पुणे शहर अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए मशहूर है. इस जमीन से ज्योतिबा फुले जैसे बड़े समाज सुधारकों ने जन्म लिया. पुणे के प्रसिद्द श्रीमंत दगडुशेठ हलवाई गणपति मंदिर के बाहर रोजाना श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. इससे थोड़ा आगे बुधवार पेठ है. यह पुणे का सबसे बड़ा 'रेड लाइट' एरिया है. इन दोनों जगहों के बीच भारत में लड़कियों के लिए पहले स्कूल की शुरुआत हुई थी. इस 2500 स्क्वायर फीट क्षेत्र को भिडे वाडा कहा जाता है. इसी की एक इमारत में साल 1848 में तात्यासाहेब भिडे ने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को जगह दी थी, जहां उन्होंने स्कूल शुरू किया था. वर्तमान में यह स्कूल जर्जर अवस्था में है. यहां सिर्फ एक ब्लैकबोर्ड बचा है. यह इमारत अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है जो कभी भी ढह सकती है.
सरकार का कहना है कि इसका राष्ट्रीय स्मारक के रूप में पुनर्विकास किया जाएगा और इसमें लड़कियों के लिए विद्यालय बनेगा. इस सात मंजिला इमारत में पांच मंजिल स्कूल के लिए आरक्षित होंगी, जिनमें सभी आधुनिक सुविधाएं होंगी. यह स्कूल पुणे नगर निगम (पीएमसी) द्वारा चलाया जाएगा. वहीं बेसमेंट में पहले से मौजूद दुकानों को नहीं छेड़ा जाएगा. हालांकि यह कब होगा इसका कोई अनुमान नहीं है.
बता दें कि फुले के इस स्कूल को दोबारा शुरू करने के लिए 2004 से मांग उठ रही है. कई प्रदर्शन और राजनीतिक दखल के बावजूद 18 वर्ष बाद भी इसका निर्माण शुरू नहीं हो पाया है.
भिडे वाडा की जमीन पर विवाद क्यों?
अखिल भारतीय महात्मा फुले समता परिषद के अध्यक्ष रहे कृष्णकांत कुदाले ने सबसे पहले फुले स्कूल के अस्तित्व में होने की बात कही थी. भिडे वाडा के तीन हिस्से- 257 सी-1, 257 सी-2 और 257 डी हैं. इसे साल 1924 में ढीलाचंद भागचंद मावड़ीकर, लीलाचंद मावड़ीकर और उनके परिवार ने सदाशिव नारायण भिड़े और उनके परिवार से एक-एक कर खरीदा. आगे चलकर 21 जनवरी 1969 को पुणे मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक ने मावड़ीकर परिवार से 257- सी-1 और 257 सी-2 खरीदा. इसके बाद साल 1972 में बैंक ने 257- डी भी खरीद लिया था.
इस मामले में जब पुणे मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनोज लक्ष्मण जगदाले से हमने बात की तो उन्होंने बताया, "इस जमीन पर बैंक अपना बड़ा दफ्तर बनाना चाहता था. इसी कार्य को पूरा करने के लिए बैंक ने साल 2000 में मंत्री किशोर एसोसिएट को क्षेत्र का पुनर्विकास करने का ठेका दिया था. इस प्रोजेक्ट के लिए पुणे महापालिका (पीएमसी) ने इजाजत दे दी थी. साल 2004 में बैंक की बिल्डिंग तैयार हो चुकी थी. उस दौरान पुनर्विकास कार्य अपने आखिरी चरण पर था. उसी साल 13 जनवरी को कृष्णकांत कुदाले ने पुणे महापालिका को खत लिखकर भिडे वाडा में फुले का स्कूल होने का दावा किया."
इस मामले में न्यूज़लॉन्ड्री ने मंत्री किशोर एसोसिएट के मालिक किशोर ठक्कर से भी बात की. उन्होंने हमें बताया कि कुदाले द्वारा आपत्ति जाहिर करने के बाद 28 फरवरी 2005 को छगन भुजबल, अजीत पवार, विलासराव देशमुख, पीएमसी और बिल्डर के बीच एक मीटिंग हुई.
वह कहते हैं, "इस मीटिंग के बाद ही पुनर्विकास कार्य पर रोक लगा दी गई. इस सबके बीच क्षेत्र का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका था. बाकी बचे 20 प्रतिशत हिस्से में फुले का स्कूल है."
बता दें कि पुनर्विकास कार्य शुरू होने से पहले इस विवादित क्षेत्र के ग्राउंड फ्लोर पर सात दुकानें थीं. ऊपर की पहली, दूसरी और तीसरी मंजिल पर किरायेदार रहते थे. इसके अलावा दूसरी मंजिल पर एक ट्रेवल एजेंट और टेलर की दुकान भी थी जो अब बंद हो गईं. यहां साल 1975 से 'जय हिंद' क्लब भी था जो साल 2005 तक दारु और जुआरियों का अड्डा बन गया था. 2004 में नवनिर्माण कार्य पर पीएमसी द्वारा स्टे लगते ही किरायदारों ने यह जगह छोड़ दी और वहां से चले गए. धीरे- धीरे यह इमारत टूटती चली गई. यहां नीचे बनी सात दुकानें अब भी चालू अवस्था में हैं.
दुकानदारों ने क्यों लिया अदालत का सहारा?
पुनर्विकास योजना के दौरान दुकानदारों और मंत्री किशोर एसोसिएट के बीच एक एग्रीमेंट साइन हुआ था. न्यू वैरायटी स्टोर्स के मालिक बाबूभाई जडेजा का परिवार वर्ष 1963 से भिडे वाडा में दुकान चला रहा है. उन्होंने हमें बताया, "बिल्डर ने प्रोजेक्ट की शुरुआत में हमसे एक एग्रीमेंट साइन कराया था. इसके मुताबिक बिल्डर हमें हमारी दुकान का मालिकाना हक देने वाला था. इसके लिए हमें बिल्डर को समय- समय पर कुछ रकम देनी थी. हमने पहली किश्त चुका भी दी थी. लेकिन प्रोजेक्ट बीच में ही बंद हो गया."
पुणे महानगरपालिका ने भूमि अधिग्रहण का नोटिस देकर दुकानदारों को जगह खाली करने के लिए कहा था. इसकी वजह राष्ट्रीय स्मारक बताई गई. लेकिन दुकानदार इस जगह पर ऐतिहासिक धरोहर के दावे को झूठ बताते हैं. इसका कोई ठोस सबूत नहीं है, ऐसा कहकर दुकानदारों ने महानगरपालिका के निर्णय के खिलाफ 2010 में बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की.
विजय गोखले, वीजी गोखले एंड कंपनी के मालिक हैं. वह उन सात दुकानदारों में से एक हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में केस दायर किया है. वह बताते हैं, "इस मुद्दे में हर कोई अपनी राजनीति कर रहा है. किसी को भिडे वाडा का इतिहास नहीं पता था. फिर अचानक यह स्कूल कहां से आ गया? कृष्णकांत कुदाले ने पहले समर्थ बिल्डिंग और फिर तिरंगा हाउस में स्कूल होने का दावा किया था. बाद में भिडे वाडा उनकी नजर में आया."
फुले के वारिस भी विरासत बचाने में जुटे
फुले के परिवार की सांतवी पीढ़ी भारत में महिलाओं के लिए बनाए पहले स्कूल को बचाए रखने के लिए लड़ाई लड़ रही है. प्रशांत फुले ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत की. वह पेशे से पत्रकार हैं और नियमित अनशन पर बैठते हैं. उन्होंने दुकानदारों के इस दावे को नकारते हुए कहा, "भिडे वाडा पीएमसी हेरिटेज लिस्ट में शामिल है. साल 2009 में सरकार ने 257-सी 1 और 257 सी 2 क्षेत्र को 'भिडे वाडा राष्ट्रीय स्मारक' घोषित किया था."
फिलहाल भिड़े वाडा की जमीन का मालिकाना हक पुणे मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक के पास है. पुणे मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष विजय प्रकाश धेरे का कहना है कि उन्हें सरकार को जमीन देने में कोई आपत्ति नहीं है.
विजय कहते हैं, "सरकार विवादित जमीन पर फुले स्मारक, स्कूल और लड़कियों के लिए हॉस्टल बना सकती है. इससे हमें कोई दिक्कत नहीं है. सरकार ने हमारे साथ मीटिंग भी की है. हमारी मांग है कि सरकार विवादित क्षेत्र के साथ-साथ वो जमीन भी खरीद ले जिस पर हमारे बैंक की इमारत बनी है. इसके लिए हमने सरकार के सामने 35 करोड़ रूपए की मांग रखी है."
किसका होगा भिडे वाडा?
इस साल नागपुर विधानसभा सत्र में, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने भिडे वाडा में एक राष्ट्रीय स्तर का स्मारक स्थापित करने का वादा किया है. राज्य सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता रखी और बजट में इसके लिए 50 करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं. जहां एक तरफ भिडे वाडा में दुकानदार जमीन देने का विरोध कर रहे हैं, वहीं सरकार मामले को अदालत के बाहर निपटाने की कोशिश कर रही है.
नाम ना लिखने की शर्त पर भिडे वाडा की पहली मंजिल पर अपनी दुकान चला रहे किरायेदार कहते हैं, "इस केस में सरकार जो कुछ देगी वो हमें बैंक की तरफ से ही मिलेगा. चाहे वो जगह हो या पैसा. हमने इसके अधिकार बैंक को दे दिए हैं. हम लोगों में से कुछ लोगों के एग्रीमेंट हुए थे. तो कुछ के नहीं हुए थे. हम सभी चाहते हैं कि स्मारक का काम जल्द शुरू हो जाए."
बाबूभाई जडेजा कहते हैं, "हमारा सरकार के खिलाफ विरोध नहीं है. हम भी चाहते हैं कि यहां फुले स्मारक बन जाए. लेकिन हमारी दुकान से छेड़छाड़ न हो. हमें हमारी जमीन का हक चाहिए.”
भिडे वाडा की विवादित जमीन पर उलझनें बढ़ गई हैं. एक तरफ दुकानदार बिल्डर के साथ हुए एग्रीमेंट का हवाला देते हुए दुकान का मालिकाना हक मांग रहे हैं. वहीं दूसरी ओर बैंक अपने रेट पर सरकार को जमीन देना चाहती है. महाराष्ट्र सरकार ने भी फुले स्कूल और स्मारक के लिए बजट आवंटित किया है लेकिन भिडे वाडा की हालत देखकर नहीं लगता कि यह पैसा किसी उपयोग में आ रहा है. अब जब तक यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट में चल रहा है भिडे वाडा में स्कूल के नवनिर्माण का कार्य भी शुरू नहीं हो सकता.
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