साल 2012 में एक आंदोलन की कोख से दिल्ली में नई राजनीति पार्टी का जन्म हुआ. इसके बाद साल 2013 में आम आदमी पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में 28 सीटें जीत लीं. लेकिन सरकार बनाने के लिए ये काफी नहीं था. उसके बाद 2015 में रिकॉर्ड तोड़ते हुए आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीती फिर 2020 में 62 सीटों पर जीत हासिल की.
दिल्ली की 70 विधानसभाओं में से 69 सीटों पर तीन चुनावों में आम आदमी पार्टी कभी-कभी न जीत चुकी है. लेकिन एक सीट है, पूर्वी दिल्ली का विश्वास नगर, जहां से आम आदमी पार्टी आज तक नहीं जीत पाई है.
1993 में बनी इस विधानसभा में पहली बार बीजेपी के मदन लाल गाबा जीते. उसके बाद 1998 से 2013 तक कांग्रेस के गुलाब सिंह यहां से विधायक बनते रहे. 2013 से भाजपा के ओपी शर्मा यहां से विधायक हैं.
कॉलेज के दिनों में अरुण जेटली के दोस्त रहे ओपी शर्मा ने 2013 में गुलाब सिंह को 7 हजार वोटों से हराया था. तब ‘आप’ के अतुल गुप्ता तीसरे स्थान पर रहे. 2015 में अतुल गुप्ता दूसरे स्थान पर रहे. इस बार शर्मा ने 10 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. 2020 में ‘आप’ ने उम्मीदवार बदला. गुप्ता की जगह दीपक सिंगला यहां से उम्मीदवार बने. इस बार ओपी शर्मा का जीत का अंतर 16 हजार पहुंच गया.
एक बार फिर आम आदमी पार्टी ने दीपक सिंगला को ही अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा की तरफ से ओपी शर्मा मैदान में है. वहीं, इधर के दिग्गज नेता माने जाने वाले गुलाब सिंह भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
आखिर इतनी लहर के बावजूद यह सीट आम आदमी पार्टी क्यों नहीं जीत पाई है. इसको लेकर ओपी शर्मा बताते हैं कि यह तो जनता का प्यार है. लेकिन उनके नामांकन में आए भाजपा के कार्यकर्ता और स्थानीय नागरिक बताते हैं कि पार्टी की जीत के पीछे यहां आरएसएस की मज़बूत उपस्थिति और पॉश इलाकों में उसकी पकड़ है.
हमने इस स्टोरी में भाजपा की जीत की वजहों की तलाश की है.
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