Get all your news in one place.
100’s of premium titles.
One app.
Start reading
Newslaundry
Newslaundry
अभिनंदन सेखरी

हवा का हक़: जहरीली हवा और सांसों पर संकट ने हमें मजबूर कर दिया

न्यूज़लॉन्ड्री में हम आम तौर पर कोई मुहिम नहीं चलाते हैं- और मुहिम से मेरा मतलब है कि किसी खास मकसद के लिए खासतौर से कुछ करने का आह्वान, जो सिर्फ अखबारी सुर्खी भर नहीं बल्कि असल में एक बड़ा मुद्दा है. इसकी वजह ये है कि कभी-कभी इस तरह की मुहिम आपको दुविधा में डाल देती हैं. नैतिकता भी मांग करती है कि एक मीडिया संस्थान किसी मुहिम का न हिस्सा बनें और न ही किसी तरह का आह्वान करे. फिर चाहे वजह कोई भी हो. ऐसा करने में एक और खतरा निहित है. ऐसा करने वाला मीडिया संस्थान उस तथाकथित मुद्दे की वकालत का मंच बन सकता है. और फिर वहां जर्नलिस्ट की बजाय एक्टिविस्ट बनने शुरू हो जाएंगे. किसी भी समाज में, विशेष रूप से लोकतंत्र में, दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन दोनों ही बहुत अलग भूमिकाएं हैं. (मेरा विश्वास करिए, मैं अपने जीवन में अलग-अलग समय पर दोनों भूमिकाओं में रहा हूं) और दोनों के बीच लकीर मिटने से जटिलताएं पैदा हो सकती हैं, जो हमारे काम को नुकसान पहुंचा सकती है.

ये पहली बार है, जब हम पिछले 12 सालों में कोई मुहिम चलाने जा रहे हैं. हमें यह इसलिए करना पड़ रहा हैं क्योंकि यह करना अनिवार्य और अपरिहार्य हो गया है. आगे मैं इसकी वजहें भी बताउंगा. 

इससे पहले हमने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा पेश किए गए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के खिलाफ इंटरनेट इंकलाब” नामक मुहिम चलाई थी. तत्कालीन आईटी मंत्री कपिल सिब्बल के (गलत) मार्गदर्शन में यह अधिनियम सामने आया था. इस मुहिम के चलते हम यूपीए सरकार के साथ उलझे रहे. (वैसे भी सरकारों के साथ हमारा खट्टा-मीठा रिश्ता रहा है, जो कि मीडिया हाउस के नाते होना भी चाहिए). आज जो लोग यूपीए सरकार की बहुत आलोचना करते हैं, उन्होंने तब एक शब्द भी नहीं बोला था और हमने उनसे एक शब्द भी नहीं सुना. किसी में भी ऐसी मुहिम चलाने की हिम्मत नहीं थी, जबकि कई तो बहुत ही कम जरूरी कारणों के लिए नित नई मुहिम चलाते रहते हैं.

खैर, मैं बताता हूं कि हमने वह मुहिम चलाने की क्यों ठानी? वो क्यों अनिवार्य और अपरिहार्य था? आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत न्यूज़लॉन्ड्री जैसे समाचार पोर्टल और किसी भी डिजिटल जर्नलिस्ट को हिरासत या जेल भेजा जा सकता था. इस अधिनियम में इतने कठोर और अस्पष्ट अधिकार थे कि कानूनी एजेंसी, विशेष रूप से पुलिस, किसी भी लेख से लेकर ट्वीट या एफबी पोस्ट के लिए गिरफ्तारी या कार्रवाई को जायज ठहराने के लिए मनमुताबिक व्याख्या कर सकती थी. इस खतरे के मद्देनजर हमने इसे वापस लेने की मुहिम चलाई. क्योंकि सिर्फ हमारे ही नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया के तमाम पत्रकारों और संगठनों के अस्तित्व का मुद्दा था. 

अब 11 साल बाद हम एक बार फिर से अपवाद स्वरूप एक मुहिम, एक अभियान चलाने जा रहे हैं. इस बार भी मुद्दा अस्तित्व से जुड़ा है. न सिर्फ हमारे बल्कि तमाम इंसानों के लिए. बच्चों से लेकर बूढ़ों तक और युवाओं से लेकर महिलाओं तक सारे लोग इसकी चपेट में हैं. खराब हवा का हमारे ऊपर बहुत ही घातक प्रभाव पड़ रहा है. 

लगभग पूरे साल उत्तर भारत का ज़्यादातर हिस्सा ऐसी हवा में सांस लेता है जो बहुत ही ज़्यादा जहरीली हो चुकी है. कई बार हमारी हवा में प्रदूषण संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुरक्षित मानी जाने वाले दायरे से कई गुना बढ़ जाता है. बारह में से दो या तीन महीनों के लिए तो हवा में मानो जहर घुल जाता है. यह कई सौ गुणा तक प्रदूषित हो जाती है. इसका असर देश भर में करोड़ों लोगों पर पड़ता है जबकि सबसे ज़्यादा ध्यान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर जाता है. तो यह एक अनिवार्य, अपरिहार्य और अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा बन चुका है. यह एक पूरी पीढ़ी के जीवन, कल्याण और समग्र विकास को प्रभावित करता है. यह हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों के साथ ही हमारे सोचने विचारने और निर्णय लेने की क्षमता पर भी बुरा असर डालता है. 

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ‘जहरीली हवा’ में पैदा हुए बच्चे के लिए यह कैसा होता है? हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई खेलो इंडिया सुपरस्टार या स्वस्थ लाडली बहना इस तरह की मुश्किलों के साथ उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ेगी? ‘अवैध घुसपैठिए’ जैसे मुद्दे इसके सामने बेकार और बेबुनियाद ही कहे जा सकते हैं जबकि आपकी सांसों ही जहर घुल रहा हो. इसीलिए ये मुद्दा न केवल न्यूज़लॉन्ड्री के लिए बल्कि आपके और आपके प्रियजनों के भी अस्तित्व से जुड़ा है. क्या हम बस बैठे रहें और अपने बच्चों को बीमार होते और मरते देखें?

हमारी ये मुहिम साल भर जारी रहेगी. हम कार्यक्रमों, लेखों, इंटरव्यूज़, रिपोर्ट्स समेत तमाम तरीकों से इसके लिए जिम्मेदार लोगों से सवाल पूछते रहेंगे ताकि जिम्मेदार लोग कार्रवाई के लिए मजबूर हों. हमारा अभियान सिर्फ उन दो महीनों के लिए नहीं है जब उत्तर भारत के ज़्यादातर हिस्सों की हवा खराब होती है. सच ये है कि यह पूरे साल ही सुरक्षित सीमा के ऊपर रहती है. और हम इसे नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसा न करें! ऐसा करना ठीक नहीं- न आपके लिए और ना ही आपके बच्चों के लिए. (अगर बच्चे अभी नहीं हैं तो जहरीली हवा उस संभावना को भी खत्म कर सकती है).

तो इस मुहिम में हमारा साथ दें. हमारी टीमें साल भर इस मुहिम पर काम करेंगी. साल के बाकी दिनों में यह मुद्दा उस तरह से सुर्खियों का हिस्सा नहीं होगा जैसे चुनाव, हेट स्पीच, हेट क्राइम, महंगी-महंगी शादियां, भ्रष्टाचार, राजनीति, बुलडोजर या गिरफ्तारियां होती हैं. हम इस मुहिम को पूरे साल जारी रखेंगे ताकि ज़्यादा से ज्यादा लोग हमारे साथ आएं.  

हम अपना काम करेंगे. हमें आपसे भी उम्मीद है कि आप भी अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे. हम सत्ता को जवाबदेह ठहराएंगे, सवाल पूछेंगे, जरूरत पड़ी तो सख्ती से भी पूछेंगे. इसीलिए जरूरत है हम सब साथ आएं. हमारी टीम का हौसला बढ़ाएं.

हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा. आपके पास जो भी सुझाव या सलाह है, वो हमसे ubmissions@newslaundry.com पर साझा करें. और सबसे जरूरी बात, हमारी टीम और मुहिम सालभर आगे बढ़ती रहे इसके लिए हमें आर्थिक सहयोग करें. मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें के हमारे नारे को बुलंद करें. 

Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.

Sign up to read this article
Read news from 100’s of titles, curated specifically for you.
Already a member? Sign in here
Related Stories
Top stories on inkl right now
Our Picks
Fourteen days free
Download the app
One app. One membership.
100+ trusted global sources.