2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले, ऐसा बताया जाता है कि उनके कार्यालय में एक उप सचिव ने उनसे कहा था कि वे कांग्रेस के प्रधानमंत्री के अधीन काम नहीं करना चाहते. यह नौकरशाह 2006 तक वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में काम करता रहा, और बाद में “नए” भारत की सत्ता की सबसे ऊंची कुर्सी का चहेता बन गया.
अश्विनी वैष्णव के नौकरशाह और टेक्नोक्रेट से राजनेता बनने के राजनीतिक उदय की कहानी बहुत नाटकीय है. शायद भारतीय राजनीति में बहुत कम मिसालें हैं, (हाल के दिनों में सबसे मिलती-जुलती मिसाल विदेश मंत्री एस. जयशंकर हैं). 1994 में ओडिशा कैडर के एक होनहार आईएएस अधिकारी से 2021 तक, उन्होंने कॉरपोरेट इंडिया में काम करने, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित व्हार्टन स्कूल से डिग्री लेने और एक व्यवसाय लगाने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में अपनी जगह बनाई.
इतना ही नहीं, उनका उद्यमशीलता का सफर सभी मायनों में हिट रहा. अगर पैसा सफलता का पैमाना है तो जिस कंपनी में उन्होंने 1 लाख रुपये का निवेश किया उससे उन्हें कुछ ही सालों में 113 करोड़ रुपये से ज़्यादा के शेयर मिल गए. दरअसल, इस कंपनी का राजस्व, शुरुआती छह सालों के भीतर 45 लाख रुपये से बढ़कर 323 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया.
वैष्णव का राजनीतिक करियर औपचारिक रूप से 2019 में ओडिशा की सत्तारूढ़ बीजेडी और उसकी प्रतिद्वंद्वी भाजपा द्वारा एक आश्चर्यजनक कदम के साथ शुरू हुआ. जब दोनों पार्टियों ने उन्हें राज्यसभा में नामित करने के लिए हाथ मिलाया. ये वक्त आने तक वैष्णव का ओडिशा के साथ संबंध, केवल वहां के आईएएस कैडर के होने से कहीं ज़्यादा गहरा हो चला था. ऐसे संबंध, जिन्हें आमतौर पर भारतीय राजनीति के कसीदों में वैष्णव जैसे विरोधाभासी व्यक्तित्व के लिए अनदेखा कर दिया जाता है.
आखिर वो 2003 से 2015 के बीच काफी हद तक ओडिशा से दूर रहे, जब तक कि एक छोटी सी फर्म उन्हें वापस नहीं ले आई. इसके बाद राज्य के इस खनन दिग्गज ने एक ऐसी यात्रा शुरू की, जिसने जाहिर तौर पर उनके राजनीतिक उत्थान को बढ़ावा दिया.
उनके संबंधों की खोज
मूल रूप से राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले और भारतीय जनसंघ (जो कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा थी) से गहरे संबंध रखने वाले परिवार से आने वाले वैष्णव का राजनीतिक करियर औपचारिक रूप से 2019 में शुरू हुआ. एक आश्चर्यजनक कदम के तहत ओडिशा की सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल और उसकी प्रतिद्वंद्वी भाजपा ने मिलकर वैष्णव को राज्यसभा के लिए नामित किया. वैष्णव को शुरू में बीजेडी उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया था, लेकिन इस घोषणा के तुरंत बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि कुछ "गलतफहमी" थी.
पटनायक ने मीडिया से कहा, "प्रधानमंत्री और गृह मंत्री [अमित शाह] ने मुझसे बात की. हम श्री अश्विनी वैष्णव की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे, जो प्रधानमंत्री रहते हुए श्री वाजपेयी के निजी सचिव थे." इस एक नामांकन के लिए राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी और उसके विपक्ष के बीच एक पल भर का गठबंधन हुआ था.
वैष्णव ने 2003 में ओडिशा छोड़ दिया था. वाजपेयी और अन्य नौकरशाही जिम्मेदारियों के साथ काम करने के बाद उन्होंने 2010 में व्हार्टन स्कूल में एमबीए की पढ़ाई करने के लिए ब्रेक लिया. अमेरिका से लौटने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना और कॉर्पोरेट फर्मों के लिए काम किया.
2015 में वह ओडिशा लौट आए. यह वो साल था, जब उन्होंने अपनी कंपनी एडलर इंडस्ट्रियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के साथ लौह अयस्क यानी कच्चे लोहे के खनन उद्योग में कदम रखा. शुरू से ही एडलर के पास केवल एक ही ग्राहक था, जिसे वह 'सेवाएं' प्रदान करता था: त्रिवेणी अर्थमूवर्स. यह एक खनन कंपनी थी. जिसका नियंत्रण बी. प्रभाकरन के पास था. प्रभाकरन को 'रेड्डी ऑफ बारबिल' के रूप में भी जाना जाता है (ये संदर्भ जी. जनार्दन रेड्डी से है, जो कर्नाटक में अवैध खनन के मुख्य आरोपी हैं. ओडिशा के बारबिल शहर के आसपास के क्षेत्र में दुनिया में लौह और मैंगनीज अयस्क के कुछ सबसे बड़े भंडार हैं).
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए कंपनी के दस्तावेजों से यह स्पष्ट नहीं था कि वो ‘सेवाएं’ क्या थीं.
2004 से 2015 के बीच त्रिवेणी अर्थमूवर्स राज्य में खनन पट्टे धारकों की ओर से खनिजों की खुदाई करने वाला सबसे बड़ा ठेकेदार बन गया. 2014 में एमबी शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कई बार त्रिवेणी अर्थमूवर्स का उल्लेख किया और निष्कर्ष निकाला कि प्रभाकरन केवल एक खनन ठेकेदार नहीं था, बल्कि उसकी कंपनी ने इनमें से अधिकांश खदानों को परोक्ष रूप से नियंत्रित किया, और वैध व अवैध खनन दोनों से होने वाली आय का एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया.
कई लोग दावा करते हैं कि प्रभाकरन के साथ वैष्णव के संबंध ने उन्हें राजनीतिक रूप से मदद की. त्रिवेणी और उसकी सहायक कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड योजना में बड़ी रकम दान की है.
लोहे का सोने में बदलना
त्रिवेणी अर्थमूवर्स के साथ वैष्णव के संबंध आने वाले सालों में और ज़्यादा गहरे हो गए. त्रिवेणी ने वैष्णव की कम्पनी एडलर के साथ साझेदारी में एक नई कंपनी त्रिवेणी पेलेट्स प्राइवेट लिमिटेड (टीपीपीएल) की स्थापना की. साथ ही 111.50 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता भी प्रदान की. जिससे वैष्णव को इस नई निगमित इकाई को ऋण देने में सक्षम बनाया गया. इस व्यवस्था ने आखिरकार वैष्णव की कंपनी को उसी कंपनी से लौह अयस्क छर्रों की खरीद कर, आने वाले सालों में बड़े मुनाफे कमाने की स्थिति में ला दिया.
1 लाख रुपये के निवेश के साथ निगमित होने के बाद अपने संचालन के पहले वर्ष (2015-16) में, एडलर ने 45 लाख रुपये का राजस्व अर्जित किया. यह 2016-17 में बढ़कर 3.79 करोड़ रुपये और 2017-18 में 4.51 करोड़ रुपये हो गया. 2019 आते-आते, एडलर का प्राथमिक खर्च इसके निदेशकों- वैष्णव और उनकी पत्नी सुनीता को दिया जाने वाला पारिश्रमिक था. दोनों ही कंपनी में निदेशक थे और उन्हें अच्छा-खासा वेतन मिलता था.
उदाहरण के लिए, 2016-17 में 3.79 करोड़ रुपये के राजस्व में से 2.46 करोड़ रुपये वेतन पर खर्च किए गए, जिसमें 2.26 करोड़ रुपये वैष्णव को और 18 लाख रुपये सुनीता को दिए गए. इस बीच अन्य कर्मचारियों के वेतन के लिए केवल 1.93 लाख रुपये आवंटित किए गए. इसी तरह 2017-18 में, 4.51 करोड़ रुपये के राजस्व में से 2.5 करोड़ रुपये वेतन पर खर्च किए गए, जिसमें से 2.09 करोड़ रुपये निदेशकों को दिए गए.
2017-18 में एडलर को, त्रिवेणी अर्थमूवर्स से 111.50 करोड़ रुपये की परफॉर्मेंस गारंटी जमा रकम मिली. यह तब हुआ जब एडलर का राजस्व 4.51 करोड़ रुपये था और उसी वर्ष उसका लाभ केवल 73.6 लाख रुपये था (ये सभी त्रिवेणी अर्थमूवर्स को दी गई सेवाओं से आए थे).
नवंबर 2017 में, त्रिवेणी पेलेट्स प्राइवेट लिमिटेड (टीपीपीएल) को तीन शेयरधारकों के साथ निगमित किया गया था: त्रिवेणी अर्थमूवर्स (51 प्रतिशत), डोवर प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड (29 प्रतिशत), और एडलर (20 प्रतिशत). कॉर्पोरेट फाइलिंग से पता चलता है कि 24 फरवरी, 2018 को, टीपीपीएल ने अपने शेयरधारकों से उनकी हिस्सेदारी के अनुपात में 547.61 करोड़ रुपये का भारी ऋण हासिल करने के लिए एक ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए. त्रिवेणी अर्थमूवर्स ने 279.28 करोड़ रुपये दिए; डोवर प्रॉपर्टीज ने 158.81 करोड़ रुपये दिए; और एडलर ने 109.52 करोड़ रुपये दिए. कुल राशि में से, 18 करोड़ रुपये इक्विटी में परिवर्तित किए जाने थे, जो कि हिस्सेदारी के अनुपात में 27 जून को जारी किए गए थे.
बैलेंस शीटों के अनुसार, वैष्णव की कंपनी एडलर ने टीपीपीएल को अपना ऋण तभी दिया, जब उसे प्रभाकरन के त्रिवेणी अर्थमूवर्स से परफॉर्मन्स गारंटी के रूप में 111.5 करोड़ रुपये का ऋण मिला.
यानी, इस ‘परफॉर्मन्स गारंटी’ के ज़रिए वैष्णव ने अपनी तिजोरी भरी. इस उद्यम के वित्तीय लाभ का अंदाजा वैष्णव द्वारा चुनाव आयोग को सौंपे गए हलफनामे से लगाया जा सकता है, जिसके अनुसार 2022-23 में एडलर के शेयरों का बुक वैल्यू 113.9 करोड़ रुपये (2018-19 में 1.04 करोड़ रुपये से) था. इस राशि में वैष्णव के शेयर 91 करोड़ रुपये से ज़्यादा थे, जबकि उनकी पत्नी के शेयरों की कीमत लगभग 22.78 करोड़ रुपये थी.
टीपीपीएल के निगमन के कुछ हफ्तों बाद, कंपनी ने जेएसडब्ल्यू ग्रुप (सज्जन जिंदल के नेतृत्व वाली) और मित्सुन स्टील के साथ मिलकर ब्राह्मणी रिवर पेलेट्स प्राइवेट लिमिटेड (बीआरपीएल) का अधिग्रहण करने के लिए एक शेयर समझौते पर हस्ताक्षर किए. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार, यह सौदा लगभग 1,100 करोड़ रुपये का था. टीटीपीएल ने 547.61 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जिसमें 495.39 करोड़ रुपये कर्ज भुगतान के लिए और 52.22 करोड़ रुपये टीपीपीएल को सौंपे गए ऋण और अग्रिम राशि के लिए थे. इस रणनीतिक अधिग्रहण में ओडिशा के बारबिल में 4.7-एमटीपीए लाभकारी संयंत्र और ओडिशा के जाजपुर में 4-एमटीपीए पैलेट संयंत्र शामिल था, जो 230 किलोमीटर की भूमिगत स्लरी पाइपलाइन से जुड़ा था, जिससे माल ढुलाई की लागत में काफी कमी आई.
वैष्णव को टीपीपीएल में निदेशक बनाया गया और बाद में उन्हें बीआरपीएल का प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया.
दावे बनाम हकीकत
वैष्णव एक अन्य कंपनी, वी जी ऑटो कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड से भी जुड़े थे, जो गाड़ियों के पुर्जे बनाती है. उन्होंने 2016 से 2017 तक इस कंपनी में निदेशक का पद संभाला. मई, 2017 में उन्होंने निदेशक पद छोड़ दिया लेकिन 2019-20 तक कंपनी में 8 प्रतिशत हिस्सेदारी बरकरार रखी.
महत्वपूर्ण बात ये है कि 2018 में एडलर ने वी. जी. ऑटो कंपोनेंट्स को 91.14 लाख रुपये का ऋण दिया. अगले दो वर्षों में यह राशि बढ़कर 1.06 करोड़ रुपये हो गई.
फरवरी, 2023 में वी. जी. ऑटो कंपोनेंट्स की मूल कंपनी पर आयकर विभाग ने कथित कर चोरी के लिए छापा मारा. न्यूज़लॉन्ड्री इस केस की वर्तमान स्थिति की पुष्टि नहीं कर सका. जब हमने छापेमारी के बारे में जानकारी लेने के लिए आयकर विभाग के प्रवक्ता से संपर्क किया तो प्रवक्ता ने कहा कि वे “विशेष तौर मामलों पर कोई टिप्पणी या जानकारी नहीं देते हैं”.
वैष्णव ने खनन क्षेत्र से अपने व्यापारिक संबंधों को छिपाने की कोशिश नहीं की है और इसके बजाय इसे विशेषज्ञता के एक क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया है. उदाहरण के लिए राज्यसभा में उनका पहला लिखित प्रश्न स्टील उत्पादन से संबंधित था, एक ऐसा क्षेत्र जिससे वे 2015 से त्रिवेणी अर्थमूवर्स के साथ अपने जुड़ाव के माध्यम से जुड़े हुए हैं. मार्च 2021 में, खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक पर बहस करते हुए उन्होंने इस डिस्क्लेमर के साथ शुरुआत की, कि उनकी रुचि एक स्टील क्षेत्र की कंपनी में है जो लौह अयस्क, चूना पत्थर और डोलोमाइट जैसी विभिन्न खदानों से कच्चे माल का उपयोग करती है.
विशेष रूप से सरकारी कर्मचारियों के बीच उद्यमिता के लिए उनका जोर, उनकी संसदीय गतिविधियों में स्पष्ट है. अन्य नौकरशाहों को निजी उद्यम में अपना हाथ आजमाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए- जिसकी सेवा नियमों के अनुसार अनुमति नहीं है - वैष्णव ने राज्यसभा में एक ‘विशेष उल्लेख’ पेश किया जिसमें सरकार में उन लोगों के लिए "उद्यमी अवकाश" की मांग की गई, जो उद्यमी विचार को आगे बढ़ाने के लिए अपने नियमित पदों से छुट्टी लेना चाहते हैं.
वैष्णव ने यह भी कहा है कि उद्यमिता में उनकी रुचि, दूसरों की मदद करने की इच्छा में निहित है. 2019 में वैष्णव के राज्यसभा नामांकन को लेकर विवाद के दौरान, कांग्रेस के नरसिंह मिश्रा ने आरोप लगाया था कि वैष्णव के खनन माफिया से संबंध हैं. मिश्रा ने कहा, "जो लोग राज्य के खनिज संसाधनों को लूटते हैं, उन्हें राज्यसभा में हमारा प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा जाता है." वैष्णव ने जवाब दिया कि उनकी एकमात्र रुचि वंचितों को समर्थन देने में थी.
वैष्णव ने मिश्रा द्वारा लगाए गए आरोपों को संबोधित करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "मेरा लक्ष्य एक ऐसा उद्यम बनाना था जो 1,500 परिवारों को सहारा दे सके. कलिंग नगर प्लांट में हम अपने संविदा कर्मचारियों को सब्सिडी वाला भोजन भी देते हैं. मैं इस लक्ष्य को प्राप्त करने और 5,000 परिवारों को सहारा देने के लक्ष्य की ओर काम करने से संतुष्ट था- जब तक कि सांसद बनने का प्रस्ताव नहीं आया.”
इसी तरह, 2024 में द लल्लनटॉप के साथ एक साक्षात्कार में वैष्णव ने कहा, "उद्यमिता के बारे में सबसे बड़ी बात ये है कि आप इतने सारे परिवारों से जुड़ते हैं और उन्हें रोजगार प्रदान करते हैं."
हालांकि, उनकी कंपनी के संचालन और वित्तीय दस्तावेजों की बारीकी से समीक्षा करने पर पता चलता है कि उद्यम के लाभ काफी हद तक वैष्णव और उनकी पत्नी तक ही सीमित रहे हैं. वैष्णव की कंपनी के अधिकांश खर्च उनके पारिश्रमिक पर खर्च किए जाते थे, और कर्मचारियों की ऐसी संख्या के बहुत कम सबूत हैं जो हजारों परिवारों का भरण-पोषण करने में सक्षम हो.
एक से जुड़ती दूसरी कड़ी
2019 से जुलाई 2021 (जब उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया) के बीच वैष्णव की संसदीय गतिविधियों से पता चलता है कि वे उन विभागों की ओर बढ़ रहे थे जो अंततः उन्हें सौंपे जाने वाले थे. उन्होंने प्रमुख समितियों में काम किया, जो उनकी भावी मंत्रिस्तरीय जिम्मेदारियों से करीब से जुड़ी थीं. उदाहरण के लिए, वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसदीय समिति, सूचना और प्रसारण मंत्रालय की परामर्श देने वाली समिति और व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक, 2019 पर संयुक्त समिति के सदस्य थे. 2021 के बाद से, वे दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी, और सूचना और प्रसारण सहित इनमें से कई क्षेत्रों से संबंधित मंत्रालयों का कार्यभार संभालने लगे.
संसद में वैष्णव द्वारा उठाए गए अधिकांश प्रश्न ऐसे मुद्दों से संबंधित हैं, जिनमें उनके व्यापक व्यावसायिक हितों के कारण उन्हें कुछ अनुभव और विशेषज्ञता है. उन्होंने जो सवाल उठाए हैं, उनमें बेरोजगारी, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी के लिए विश्वेश्वरैया पीएचडी योजना, भारत को जानो कार्यक्रम, पर्यटन, ओडिशा में कपड़ा और जल जीवन मिशन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं.
हालांकि, संसद में उनके पहले ‘विशेष उल्लेख’ के बारे में यह सच नहीं था. जुलाई 2019 में, वैष्णव ने “मीडिया की स्वतंत्रता और मीडिया कर्मियों की गरिमा सुनिश्चित करने” की मांग उठाई. अपने भाषण में, उन्होंने सदन का ध्यान एक मीडिया चैनल के मीडिया कर्मचारियों के अधिकारों की ओर आकर्षित किया. जिन्हें कथित तौर पर “दुर्व्यवहार”, “उनकी सुरक्षा के लिए खतरे” का सामना करना पड़ा और उन्हें “वेतन और मजदूरी का भुगतान न करने की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करने” के लिए मजबूर होना पड़ा.
यह कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल की पत्नी प्रोमिला सिब्बल द्वारा स्थापित तिरंगा टीवी का एक अप्रत्यक्ष संदर्भ था, जो वेतन का भुगतान न करने, बाहुबलियों के इस्तेमाल और अन्य मुद्दों पर विवाद के बीच 2019 में बंद हो गया था. वैष्णव शायद ‘विशेष उल्लेख’ के साथ कपिल सिब्बल को निशाना बना रहे थे. लेकिन उनकी खुद की कंपनी एडलर, मीडिया दिग्गज श्रीनि राजू के साथ समान रूप से या उससे भी अधिक, संदिग्ध प्रथाओं के साथ वित्तीय लेन-देन में शामिल थी; राजू की कंपनी, जिसका 2005 से कोई राजस्व नहीं था, ने 2019-20 में एडलर को 26 करोड़ रुपये का ऋण दिया.
2019 में वैष्णव के राज्यसभा के लिए चुने जाने के साथ ही उनकी कंपनी एडलर ने भी अपना व्यवसाय, ‘सेवाओं’ से बदलकर ‘छर्रों की बिक्री’ कर लिया. दिलचस्प बात यह है कि यह अपनी ही सहयोगी कंपनी टीपीपीएल से छर्रे खरीद रही थी और अलग-अलग मार्जिन पर इसे स्वतंत्र रूप से बेच रही थी- जैसे कि 2019-20 में 43.56 प्रतिशत, 2020-21 में 39.6 प्रतिशत और 2021-22 में 9.3 प्रतिशत.
इससे एडलर के राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो 2018-19 में 1.65 करोड़ रुपये से बढ़कर 2019-20 में 48.02 करोड़ रुपये और फिर 2020-21 में 323.27 करोड़ रुपये और 2021-22 में 348.4 करोड़ रुपये हो गया.
छर्रों की इस खरीद-फरोख्त के बीच, एडलर ने कभी भी कोई स्टॉक लंबित नहीं रखा, जैसा कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में कंपनी की बैलेंस शीट में दर्ज किया गया है. प्रत्येक वर्ष इन्वेंट्री शून्य दर्ज की गई.
वैष्णव ने अक्टूबर 2020 में एडलर के निदेशक, जून 2019 में टीपीपीएल और जुलाई 2021 में बीआरपीएल के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था. उनकी बेटी, बेटा और पत्नी अभी भी एडलर में निदेशक हैं. जबकि उनकी पत्नी एडलर की स्थापना के समय से ही निदेशक थीं, उनकी बेटी को मई 2017 में और बेटे को जुलाई 2019 में नियुक्त किया गया था.
2019-20 में, एडलर ने त्रिवेणी अर्थमूवर्स से अपने लंबित 77.39 करोड़ रुपये के ऋण का भी भुगतान किया, लेकिन iLabs समूह से जुड़ी तीन कंपनियों से 52.49 करोड़ रुपये का ऋण लिया- जिसका नेतृत्व पूर्व TV9 प्रमोटर श्रीनि राजू करते हैं. ये कंपनियां थीं आईविज़न मीडिया इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, स्कंद एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड और सोलर इंटीग्रेशन सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड.
स्कंद एयरोस्पेस, अंतरिक्ष विमानन उद्योग के लिए घटकों के निर्माण के व्यवसाय में थी, और सोलर इंटीग्रेशन सिस्टम्स सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के व्यवसाय में थी. आईविज़न को शुरुआत में एक मीडिया कंटेंट कंपनी के रूप में पेश किया गया. इसका उपयोग राजू ने पहले 2008 और 2018 के बीच मॉरीशस स्थित फंड से टेलीविजन नेटवर्क TV9 की होल्डिंग कंपनी, एसोसिएटेड ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड (ABCL) में 47 करोड़ रुपये के निवेश के लिए किया था. इतना ही नहीं, जब आईविज़न ने 2019-20 में एडलर को 26 करोड़ रुपये का लोन दिया तो बैलेंस शीट से पता चला कि 2005 से कंपनी को कोई राजस्व नहीं मिला है. ये कंपनी 2003 में बनी थी.
एडलर को दिए गए फंड के स्रोत के बारे में पूछे जाने पर, आईलैब्स ग्रुप के सीएफओ शेषाद्रि ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आईविजन को टीवी9 चैनल की मालिक कंपनी “एबीसीएल में अपने हिस्से” के लिए वो राशि मिली थी, तब तक आईलैब्स टीवी9 के व्यवसाय से अलग हो चुका था. उन्होंने बताया, “अलग होने के बाद, कंपनी के पास केवल नकदी थी और कोई व्यवसाय नहीं था. इसके बाद, यह हमारी एक ग्रुप कंपनी में विलय हो गई.”
उन्होंने यह भी कहा कि एडलर को लोन तब दिया गया जब लोन की व्यवस्था करने वाले सलाहकारों ने उनसे संपर्क किया. उन्होंने कहा, “जब हम अपनी इन बुनियादी संपत्तियों से बाहर निकले, तो इन कंपनियों के पास नकदी थी. अल्पकालिक ऋण देने की व्यवस्था करने वाले सलाहकारों ने हमसे संपर्क किया. उन्हें पता था कि हम अपनी अन्य परिसंपत्तियों से बाहर निकल चुके हैं. हमने अल्पकालिक ऋण दिया और उसे ब्याज सहित वापस कर दिया गया.”
रेलवे मैन
अपने संपर्कों के व्यापक नेटवर्क के बावजूद, वैष्णव ने सार्वजनिक रूप से एक संयमित छवि बनाए रखी है. वह बहुत कम साक्षात्कार देते हैं और हमेशा बातचीत को अपने व्यक्तिगत संबंधों के बजाय अपने द्वारा किए गए कामों की ओर मोड़ देते हैं. उदाहरण के लिए, जब द लल्लनटॉप ने वैष्णव से पूछा कि क्या यह सच है कि वह वाजपेयी के निजी सचिव इसलिए बने क्योंकि वह कांग्रेस के प्रधानमंत्री के अधीन काम नहीं करना चाहते थे. इस पर वैष्णव ने अपने जवाब में कांग्रेस का कोई जिक्र नहीं किया. उन्होंने सबसे बड़ी बात यह स्वीकार की कि वह वाजपेयी के इतने करीब थे कि उन्हें "बापजी" कहकर पुकारते थे. साक्षात्कार के दौरान वैष्णव ने रेल मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के बारे में बात की और बार-बार प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की.
हाल ही में, वैष्णव को कॉर्पोरेट उत्कृष्टता के लिए ईटी अवार्ड्स द्वारा बिजनेस रिफॉर्मर ऑफ द ईयर नामित किया गया. जो दर्शाता है कि वह सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा पसंद किए जाने की दुर्लभ उपलब्धि हासिल करने में सक्षम हैं.
ओडिशा के पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व कांग्रेस नेता बिजय पटनायक ने कहा, "एक नौकरशाह के रूप में वह बहुत सक्षम थे. इसमें कोई संदेह नहीं है. बुद्धिमान, अच्छा व्यवहार करने वाले, बात करने में निपुण, कुशल. लेकिन ओडिशा छोड़ने के बाद… मुझे लगता है कि वे राजनीति में चले गए.”
जून 2024 में सूचना और प्रसारण मंत्री नियुक्त किए जाने के बाद वैष्णव के नेटवर्किंग कौशल और दूसरों को खुश करने के सरल तरीके खोजने की योग्यता स्पष्ट हो गई. हाल ही में कैबिनेट ब्रीफिंग में शामिल हुए एक पत्रकार ने कहा, “वे बहुत नरम स्वभाव के हैं, मीडिया के बहुत अनुकूल हैं. इसलिए वह इसे बहुत अच्छी तरह से निभा पा रहे हैं.”
इस पत्रकार ने आगे कहा, “वे लगभग 10 सालों के बाद भोजन पैकेट संस्कृति को भी वापस लाए. मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद ‘समोसा संस्कृति’ को बंद कर दिया है. अब वे [वैष्णव] पत्रकारों को भोजन के पैकेट देते हैं, जिसमें गर्म समोसा, जलेबी, केक और कभी-कभी डोसा भी शामिल होता है… इससे कैबिनेट ब्रीफिंग में अधिक पत्रकार आकर्षित होते हैं. यही ये सरकार चाहती है.”
वैष्णव के अब तक के करियर का सबसे बड़ा पल 2021 में आया. जब उन्हें रेल मंत्रालय का प्रभार मिला.
बीते एक दशक से रेलवे को कवर करने वाले एक अन्य पत्रकार न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, "वैष्णव लोडिंग सेक्टर और वैगन सेक्टर से भी जुड़े रहे हैं. इसलिए उन्हें पता है कि समस्या कहां है, उद्योग के लोगों को उनकी जरूरतों के हिसाब से वैगन क्यों नहीं मिल रहे हैं और कितना भ्रष्टाचार है. इसलिए, रेल मंत्री बनने से पहले ही, वे रेलवे के कामकाज से अच्छी तरह वाकिफ़ थे."
मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद, वैष्णव ने स्टेशनों के पुनर्विकास और अधिक वंदे भारत ट्रेनों की शुरुआत जैसे सुधारों के साथ शुरुआत की. 10 लाख से ज़्यादा लोगों को रोज़गार देने वाले इस विभाग में वरिष्ठ अधिकारियों को मंत्री जी के मानकों पर खरे नहीं उतरने पर भी हटाया गया या तबादला किया गया. मसलन जनवरी 2022 में, रेलवे बोर्ड के सदस्य (ट्रैक्शन और रोलिंग स्टॉक) राहुल जैन की सेवाएं समाप्त कर दी गईं.
न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक, "सूत्रों के अनुसार, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जैन को फटकार लगाई थी और उनसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन करने को कहा था और उन्हें छुट्टी पर भेज दिया गया था."
इस वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो रेल मंत्री के तौर पर ये उनके करियर में कुछेक कमजोर पल भी आए. वैष्णव के कार्यकाल में बड़ी संख्या में रेल दुर्घटनाएं हुईं. यहां तक कि उन्हें "यू-टर्न मिनिस्टर" की संज्ञा दी गई. दरअसल, रेलवे के भीतर नौ सेवाओं को एक में मिला दिया गया था, लेकिन नकारात्मक प्रतिक्रिया के चलते सेवा को दो भागों में विभाजित कर दिया गया.
भारतीय रेलवे के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक सुशांशु मणि ने बताया कि अब तक वैष्णव के कार्यकाल में विभाग को सताने वाले प्रमुख मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया है. मणि ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर के मूल्यांकन के लिए प्रमुख संकेतकों में माल ढुलाई और यात्री लोडिंग डाटा शामिल हैं. जो दोनों ही चिंताजनक रुझान दिखाते हैं. एनटीकेएम (नेट टन किलोमीटर) के संदर्भ में माल ढुलाई में गिरावट आई है. यात्रियों की संख्या अभी-अभी कोविड से पहले के स्तर पर लौटी है. परिचालन अनुपात 100 के आसपास बना हुआ है. जो ये दिखाता है कि भारतीय रेलवे पुनर्निवेश के लिए लगभग कोई अतिरिक्त राजस्व पैदा नहीं करता है. जो कि वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं है.” .
मणि ने यह भी दावा किया कि वंदे भारत ट्रेनों की शुरूआत 2022 के बजट में निर्धारित लक्ष्यों से कम हो रही है. आधुनिकीकरण का एजेंडा ज्यादातर अधूरी परियोजनाओं का खाका नजर आता है, जैसे कि मुंबई और अहमदाबाद के बीच लंबे समय से लंबित हाई-स्पीड रेल लाइन, पश्चिमी रेल के अपने मालवाहक कॉरिडोर प्रोजेक्ट की धीमी गति और वंदे भारत ट्रेनों के तकनीकी विकास में आ रहा ठहराव कुछ ऐसे ही मुद्दे हैं.
मणि ने कहा, “संक्षेप में, पर्याप्त बजट आवंटन और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, भारतीय रेलवे गंभीर प्रणालीगत मुद्दों और अपने अधिकारियों के कम मनोबल का सामना कर रहा है. जो कि इसके आधुनिकीकरण और प्रदर्शन के लक्ष्यों की प्राप्ति में अड़चन डालते हैं.”
हालांकि, इस वरिष्ठ पत्रकार ने मणि से सहमति जताई. पत्रकार ने कहा, "पिछले कुछ सालों में ट्रेन दुर्घटनाओं या पटरी से उतरने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है. ट्रेनों के पटरी से उतरने के अलावा, वे समर्पित मालवाहक गलियारे (डेडिकेटेड फ्राइट कॉरिडोर) के विस्तार में भी विफल रहे. इसमें लगभग 10 साल की देरी हुई. इसी तरह वे बुलेट ट्रेन के मोर्चे पर भी विफल रहे. इसलिए, वंदे भारत को छोड़कर उनकी प्रगति बहुत उत्साहजनक नहीं है."
वैष्णव के रेल मंत्री के कार्यकाल में देश भर में लगभग 113 रेल दुर्घटनाएं हुईं. साल, 2023 में ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस की एक कच्चे लोहे से लदी मालगाड़ी से टक्कर को तीन दशकों में भारत की सबसे भयंकर रेल दुर्घटना माना जाता है. इसमें 293 यात्रियों की मौत हो गई और 1,100 घायल हो गए. हालांकि, इनमें से किसी को भी वैष्णव की स्थिति के लिए खतरा नहीं माना जाता है.
कई सालों से रेलवे को कवर करने वाले एक पत्रकार ने कहा, "वे मोदी सरकार की कुछ बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने में विफल रहे, लेकिन उन्हें कभी भी बर्खास्त नहीं किया जाएगा क्योंकि उन्हें बर्खास्त करने का मतलब खुद पीएम मोदी की विफलता होगी."
न्यूज़लॉन्ड्री ने वैष्णव और त्रिवेणी अर्थमूवर्स को ईमेल के जरिए प्रश्नावली भेजी है. जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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नोट: पहचान सुरक्षित रखने के लिए इस स्टोरी में पत्रकार का नाम गुप्त रखा गया. इसके लिए स्टोरी को 14 जनवरी को अपडेट किया गया.
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