी है.  

हमने इन दोनों आरोपियों के परिजनों से भी मुलाकात की.

धर्मराज कश्यप के भाई सुखराम कश्यप
धर्मराज कश्यप के भाई सुखराम कश्यप

धर्मराज कश्यप के बड़े भाई सुखराम गांव में ही रोड किनारे खाने के सामान का ठेला लगाते हैं. जब हम उनके यहां पहुंचे तो वे मछली धो रहे थे. धोने के बाद वे मछली को कढ़ाई में तलने के लिए छोड़ देते हैं.

आप धर्मराज के भाई हैं? इस पर पहले तो वे मना कर देते हैं लेकिन बाद में कहते हैं कि मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है. हम अपना-अलग खा कमा रहे हैं, उसका हमें ज्यादा नहीं पता है. क्या करता था, क्या नहीं. 

वे कहते हैं कि हम पांच भाई हैं. तीन की शादी हो चुकी है. धर्मराज सबसे छोटे हैं. धर्मराज दो महीने पहले काम की कहकर पुणे गया था. वहां जाकर पता नहीं क्या किया, इधर-उधर घूमने लगे. हम तो यहां थे, हमें तो कुछ पता ही नहीं है.  

हमारा एक भाई कपड़े की दुकान पर काम कर रहा है, दूसरा मछली बेचता है, मैं ठेला लगाता हूं. बाकी के दो भी ऐसे ही मेहनत-मजदूरी करते हैं. पहले पिता जी मछली बेचते थे लेकिन उनकी आंखें खराब हो गई हैं. उन्हें कम दिखता है तो वे अब काम नहीं करते हैं. 

वे बताते हैं कि पुणे जाने के बाद उनकी धर्मराज से कोई बात नहीं हुई.  

स्थानीय पुलिस के मुताबिक, धर्मराज कश्यप का ज़िले में कोई भी आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. ये पहली बार है जब इस तरह के मामले में उसका नाम आया है.

शिव के माता पिता ने क्या कहा

जब हम शिव कुमार के घर पहुंचे तो उनकी मां हमें देखते ही रोने लगती हैं. वे बीमार हैं और बार-बार घर बर्बाद होने की बात करती हैं. वे कहती हैं, “पास में एक हरीश नाम का लड़का रहता है. वह एक दिन आकर बोला कि हमारे यहां आकर कबाड़ का काम कर लो. शिव उसकी बात मानकर पुणे गया. मुझे मुंबई के बारे में नहीं पता. शिव होली के आठ दिन बाद यहां से चला गया. बीच-बीच में कभी फोन आता था. 10 दिन पहले फोन आया था तो बोल रहा था कि दिवाली पर घर आएगा. शिव से पहले धर्मराज कश्यप वहां काम करता था. उसके बाद इसे भी फोन करके बुला लिया. शिव का करीब तीन साल से पुणे में आना जाना था."  

शिव के परिवार में तीन बहन और तीन भाई हैं. शिव दूसरे नंबर के हैं. इनसे बड़ी उनकी एक बहन हैं, जिनकी शादी हो चुकी है और वो राजस्थान में रहती हैं. बाकी सभी भाई- बहन नाबालिग हैं.

शिव कुमार की मां सुमन
शिव कुमार के पिता बालकिशन
शिव कुमार के पिता बालकिशन

शिव की मां सुमन कहती हैं, "मैं भी खेतों में मजदूरी करती हूं. मेरे पति ईंट-गारा का काम करते हैं. अगर हम एक दिन मजदूरी नहीं करेंगे को खाने को सब्जी भी नहीं आएगी." 

वहीं शिव के पिता बालकिशन कहते हैं कि मेरी बात एक महीने पहले हुई थी. घर पर फोन नहीं था तो वह करीब एक महीने पहले ही हरीश के हाथ एक फोन भेजा था. वे कहते हैं कि इन दोनों लड़कों को बहकाया गया है, ये लोग ऐसे नहीं थे. 

आखिर में शिव के पिता कहते हैं कि अगर आपके माध्यम से मेरे बेटे तक मेरी बात पहुंच रही हो तो वो जहां भी हो नजदीकी थाने में सरेंडर कर दे. हम बस अब यही चाहते हैं.

क्या कहते हैं धर्मराज कश्यप के माता पिता

गांव की एक संकरी सी गली धर्मराज कश्यप के घर लेकर जाती है. कश्यप के माता-पिता चारपाई पर बैठे हैं. उनकी मां कुसुम रो रही हैं. जब हम पहुंचे और बात करनी शूरू की तभी मुंबई क्राइम ब्रांच की एक टीम उनके घर आती है. ये लोग पूछताछ करने के लिए हमसे कुछ देर में बात करने की गुजारिश करते हैं. उन्होंने करीब 15 मिनट तक आरोपी के माता-पिता से बातचीत की. अपनी डायरी में कुछ लिखा. जाते समय एक अधिकारी ने धर्मराज कश्यप के माता-पिता के साथ फोटों खिचवाई. 

धर्मराज कश्यप की मां कुसुम और पिता राधे कश्यप.
धर्मराज कश्यप की मां कुसुम और पिता राधे कश्यप.

धर्मराज की मां कुसुम कहती हैं कि बुढ़ापा कैसे कटेगा, हमारा क्या होगा. बेटे ने दिपावली पर आने की बात कही थी, लेकिन उससे पहले ही यह सब हो गया. मेरी बात 20 दिन पहले हुई थी. यहां से गए हुए उसे दो महीने हुए थे. बेटे पर लगे आरोपों पर वह कहती हैं कि वह बहुत सीधा लड़का था. जो लड़का मछली नहीं मार सकता है, वह कैसे किसी आदमी को मार सकता है. 

क्या करते थे धर्मराज? इस पर वह कहती हैं, “वह कुछ नहीं करता था. मेरे दोनों बेटे- धर्मराज और अनुराग, एक कपड़े की दुकान पर मजदूरी करते थे. लेकिन दो महीने से वह कबाड़ के काम के लिए पुणे में था. जब घर पर पुलिस आई तो हमें इस घटना के बारे में पता चला. बाद में सब मीडिया वाले भी आए. 

उनके पिता राधे कहते हैं, “मेरे बेटे से मेरी बात बहुत कम होती थी. हमें तो यही बता कर गया था कि कबाड़ का काम पुणे जा रहा है.”

हत्या के आरोप पर वह कहते हैं, “सवाल ही नहीं होता है कि वह किसी की हत्या कर दे. जो बकरी नहीं मार सकता है, वह शेर कैसे मार सकता है. उसने गांव में आज तक कोई झगड़ा नहीं किया. कैसे मान लें कि यह सब कर सकता है. कभी उसे किसी ने कुछ कहा भी है तो कभी उसने पलट कर जवाब नहीं दिया.”

सिद्दीकी की हत्या के बाद कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया. इनमें एक गुल्ले कश्यप भी हैं. वे बीते सोमवार यानि 21 अक्टूबर को ही मुंबई से अपने तीन साथियों के साथ गांव गंडारा लौटे हैं. 

वे कहते हैं कि हमें तीन लड़कों को मुंबई पुलिस ने पुणे से उठाया था. इनमें मेरे अलावा अर्जुन और मोनू हैं. मोनू हरीश का भाई है. हमें 12 अक्टूबर को ही पुलिस ने उठा लिया था. एक सप्ताह रखने के बाद 19 अक्टूबर को छोड़ा है. अब हम तीनों अपने घर आ गए हैं.  

गुल्ले कहते हैं, “उन्होंने हरीश के यहां पुणे में पहले दो-तीन महीने काम किया था लेकिन फिर वे घर पर आ गए थे. फिर से दोबारा पुणे में काम कर रहे थे. इस बीच 12 अक्टूबर की रात को उन्हें क्राइम ब्रांच ने उठा लिया. लेकिन अब एक सप्ताह तक पूछताछ करने के बाद छोड़ दिया है.”

वे बताते हैं कि पुलिस उन्हें कह रही थी कि जब तक शिव नहीं मिल जाता तब तक उन्हें छोड़ेंगे नहीं. हालांकि, यह कंफर्म नहीं है कि शिव मिला है या नहीं लेकिन फिलहाल हमें छोड़ दिया है.

वहीं, शिव के चाचा संतोष का दावा है कि शिव मुंबई पुलिस को मिल गया है. तभी इन लड़कों को छोड़ा है. वे बताते हैं कि जब इन लड़कों को छोड़ा तो इन्होंने कहा कि शिव मिल गया है, हमने उसे वहां देखा है, लेकिन गांव आने के बाद इन लोगों ने अपना बयान बदल दिया है.   

प्रधान प्रतिनिधि हसनैन कमाल.
प्रधान प्रतिनिधि हसनैन कमाल.

इस पूरे मामले पर गांव के प्रधान प्रतिनिधि हसनैन कमाल कहते हैं, “जब हमारे गांव के दो बच्चों का नाम बाबा सिद्दीकी की हत्या में आया तो यह हमारे लिए बहुत ही निंदनीय और सोचनीय घटना थी. इसके बाद से हमारे गांव में लगातार पुलिस चक्कर काट रही है. इन लड़कों का यहां तो व्यवहार ठीक था लेकिन बाहर जाकर किसके संपर्क में आए वो अलग बात है.” 

वे बताते हैं कि गांव से दो लोगों को और उठाया गया है. इनमें अनुराग कश्यप और हरीश हैं. हरीश की दुकान पर शिव और धर्मराज काम करते थे. जबकि अनुराग, धर्मराज का भाई है. 

वे आगे कहते हैं कि कॉल डिटेल्स के आधार पर लोगों को चिन्हित किया जा रहा है और पूछताछ की जा रही है. उनकी उम्र काफी कम है. हो सकता है कि किसी के बहकावे में आकर ऐसा काम किया हो. 

उन्होंने कहा, "फिलहाल गांव में जहां हिंदू-मुस्लिम मिश्रित आबादी है, वहां पुलिस 24 घंटे पहरा दे रही है. मेरी सुरक्षा में भी एक पुलिसकर्मी तैनात किया गया है. हालांकि, मैंने कोई सुरक्षा नहीं मांगी है. मैंने चौकी इंचार्ज से पूछा तो कहा गया कि ऊपर से आदेश है. इस सुरक्षा के बारे में लिखित में भी कुछ नहीं दिया गया है."

सिद्दीकी को इफ्तार पार्टी का आइकन भी कहा जाता था. जहां हर साल नेताओं से लेकर फ़िल्मी सितारों का तांता लगता था. फिलहाल क्राइम ब्रांच ने 14 आरोपियो को गिरफ्तार किया है. जिनमें दो शूटर और हथियार सप्लायर भी शामिल हैं. इनमें आखिरी गिरफ्तारी बुधवार देर शाम को हुई है. यहां से पुणे निवासी 22 वर्षीय रुपेश राजेंद्र मोहोल, 19 वर्षीय करण राहुल साल्वे और 20 वर्षीय शिवम अरविंद कोहाड़ को गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है. हालांकि, अभी तक पूछताछ में यह साफ नहीं हो पाया है कि आरपियों ने सिद्दीकी की हत्या क्यों की. बाबा सिद्दीकी की हत्या मामले में शूटर शिवकुमार गौतम सहित और कई आरोपी भी अभी भी फरार हैं.

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