दो अक्टूबर की गज़ेटेड छुट्टी के बाद तीन अक्टूबर की सुबह राजधानी दिल्ली में बहुत गहमा-गहमी वाली रही. न्यूज़क्लिक से जुड़े कई वर्तमान और पूर्व पत्रकारों के यहां मंगलवार सुबह छह बजे से ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दबिश डालना शुरू कर दिया. देखते ही देखते यह ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई. पुलिस ने कई पत्रकारों को लोधी कॉलोनी स्थित दफ्तर लाकर पूछताछ की. ज्यादातर के फोन और लैपटॉप जब्त कर लिए गए.
यहां कई घंटों तक हुई पूछताछ के बाद न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया गया है. बाकियों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया. इसके साथ ही न्यूज़क्लिक के दफ्तर को भी सील कर दिया गया.
यह कार्रवाई 17 अगस्त, 2023 को दर्ज एफआईआर संख्या 224/2023 के सिलसिले में की गई है. इसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए, 120 बी और यूएपीए की धारा 13/16/17/18/ और 22 सी के तहत मामला दर्ज किया गया है.
चीनी फंडिंग के आरोप और जांच
बता दें कि न्यूज़क्लिक के खिलाफ यह मामला अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख प्रकाशित होने के बाद दर्ज किया गया था. इस ख़बर में आरोप लगाया गया था कि समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक अमेरिकी व्यवसायी नेविल रॉय सिंघम द्वारा वित्त पोषित चीनी प्रोपगेंडा वाले आउटलेट्स में से एक है.
तब केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया था कि न्यूयॉर्क टाइम्स से बहुत पहले, भारत लंबे समय से दुनिया को बताता रहा है कि न्यूजक्लिक चीनी प्रचार का एक खतरनाक वैश्विक जाल है. समान विचारधारा वाली ताकतों द्वारा समर्थित, नेविल एक संदिग्ध भारत विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है.
स्पेशल सेल की ताजा कार्रवाई के बाद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने मीडिया से कहा कि पुलिस की कार्रवाई को सही या गलत ठहराने की जरूरत नहीं है. मंत्री ने कहा, "मुझे सफाई देने की जरूरत नहीं है. अगर किसी ने कुछ भी गलत किया है, तो जांच एजेंसियां निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत उनके खिलाफ जांच करने के लिए स्वतंत्र हैं."
जानकारी के मुताबिक, दिल्ली पुलिस ने दिन भर में प्रबीर पुरस्कास्थ और अमित चक्रवर्ती के अलावा न्यूज़क्लिक के अंशदाताओं डी रघुनंदन, मुकुंद झा और सुबोध वर्मा समेत कुल 46 लोगों से पूछताछ की. इनमें 37 पुरुष और 09 महिला पत्रकार शामिल हैं.
किसान आंदोलन और दिल्ली दंगों को लेकर सवाल
न्यूज़क्लिक से जुड़ीं वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह दिल्ली के मयूर विहार फेस-वन में रहती हैं. सुबह के साढ़े छह बजे उनके यहां दिल्ली पुलिस के करीब सात कर्मचारी एक सीआईएसफ के जवान के साथ पहुंचे. उन्हें बताया गया कि यूएपीए के मामले में पूछताछ करनी है.
इन लोगों ने सिंह से न्यूज़क्लिक से उनके जुड़ाव और काम को लेकर सवाल किए. इसके बाद उनका फोन और लैपटॉप जब्त कर लिया. साथ ही उनसे ये भी पूछा गया कि कोविड के वक्त उन्होंने क्या रिपोर्टिंग की थीं?
इस दौरान भाषा सिंह के वकील भी मौजूद थे. वकील ने जब पूछा कि यूएपीए का मामला किस पर दर्ज है तो पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया और ना ही उन्हें एफआईआर की कॉपी उपलब्ध करवाई.
करीब दो घंटे से ज़्यादा देर तक पूछताछ करने और सामान जब्त करने के बाद अधिकारी चले गए. इनमें से एक अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत पूछताछ करने के लिए आये थे. इससे ज्यादा जानकारी देने से उन्होंने मना कर दिया.
सिंह के घर आए एक अन्य पुलिस अधिकारी से जब हमने पूछा कि आप लोगों को कार्रवाई की जानकारी कब दी गई तो उन्होंने बताया कि रात में मैसेज आया कि सुबह पांच बजे दफ्तर पहुंचना है. क्या करना है और कहां जाना है, इस बारे में कुछ नहीं बताया गया. जब सुबह हम दफ्तर पहुंचे तो इंस्पेक्टर के साथ यहां भेज दिया गया. तब हमें इस मामले का पता चला.
यह एफआईआर किस पर दर्ज है. इसकी जानकारी पुलिस ने अभी तक नहीं दी है.
सिंह को पुलिस अधिकारी अपने साथ लेकर नहीं गए, लेकिन उर्मिलेश, अभिसार शर्मा, औनिन्द्यो चक्रवती, सत्यम तिवारी, परंजॉय गुहा ठाकुरता, प्रवीर पुरकायस्थ और व्यंगकार संजय राजौरा समेत कई अन्य पत्रकारों को पूछताछ के लिए लोधी कॉलोनी के स्पेशल थाने लाया गया.
देर शाम होते-होते इनमें से ज़्यादातर पत्रकारों को छोड़ दिया गया. करीब चार बजे उर्मिलेश को छोड़ा गया. उन्होंने कोई बयान देने से इनकार कर दिया.
अभिसार शर्मा ने भी तब कोई बयान नहीं दिया लेकिन बाद में उन्होंने ट्वीट कर लिखा, ‘‘दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दिन भर की पूछताछ के बाद, मैं घर वापस आ गया हूं. पूछे गए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दिया जाएगा. डरने की बात नहीं. मैं सत्ता में बैठे लोगों से, खासकर उन लोगों से सवाल करता रहूंगा जो साधारण सवालों से भी डरते हैं. किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे.’’
करीब पांच साल पहले न्यूज़क्लिक छोड़ चुकीं एक महिला पत्रकार के यहां भी पुलिस पूछताछ के लिए पहुंचीं थीं. उनके यहां भी सुबह के छह बजे नौ लोग पहुंचे. जिसमें 3 लोग सिविल ड्रेस में थे, 2 सीआईएसएफ के जवान और एक महिला पुलिसकर्मी थी. बाकी के चार लोग कमरे के बाहर टहल रहे थे. हालांकि, इस पत्रकार ने दस बजे के करीब में अपना दरवाजा खोला तब इनसे पूछताछ शुरू हुई.
अधिकारियों ने इनसे पूछा कि साल 2018 में आपके खाते में 94 हजार रुपए आए थे. वो कहां से आये? महिला पत्रकार ने बताया कि न्यूज़क्लिक से उनके खाते में सिर्फ सैलरी आती थी. इसके अलावा कोई भी राशि नहीं आई.
इसके बाद अधिकारियों ने पूछा कि उन्होंने दिल्ली दंगों पर क्या स्टोरी की थी? तब महिला पत्रकार ने उन्हें बताया कि वह उस वक्त किसी और संस्थान में थी. इसके बाद किसान आंदोलन और कोरोना माहमारी के समय की गई रिपोर्टिंग को लेकर भी सवाल किए गए. इस पर भी इस पत्रकार ने अपना जवाब दोहराया कि तब वे किसी और संस्थान में थीं.
इसके बाद न्यूज़क्लिक और इनके पुराने संस्थानों के मालिकों और सम्पादकों को लेकर सवाल किए गए.
इस महिला पत्रकार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके हाथों में सवालों की एक फोटो कॉपी थीं. वो उसी में से घुमा-फिराकर सवाल कर रहे थे.
महिला पत्रकार ने बताया कि पुलिस ने उनका लैपटॉप और मोबाइल जब्त कर लिया लेकिन कोई सीजर मेमो नहीं दिया. पुलिस ने उनसे लैपटॉप और मोबाइल का मॉडल और सीरियल नंबर लिखवा लिया और बुधवार को वापस लेने आने के लिए कहा. मालूम हो कि ऐसे मामलों में नियम के मुताबिक, सामान जब्त करते हुए पुलिस को एक सीजर मेमो देना होता है, जिसमें जब्त किए जा रहे सामान की जानकारी होती है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ इन लोगों से ही किसान आंदोलन, दिल्ली दंगों और कोरोना महामारी को लेकर सवाल किए गए. जिन-जिन लोगों ने मीडिया से बात की. उन्होंने बताया कि उनसे भी करीब-करीब यही सवाल किए गए.
एक अन्य युवा महिला पत्रकार, जो तीन महीने पहले ही न्यूज़क्लिक से नौकरी छोड़ चुकी हैं. उनके यहां भी करीब छह बजे पुलिस पहुंचीं. उनसे भी साल 2012 से लेकर अब तक क्या-क्या किया. कश्मीर किससे मिलने गई, न्यूज़ क्लिक में क्या काम करती थीं आदि सवाल पूछे गए.
इस पत्रकार ने बताया कि पुलिस ने उनका फोन और लेपटॉप जब्त कर लिया. साथ ही उनके प्रॉपटी के कागजात भी पुलिस ले गई. महिला पत्रकार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पुलिस की तरफ से उसे कोई भी सीजर मेमो नहीं दिया गया.
परंजॉय गुहा ठाकुरता से हुए ये सवाल
करीब 11 घंटे की पूछताछ के बाद स्पेशल सेल के दफ्तर से निकले वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने बताया कि सुबह के छह बजे करीब 9 पुलिसकर्मी उनके गुरुग्राम स्थित घर पर आए. इसके बाद मैं उनके साथ स्पेशल सेल के दफ्तर आ गया. उन्होंने मुझसे कई सवाल पूछे.
गुहा ने भी किसान आंदोलन और दिल्ली दंगों को लेकर किए गए सवालों की पुष्टि की.
ठाकुरता से उनके फोन कॉल की भी जानकारी मांगी गई. ठाकुरता ने बताया कि अमेरिका में उनका एक रिश्तेदार है, जिससे वो बात करते हैं.
दिलीप शिमोन को भी स्पेशल सेल के दफ्तर में बुलाया गया और दोपहर 3 बजे के आसपास तब छोड़ा गया जब उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका न्यूज़क्लिक से कोई लेना-देना नहीं है.
न्यूज़लॉन्ड्री को करीब तीन लोगों ने बताया कि उनका लैपटॉप, फोन और दूसरे दस्तावेज जब्त करने के बाद उन्हें कोई सीजर मेमो नहीं दिया गया. पूछताछ के बाद बाहर आए न्यूज़क्लिक के एक सलाहाकार ने पुलिस पर आरोप लगाया कि उन्हें न तो कोई समन मिला और न ही कोई सीजर मेमो दिया गया.
पूरे दिन स्पेशल सेल के दफ्तर के बाहर क्या हुआ
सुबह आठ बजे के आसपास पुलिस पूछताछ के बाद पत्रकारों को लोधी कॉलोनी स्थित स्पेशल सेल के दफ्तर लेकर आने लगी. दस बजे तक ज़्यादातर लोगों को पुलिस लेकर आ चुकी थी.
जानकारी मिलने के साथ ही वकीलों की टीम यहां पहुंचने लगी. अलग-अलग लोगों के वकील अपने क्लाइंट से मिलना चाहते थे. वो लगातार पुलिस अधिकारियों से अंदर जाने की मांग कर रहे थे लेकिन किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया गया. इसको लेकर कई बार पुलिस के अधिकारियों और वकीलों के बीच बहस हुई. वकील दिनभर यह जानने की कोशिश करते रहे कि उनके क्लाइंट को हिरासत में लिया गया या गिरफ्तार किया गया.
उर्मिलेश के वकील ने दोपहर में न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें कोई भी जानकारी नहीं दी जा रही है लेकिन वे लगातार कोशिश कर रहे हैं.’’
यहां कई वरिष्ठ पत्रकार भी पहुंचे लेकिन उन्हें भी पुलिस ने अंदर नहीं जाने दिया. जिसके बाद ये लोग प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया पहुंचे. वहां पर एक बैठक चल रही थी. जिसमें फैसला हुआ कि बुधवार शाम चार बजे एक प्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा.
प्रदर्शन की जानकारी देते हुए ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने बताया कि यहां तमाम मीडिया के संगठन लोग इकठ्ठा हुए. उसके नुमाइंदों ने अपनी बातें रखीं. इसके बाद तय हुआ कि कल (बुधवार) शाम को चार बजे प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के बाहर एक प्रदर्शन किया जाएगा.
यूएपीए लगाने के सवाल पर वरदराजन ने कहा, “डर का माहौल बनाने के लिए ऐसा किया गया है. जनता जानती है कि जो बड़े मीडिया घराने हैं वो सरकार के पक्ष में बोल रहे हैं. खुलके रिपोर्टिंग कोई कर रहा है तो वो स्वतंत्र मीडिया संस्थान है. ये लोग उनको निशाना बनाके चुप कराना चाह रहे हैं. साथ-साथ जनता में संदेह और डर का माहौल बनाना चाहते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “सरकार ऐसा करके यह बताना चाहती है कि इन (पत्रकारों) पर भरोसा न करो. ये देश विरोधी हैं. कम से कम कोशिश तो यही है.
वरदराजन कहते हैं कि सरकार के पास कोई सबूत तो है नहीं, लेकिन यूएपीए एक ऐसा कानून है जिसके चलते महीनों तक पूछताछ खींच सकते हैं. साथ ही अगर गिरफ्तारी होगी तो जमानत भी नहीं मिलेगी. यही इनकी कोशिश भी है.
दो धड़ों में बंटा मीडिया
उधर, न्यूज़क्लिक के कार्यालय पर हुई इस छापेमारी के बाद मीडिया साफ तौर पर दो धड़ों में बंटा हुआ दिखाई दिया. कुछ ने इसकी निंदा की तो कुछ ने इसे ‘देश के नाम’ पर सही ठहराया. इस बारे में यहां से पढ़ें.
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