द मीडिया रंबल में मीडिया की विविधता पर चर्चा हुई. इस सत्र को द न्यूज़ मिनट की संस्थापक धन्या राजेंद्रन ने संचालित किया. सत्र में अंकुर पालीवाल, गुंजन सिंह, मीना कोटवाल और शादाब मोइजी ने हिस्सा लिया. सत्र की शुरुआत में एक सवाल पर अंकुर पालीवाल कहते हैं कि मीडिया में डायवर्सिटी के लिए जरूरी है कि शीर्ष पदों पर अलग-अलग समुदाय के लोगों को मौका दिया जाए. एक उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि अगर कोई रिपोर्टर क्वीर समुदाय की ख़बर करता है और शीर्ष पद पर कोई क्वीर संपादक है तो वह उसके महत्व को समझेगा. अगर रिपोर्टर कोई गलती करता है तो उसमें सुधार भी करेगा.
वह क्वीर समुदाय पर मीडिया की कवरेज पर कहते हैं, “मीडिया को क्वीर समुदाय की याद तभी आती है जब सुप्रीम कोर्ट से कोई फैसला आता है या क्वीर समुदाय के लोग प्राइड परेड करते हैं. यानी कुल मिलाकर हमें सिर्फ इवेंट्स पर ही याद किया जाता है.”
बता दें कि अंकुर पालीवाल एक स्वतंत्र समलैंगिक पत्रकार हैं और queerbeat.org के संस्थापक और प्रबंध संपादक हैं. यह भारत में LGBTQIA+ समुदायों के मुद्दों पर रिपोर्टिंग करती है.
‘द मूकनायक’ की फाउंडर मीना कोटवाल कहती हैं, “हम हमेशा मीडिया में डायवर्सिटी की बात करते हैं लेकिन क्या बदलाव आया है यह सबके सामने है. हम इनकी बात जरूर करते हैं लेकिन मीडिया में आज भी दलित आदिवासी आगे नहीं आ रहे हैं. हर साल हजारों बच्चे पढ़कर निकल रहे हैं लेकिन वो कहां हैं. उनको क्यों जगह नहीं मिल रही है. यह सोचने वाली बात है.”
कोटवाल, धान्या के एक सवाल पर कहती हैं कि हमें कोई शौक नहीं था कि हम अपना मीडिया चैनल शुरू करें, मैं भी चाहती थी कि कहीं अच्छी जगह पर काम करूं और अच्छी सैलरी लूं लेकिन जब हमें मौका ही नहीं दिया गया तो हमने मजबूरी में अपना मीडिया चैनल शुरू करना पड़ा.
कोटवाल, बीते साल की न्यूज़लॉन्ड्री और ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहती हैं कि 2021 में 88 फीसदी सवर्ण लोग मीडिया में थे. लेकिन अब उनकी संख्या 90 फीसदी हो गई है. यानी एक ही तबके के लोग और ज्यादा आ रहे हैं. बाकी लोगों को मौका क्यों नहीं मिल रहा है?
द मूकनायक का जिक्र करते हुए मीना कहती हैं कि आज हमारे छोटे से मीडिया संस्था में दलित, आदिवासी मुस्लिम और यहां तक की सवर्ण भी हैं. हमने डायवर्सिटी का खास ख्याल रखते हुए सबको मौका दिया है.
वहीं, क्विंट हिंदी के संपादक शादाब मोइज़ी कहते हैं कि मीडिया में जाति धर्म के साथ साथ हमें क्षेत्रीय और गांव से आए लोगों को भी मौका देने की जरूरत है.
वह कहते हैं कि अगर कोई दलित अपना मीडिया चैनल शुरू करता है तो उसे लोग उसी नजरिए से ही देखते हैं. लोगों को लगता है कि वह सिर्फ दलितों की ही खबरें करते हैं. ऐसे ही अगर कोई मुस्लिम शुरू करता है तो लोग उसे भी वही सोचकर कमतर आंकते हैं और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल करते हैं.
शादाब कहते हैं, “जहां मैं काम करता हूं, वहां पर मेरी कोशिश रहती है कि हम विविधता का पूरा ख्याल रखें. हमारे न्यूज़रूम में आज 50 फीसदी महिलाएं काम करती हैं. आगे भी कोशिश रहेगी कि हम अन्य लोगों को भी मौका दें.”
गुंजन सिंघवी 10-11 सालों से मीडिया का हिस्सा हैं. वह कहती हैं कि हम हर साल मीडिया को गंभीर रूप से लेते हैं और हर साल कुछ न कुछ बेहतर बदलाव की कोशिश करते रहते हैं. मीडिया संस्थानों में डायवर्सिटी की बहुत जरूरत है. लोगों को बराबर के मौके मिलने चाहिए.
न्यूज़लॉन्ड्री और ऑक्सफैम इंडिया की पूरी रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.