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अवधेश कुमार

दिल्ली में वायु प्रदूषण: दिल्ली सरकार के वाहन दौड़ रहे बिना जांच और प्रमाणपत्र के

दिल्ली में खराब हवा की समस्या साल दर साल पेश आती है. इस बढ़ते वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में है यहां की सड़कों पर लगातार बढ़ रहे वाहनों की संख्या. बिगड़ती आबोहवा को सुधारने के लिए कुछ नियम कानून बनाए गए हैं. मसलन, हर साल गाड़ियों का प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र बनवाना अनिवार्य है. इसी तरह डीजल की गाड़ियां दस साल और पेट्रोल की गाड़ियां पंद्रह साल के बाद दिल्ली की सड़कों पर नहीं चल सकतीं. 

लेकिन हमारे पास मौजूद दस्तावेजों से पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली सरकार की अधिकतर गाड़ियां बिना किसी प्रदूषण नियंत्रण सर्टीफिकेट के दौड़ रही हैं, इनमें से बहुतेरी अपना 10 और 15 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद भी दौड़ रही हैं. बहुत सी गाड़ियां ऐसी हैं जिनका इंश्योरेंस नहीं है. यही नहीं इन वाहनों की जरूरी सर्विस भी समय पर नहीं होती है. बिना सर्टिफिकेट वाले इन सरकारी वाहनों से निकलने वाला हानिकारक धुआं वायु प्रदूषण की स्थिति को और भी बदतर कर रहा है.

मोटर व्हीकल डिपार्टमेंट के मुताबिक, दिल्ली सरकार के विभिन्न विभाग अपने उपयोग के लिए डीजल और पेट्रोल से चलने वाली करीब तीन हजार गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं. इनमें ई-वाहन शामिल नहीं हैं. हमारे पास दिल्ली सरकार के ऐसे 107 वाहनों की एक सूची है. 

एमपरिवहन एप से चेक करने पर हमने पाया कि दिल्ली सरकार के इन 107 वाहनों में कम से कम 66 के पास प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र नहीं थे. लेकिन फरवरी 2024 से इस साल फरवरी के बीच केवल छह वाहनों को पीयूसी प्रमाणपत्र न होने के कारण चालान जारी किए गए. बाकी सब बिना पीयूसी के दौड़ रही हैं. इन गाड़ियों में इनोवा, स्विफ्ट, अर्टिगा और जिप्सी आदि शामिल हैं. यह गाड़ियां डीएम, एडीएम, एसडीएम, ईएम, कमिश्नर व अन्य अधिकारियों की सेवा में लगी हैं. 

इसकी तुलना आप आम दिल्लीवासी से कीजिए. अक्टूबर से दिसंबर के बीच आप पाएंगे कि बड़े पैमाने पर दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस नाके लगाकर चेकिंग करती है, बड़े पैमाने पर चालान करती है. ग्रैप (GRAP) टू, थ्री और फोर जैसे प्रावधान लागू होते हैं, जिसके तहत बहुत सी गाड़ियां सड़कों से हट जाती हैं, लेकिन दिल्ली सरकार की सारी गाड़ियां बिना रोकटोक बिना किसी मानक को पूरा किए, दौड़ती रहती हैं. 

क्या है ये मामला

एनजीटी में यह मामला दिल्ली सरकार के शाहदरा जिला विकास समिति के अध्यक्ष और पूर्वी दिल्ली के रोहतास नगर विधानसभा से भाजपा के विधायक जितेंद्र महाजन ने दायर किया था. उन्होंने यह केस अपने पुराने सरकारी वाहन से हो रहे प्रदूषण के व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर दायर किया था. 

महाजन ने हमें बताया, “जनवरी 2024 में उनका राज्य सरकार द्वारा आवंटित वाहन अत्यधिक वायु प्रदूषण फैला रहा था. जब वाहन के पीयूसी प्रमाणपत्र की जांच की गई तो मैंने पाया कि वह समाप्त हो चुका था. मैंने पीयूसी समाप्त होने की बात संबंधित प्राधिकरण से कई बार जाहिर की, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. मैंने दिल्ली के उपराज्यपाल, तत्कालीन विधानसभा स्पीकर रामनिवास गोयल, मुख्य सचिव दिल्ली, डिवीजनल कमिश्नर दिल्ली और डीएम शाहदरा समेत अन्य संबंधित अधिकारियों को इसकी लिखित शिकायत भी की.”

कोई कार्रवाई नहीं होता देख महाजन ने दिल्ली सरकार द्वारा अपने अधिकारियों को दिए गए सभी सरकारी वाहनों की पीयूसी की स्थिति को खंगालना शुरू कर दिया. उन्होंने पाया कि अधिकांश सरकारी वाहनों का पीयूसी और इंश्योरेंस समाप्त हो चुका था. इसके बाद उन्होंने एनजीटी का रुख करने का निर्णय लिया. 

एनजीटी ने ऑर्डर में क्या कहा

16 दिसंबर 2024 को एनजीटी ने सुनवाई के बाद अपने ऑर्डर में जो कहा वह चौंकाने वाला है. इसके मुताबिक- दिल्ली सरकार के 107 वाहनों की सूची (जो कि महाजन ने पेश की थी) में कई डीजल और पेट्रोल वाहन हैं. जिनका जीवनकाल पूरा हो चुका है, बावजूद इसके ये सड़कों पर चल रहे हैं. संलग्न सूची में आप 31, 57, 60, 67 और 79 नंबर पर देख सकते हैं कि इन गाड़ियों का समय खत्म हो चुका है फिर भी ये दिल्ली सरकार के जत्थे में शामिल हैं.

शिकायतकर्ता महाजन द्वारा प्राप्त दस्तावेज के आधार पर एनजीटी ने अपने ऑर्डर में आगे लिखा- यह केवल 107 वाहनों की सूची है जबकि दिल्ली सरकार के पास ऐसे लगभग 3000 वाहन सड़कों पर चल रहे हैं. ऐसे में और भी कई वाहन हो सकते हैं जिनकी समय सीमा समाप्त होने के बाद भी सड़कों पर चल रहे हैं. यही नहीं वाहन बिना पीयूसी के सड़कों पर चल रहे हैं जबकि कई वाहनों का बीमा भी नहीं है. 

ऑर्डर में आगे कहा गया कि इसके लिए दिल्ली के आयुक्त या विभाग प्रमुख और दिल्ली के यातायात पुलिस विभाग के आयुक्त या प्रमुख जिम्मेदार हैं, जो सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों का पालन करने के लिए जिम्मेदार हैं. खासतौर से ओवरएज डीजल/ पेट्रोल वाहनों के संबंध में. एनजीटी ने साफ कहा कि जो अधिकारी ग्रैप आदेश को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं, वही इस आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं. 

इस मामले की अगली सुनवाई 20 फरवरी, 2025 को हुई. इसमें संबंधित विभागों के अधिकारियों ने उत्तर दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा है. इस मामले की अगली सुनवाई 26 मई, 2025 को होगी.

एनजीटी में महाजन के वकील केके मिश्रा कहते हैं, “20 फरवरी 2025 को हुई सुनवाई में दिल्ली सरकार की ओर से कोई नहीं आया था.” 

3000 की गाड़ियों का आंकड़ा आपके पास कहां से आया है? इस सवाल के जवाब में मिश्रा कहते हैं यह आंकड़ा मोटर व्हीकल डिपार्टमेंट ने दिया है. हमने उनसे पूछा था कि दिल्ली सरकार की कितनी गाड़ियां सड़क पर चल रही हैं.

मिश्रा कहते हैं, “‘ट्रैफिक पुलिस सिर्फ पीयूसी नहीं होने पर आम जनता से सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये से ज्यादा की वसूली करती है. दिल्ली में ग्रैप लगने के बाद सख्ती बढ़ जाती है. पुलिस हर चौथी गाड़ी को रोकती है और पीयूसी सर्टिफिकेट मांगती है. एक आंकड़ा है कि तीन से चार महीने के भीतर पौने तीन सौ करोड़ रुपये के आस पास इकट्ठा किया है.”

वे आखिरी में कहते हैं, “ये लोग आम जनता से करोड़ों रुपये का कलेक्शन कर रहे हैं. लेकिन डीएम और एसडीएम जिनके निर्देश पर सब कुछ होता है, वही लोग नियम तोड़ रहे हैं और आम जनता के चालान काट रहे हैं.” 

महाजन न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “107 गाड़ियों का तो हमने अपने स्तर पर निकाला है. मेरा अंदाजा है 10-20 गाड़ियों को छोड़ दिया जाए तो दिल्ली सरकार में चल रही सभी गाड़ियां बिना पीयूसी, इंश्योरेंस के चल रही हैं. मैंने खुद ने डीएम, एसडीएम, एडीएम की गाड़ियों के नंबर चेक किए हैं. किसी के पीयूसी सही नहीं हैं.” 

महाजन आगे जोड़ते हैं, “मैंने डीएम शाहदरा, डीएम ईस्ट, डीएम नॉर्थ ईस्ट और डीएम नई दिल्ली के नंबर व्यक्तिगत रूप से चेक किए हैं. मुझे किसी का भी पीयूसी वैध नहीं मिला.”

इस मामले पर दिल्ली ट्रैफिक स्पेशल सीपी अजय चौधरी कहते हैं, “जब हम लोग सड़क पर खड़े होकर चालान करते हैं तो यह नहीं देखते हैं कि हमें सिर्फ दिल्ली सरकार की ही गाड़ियों को पकड़ना है. ऑन रोड जो ट्रैफिक है हम उसे किसी एजेंसी की तरह नहीं देखते हैं, हम रोकते हैं और चालान करते हैं, तब हम किसी का फेवर या पक्षपात नहीं करते हैं.” 

वे आगे कहते हैं, “आप इस बारे में दिल्ली सरकार या उनके ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से पूछिए. दिल्ली सरकार के ट्रांसपोर्ट वाले खुद भी चालान करते हैं उनके पास ज्यादा पावर हैं.” 

पिछले एक साल में दिल्ली सरकार की कितनी गाड़ियों का चालान किया है? इस पर वे कहते हैं कि दिल्ली सरकार की गाड़ियों का तो मैं ब्योरा नहीं दे सकता हूं क्योंकि हम ऐसे किसी डिपार्टमेंट के हिसाब से डेटा नहीं रखते हैं.

पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में पीयूसी उल्लंघन के लिए 2.80 लाख वाहनों पर 280 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया और हजारों पुराने वाहन जब्त किए गए. यह कार्रवाई 1 अक्टूबर से 11 दिसंबर 2024 के बीच हुई.

मोटर वाहन अधिनियम

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 158 के अनुसार, प्रत्येक वाहन और इसके चालक के पास निम्नलिखित दस्तावेज होने चाहिए-

बीमा प्रमाणपत्र

पंजीकरण प्रमाणपत्र

प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (PUC)

ड्राइविंग लाइसेंस

बिना पीयूसी प्रमाणपत्र के वाहन चलाने पर निम्नलिखित सजा हो सकती है-

 (i) पंजीकरण प्रमाणपत्र का निलंबन

 (ii) दस हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों

 (iii) तीन महीने के लिए लाइसेंस निरस्त 

 (iv) छह महीने तक की सजा या 10 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों.

दिल्ली में ग्रैप और नियम 

ग्रैप (GRAP) यानी ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान. यह एक योजना है, जिसे वायु प्रदूषण की स्थिति को नियंत्रित करने और उसे सुधारने के लिए लागू किया जाता है. ग्रैप का उद्देश्य वायु गुणवत्ता में सुधार लाना है और प्रदूषण के स्तर को घटाना है, खासकर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में, जहां वायु प्रदूषण बहुत गंभीर समस्या बन जाता है. यह योजना विशेष रूप से उस समय लागू होती है जब वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है. यह चार चरण में लागू होती है जिसे ग्रैप 1, 2, 3 और ग्रैप 4 के नाम से जानते हैं.   

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