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श्रीनिवासन जैन

400 पार के दावों, अंबानी- अडाणी और अमेठी ‘छोड़ने’ के आरोपों पर क्या बोलीं प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी वाड्रा भले ही एक कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में रायबरेली या अमेठी से चुनाव न लड़ रही हों लेकिन उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार के क्षेत्र के रूप में देखी जाने वाली दोनों लोकसभा सीटों पर पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभाल रखी है.

राहुल गांधी रायबरेली से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. यहां भाजपा ने उत्तर प्रदेश के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है. वहीं, कांग्रेस नेता किशोरी लाल शर्मा अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

श्रीनिवासन जैन ने अमेठी में चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की. उन्होंने इस चुनाव में पार्टी की संभावनाओं और रणनीति से लेकर भाजपा के आरोपों और अपने भाई राहुल गांधी समेत कई मुद्दों पर बातचीत की. 

अंग्रेजी में हुई इस बातचीत के कुछ अहम हिस्से हम हिंदी पाठकों के लिए लाए हैं. पढ़िए. 

पहली बात जो हर कोई आपसे जानना चाहता है, वो है आपका दृष्टिकोण, कि अब हम इस चुनाव के अंत की ओर हैं, आपको क्या लगता है यह किस तरफ जा रहा है? क्या ऐसा, जैसा कि कई लोगों को शुरुआत में लगा था या कम से कम भाजपा ने इसे दिखाया, कि सब एकदम तय ही है, या नहीं?

उन्होंने इसे वैसा ही दिखाया था. और मुझे लगता है जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है, यह काफी अलग होता दिख रहा है. जमीनी स्तर से हमें जो रिपोर्ट मिल रही है, वह इंडिया (गठबंधन) के लिए बहुत सकारात्मक है और मुझे लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह सब जगह हो रहा है, हम जहां भी जा रहे हैं, कम से कम हमारा यही अनुभव है कि लोग बदलाव चाहते हैं. वे इस तरह की राजनीति से थोड़ा थक गए हैं.

क्या आप कह रही हैं कि भाजपा हारने वाली है?

मैं कह रही हूं कि इंडिया (गठबंधन) जीतने जा रहा है.

ठीक है. हालांकि प्रियंका, आपके प्रति पूरे सम्मान के साथ, कांग्रेस ने 2019 में भी यही कहा था. इतना ही नहीं, मैंने राहुल का साक्षात्कार लिया था और उन्होंने कहा था कि भाजपा का सफाचट हो जाएगा और हम जानते हैं कि क्या हुआ.

वह ठीक है.

तो बदला क्या है...

हम देखेंगे क्या होगा.

तो बदलाव क्या है, आप क्या अंतर देख रही हैं?

मैं जो देखती हूं, कि भीड़ में, जिन लोगों से हम मिलते हैं- उनमें एक तरह की भावना होती है कि देखो, हमें बताया गया है कि ये सभी अद्भुत चीजें हो रही हैं, लेकिन इन्हें हम अपने जीवन में नहीं देख पा रहे हैं. इसलिए हम पीड़ित हैं, कीमतें इतनी ज़्यादा हैं कि हम अब और बर्दाश्त नहीं कर पा रहे. किसान परेशान हैं, आम लोग परेशान हैं, हमें कुछ नजर नहीं आता. और उन्हें सरकार व प्रधानमंत्री से बुनियादी सम्मान भी नहीं मिल रहा है. और अन्य भाजपा नेताओं द्वारा यह बताया जाए कि हमने आपके लिए यही किया है, ये हम करना चाहते हैं. इतना भी नहीं है. इसलिए वे इन चीज़ों को अपने जीवन में नहीं देख रहे हैं, और उन्हें बताया भी नहीं जा रहा है. चुनावी रैलियों के दौरान चर्चा और सब कुछ बिल्कुल अलग है. मेरा मतलब है, हम वास्तव में जनता को  प्रभावित करने वाली चीजों से बिल्कुल अलग चीजों के बारे में बात कर रहे हैं. इसलिए मुझे लगता है कि अब जनता इससे थोड़ा ऊबने लगी है. और कम से कम वे हमें जो बताते हैं, वे वास्तव में यह सुनना चाहते हैं कि पार्टियां इस तरह की महंगाई को कम करने के लिए क्या करना चाहती हैं और उन्हें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से निपटने में मदद करें.

तो मैं इस पर आपका दृष्टिकोण पूछना चाहता था, क्योंकि जब हम बाहर जाते हैं और जनता से पूछते हैं तो यह सच है कि हम शिकायतें सुनते हैं. महंगाई, बेरोजगारी, ये सब कुछ है. लेकिन जब हम पूछते हैं कि आप किसे वोट देंगे? वे अब भी भाजपा या मोदी कहते हैं. तो फिर हम कहते हैं क्यों? वे कहते हैं कि एक कारण यह है कि...कोई विकल्प...दिखाई नहीं दे रहा है.

पूरे सम्मान के साथ कहना चाहूंगी, मुझे नहीं लगता कि जनता अब आप पर भरोसा करती है.

आप मतलब कौन? मैं?

नहीं, मीडिया.

ठीक है. मैंने सोचा, आप मुझे व्यक्तिगत रूप से कह रही हैं.

नहीं, मुझे नहीं लगता कि जनता मीडिया पर भरोसा करती है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि जनता आपको यह भी बताएगी कि वह क्या सोच रहे हैं, क्योंकि जनता के बीच भी ये बड़ी मजबूत धारणा है कि मीडिया वास्तव में अब सच्चा नहीं है और मीडिया सिर्फ चल रहा है और सरकार के लिए काम कर रहा है . मुझे नहीं लगता कि वे गलत हैं. मेरा मतलब है कि आप अपने अनुभव से जानते हैं कि वे गलत नहीं हैं.

नहीं-नहीं, निश्चित रूप से मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि मीडिया का बड़ा हिस्सा प्रोपगेंडा में लगा है. लेकिन मैं एक अलग बात कह रहा था. मैं यह कहना चाह रहा था कि विकल्प के बारे में थोड़ा भ्रम है क्योंकि मैं जानता हूं...हमारे पास राष्ट्रपति प्रणाली नहीं है लेकिन जब आपके सामने यह मोदी वाली बात है...तो हमारे सामने नेता कौन है?

लेकिन यही तो उन्होंने 2004 में भी कहा था. उन्होंने ये बात 2009 में भी कही थी. सच कहूं तो परिणाम क्या होने वाला है, आपको और मुझे तभी पता चलेगा जब हमारे सामने कोई परिणाम होगा.

ज़रूर. लेकिन आपको नहीं लगता कि यह एक नुकसान है...

लेकिन क्या ये कुछ ऐसा है जो सही में जनता को परेशान कर रहा है या नहीं? ये न तो आप बता सकते हैं और न ही मैं, क्योंकि अतीत में ऐसा नहीं हुआ. ऐसे बहुत से चुनाव हुए हैं जहां प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार शुरू से ही स्पष्ट नहीं रहा है, और वे वैसे ही चले गए जैसे उनको जाना था. इसलिए मुझे नहीं लगता कि उनके दिमाग में यह इतना बड़ा मुद्दा है. मुझे लगता है कि आज जनता के मन में जो बात ज़्यादा ज़रूरी है कि आज बेरोजगारी ऐतिहासिक दर पर है और कीमतें (महंगाई) कुछ ऐसे बढ़ी है कि वे अब इसे संभाल नहीं सकते हैं और किसान अपना गुजारा करने में सक्षम नहीं है.

ठीक है, तो आप कह रही हैं कि इंडिया (गठबंधन) को बढ़त हासिल है. भाजपा फिसल रही है. अब यह उस कारण से या किसी अन्य कारण से, यह तो हम नहीं जानते. प्रधानमंत्री ने इस अभियान के बीच में ही पैंतरा बदल लिया है. वह मुसलमानों की बात कर रहे हैं, वह मंगलसूत्र की बात कर रहे हैं, वह मटन की बात कर रहे हैं, इत्यादि.

और मैं आपको बता दूं कि लोगों को यह पसंद नहीं है. लोगों को यह पसंद नहीं है. ये जितना चलना था चल चुका.

...लेकिन क्या आपको इस बात की चिंता है कि वह ध्रुवीकरण या सांप्रदायिकरण करने की कोशिश कर रहे हैं?

नहीं…

क्या यह कुछ ऐसा है जिससे आप चिंतित हैं?

दरअसल, वह जो कर रहे हैं, वह जनता के सामने यह दिखा रहे हैं कि वह अब जनता से कट गए हैं. इसलिए यह हमें बिल्कुल भी चिंतित नहीं करता है. अगर आप लोगों से पूछें कि मैं जहां भी जा रही हूं, तो क्या मैं इस तथ्य के बारे में बात कर रही हूं कि वह कह रहे हैं कि हम उनकी भैंसें चुराने जा रहे हैं, तो लोग हंस रहे हैं. यह बहुत संभव है कि वे इतने शक्तिशाली हैं और लोग उनसे डरते हैं और इसलिए उनके सलाहकार भी उन्हें ये नहीं बता रहे हैं कि जनता के बीच ठीक सन्देश नहीं जा रहा है. जनता वास्तव में अपनी समस्याओं के बारे में सुनना चाहती है. हमें जगह मिलने का एक कारण यह है कि हम गारंटी के बारे में बात कर रहे हैं. हम कह रहे हैं कि हम जो गारंटी दे रहे हैं, वह हम पहले से ही कई राज्यों में कर रहे हैं. कृपया देखें कि हम क्या कर रहे हैं. हम यही करना चाहते हैं. हम आपका पैसा आपके हाथों में वापस देने की बात कर रहे हैं. तो मुझे लगता है कि इसलिए... कहीं न कहीं हम आज जनता के साथ तालमेल कर पा रहे हैं क्योंकि वह यह सब सुनकर थक गए हैं. बहुत से लोग यह भी कहते हैं कि हम हिंदू-मुस्लिम आधार पर दूसरा चुनाव नहीं चाहते. हम इस बात पर चुनाव चाहते हैं कि हमारी समस्याओं को कौन दूर करेगा. और यह अब भाजपा से नहीं आ रहा है, सबसे बड़े नेता से लेकर सबसे छोटे नेता तक. वह मुद्दा ही नहीं उठ रहा है. वे इसके बारे में बात ही नहीं कर रहे हैं.

लेकिन सिर्फ इसलिए स्पष्ट कर रहा हूं क्योंकि वे बार-बार यही बात दोहराते रहते हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो ओबीसी से आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने जा रही है. बार-बार यही कह रहे हैं.

वह जो झूठ बोल रहे हैं, मैं उस पर प्रतिक्रिया क्यों दूं?... क्या उन्होंने हमारा घोषणापत्र पढ़ा भी है? ऐसा लगता है कि वह हमारे घोषणापत्र को हमसे बेहतर जानते हैं. वह इसमें चीजों की कल्पना कर रहे हैं. मनगढ़ंत चीजों को जोड़ रहे हैं. वह लाखों लोगों से ऐसे सरासर झूठ बोल रहे हैं जो हमारे घोषणापत्र में हैं ही नहीं. मेरा मतलब है कि ये देश के प्रधानमंत्री हैं. लोगों के प्रति उनकी कुछ ज़िम्मेदारी है कि कम से कम उन्हें सच तो बताएं. और जब वह किसी दस्तावेज़ के बारे में बात कर रहे हैं जो सार्वजनिक है, तो उसे कम से कम यह साबित करने में सक्षम होना चाहिए कि वह जो कह रहे हैं वह उस दस्तावेज में मौजूद है. लेकिन वो इसमें है भी नहीं. तो यह वास्तव में किसी के हकीकत से संपर्क खोने का मामला है. कोई जनता से संपर्क खो रहा है. यह नहीं समझ रहे कि आज जनता हर स्तर पर भारी समस्याओं से जूझ रही है. यहां तक कि मध्यम वर्ग भी, गरीब लोग भी. हर कोई इन चीजों से पीड़ित है जिन्हें मैं लगातार दोहरा रही हूं. और सरकार और भाजपा पार्टी को इन मुद्दों का समाधान करना होगा. उनका घोषणापत्र कहां है? वे अपने घोषणापत्र के बारे में बात क्यों नहीं करते? क्या उन्होंने अपने घोषणापत्र के बारे में एक शब्द भी कहा है? वे बस फ़िज़ूल बात करते हैं जो हमारे घोषणापत्र में नहीं है, लेकिन वे कहते हैं कि यह हमारे घोषणापत्र में है. इसलिए वे हमारे घोषणापत्र का खुलकर प्रचार करते हैं.'

इसलिए वे (भाजपावाले) कांग्रेस के बारे में एक आरोप लगाते हैं कि आप भी गलत सूचना फैला रहे हैं. कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो संविधान बदल दिया जाएगा और आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा...

ठीक है. तो अरुण गोविल कौन हैं? कौन है ये?

हम जानते हैं वह कौन है.

नहीं, मुझे बताओ वह कौन है? आपको नहीं पता?

वह मेरठ से भाजपा के उम्मीदवार हैं. मैं मेरठ गया हूं और मैंने उन पर एक पूरा कार्यक्रम किया है. मैंने सोचा कि आप मुझसे अलंकारिक रूप से पूछ रही थीं.

वह, मेरठ से भाजपा के उम्मीदवार हैं.

हां, बिल्कुल, वो हैं.

और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि हमें वोट दें, हमें 400 सीटें दें, हम संविधान बदल रहे हैं. उस दूसरे व्यक्ति का नाम क्या था जिसके साथ पीएम ने रोड शो किया था?

लल्लू सिंह. मुझे लगता है फैजाबाद के उम्मीदवार हैं.

फैजाबाद प्रत्याशी. उन्होंने कहा कि हम संविधान बदलने जा रहे हैं. पीएम उनके साथ रोड शो कर रहे हैं. तो कृपया मुझे बताएं. कांग्रेस पार्टी की हमेशा यही आलोचना होती रहती है. कांग्रेस के नेता अलग-अलग...यहां तक कि नीतिगत मुद्दों पर भी तरह-तरह की बातें कहते हैं. कोई कुछ कह रहा है. कोई कुछ कह रहा है. और यह एक ऐसी आलोचना है जिस पर मीडिया ज़ोर देता है...

ठीक है, सैम पित्रोदा कारक या जो भी हो.

आप कभी भी भाजपा की आलोचना नहीं करते क्योंकि आप भी हमसे कहते हैं कि आपको भाजपा जैसा होना चाहिए. शीर्ष नेतृत्व जो कहता है, नीचे तक हर व्यक्ति वही कहता है. तो कृपया मुझे बताएं कि नीचे के दसियों लोग यह बात कैसे फैला रहे हैं कि अगर हमें 400 सीटें मिलेंगी तो हम मोदी जी की अनुमति के बिना संविधान बदल देंगे? मैं इस पर विश्वास नहीं करती.

वे कह रहे हैं कि ये कोई वजनदार नेता नहीं हैं.

आपके या भाजपा के हिसाब से भाजपा में ऐसा नहीं होता? वे अपने आदेश पर चलते हैं? इसलिए उन्हें ऐसा कहने के लिए कहा गया है. एक बार जब उन्हें यह कहने के लिए कहा गया तो उन्होंने देखा कि जनता में प्रतिक्रिया हुई, और वे पीछे हट गए. मोदीजी अब मंच पर खुद खड़े हो गए और कह चुके हैं कि ऐसा नहीं है, और उन्होंने अपना बचाव किया और साफ़ तौर पर पूरी तरह से बचाव की मुद्रा में आ गए क्योंकि उन्होंने खुद ही इसकी शुरुआत की थी. इसलिए हमें उन पर भरोसा नहीं है. सिर्फ इसलिए कि मोदी जी कह रहे हैं कि वह ऐसा नहीं करेंगे, इसका मतलब यह नहीं है कि वे ऐसा नहीं करेंगे. यह वे ही हैं जिन्होंने सबसे पहले अपने नेताओं से यह बात कहलवाई. मेरठ या फ़ैज़ाबाद में चुनाव में खड़ा व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं है. वह भाजपा में चुनाव लड़ रहे व्यक्ति हैं. वह स्पष्ट रूप से नेतृत्व के आदेश के अनुसार चल रहे हैं.

ठीक है, तो आप कह रही हैं, आप अपनी योजनाओं और गारंटियों के साथ संदेश पर बनी रहेंगी, लेकिन महिलाओं के लिए प्रति वर्ष 1 लाख रुपये की योजना जैसे विषय पर राजकोषीय विवेक का सवाल भी है...

तो कहां है...

जो आपका बहुत बड़ा वादा है...उसकी फंडिंग कहां है?

क्षमा करें, मैं आपको लगातार टोक दे रही हूं.

नहीं, नहीं, नहीं. वो ठीक है.

मेरा भाई कहता है कि मैं ऐसा बहुत करती हूं.

नहीं - नहीं. एक पत्रकार के रूप में मैं इसका आदी हूं.

हालांकि, मेरे पति ऐसा नहीं कहते हैं.

खैर...हमें इस पर आपकी बात माननी होगी, लेकिन फिर भी.

जब आप अपने बड़े उद्योगपति मित्रों के लिए 16 लाख करोड़ का ऋण माफ कर रहे हैं तो राजकोषीय समझदारी (फिस्कल प्रूडेंस) सामने नहीं आती है, तब राजकोषीय समझदारी पर कोई सवाल नहीं? जैसे ही हम किसानों के ऋण के बारे में बात करते हैं, महिलाओं को सीधे धन हस्तांतरण के बारे में बात करते हैं तो आप राजकोषीय समझदारी के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं. तो मुझे लगता है कि आप जानते हैं कि वह जो कह रहे हैं, मैं उससे बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं. और हमारी पार्टी में (पूर्व मंत्री पी.) चिदम्बरम जी जैसे लोग हैं और वे सभी जिन्होंने पूरे घोषणापत्र का अध्ययन किया है, और आप जानते हैं कि ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे चिदंबरम जी संभव न मानते हुए भी पारित होने देंगे.

तो इसे फंड किया जा सकता है?

अगर जरूरत पड़ी तो वह पूरी पार्टी के साथ इस पर बहस करेंगे कि इसे फंड नहीं किया जा सकता है. तो मनमोहन सिंह जी हैं, चिदंबरम जी हैं. ऐसे अनुभवी वित्त मंत्री हैं जो दशकों तक वित्त मंत्री रहे हैं और वे जानते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं. इसलिए यदि वे कह रहे हैं कि यह किया जा सकता है, तो यह किया जा सकता है.

तो आप कह रही हैं कि आप इसे इन...उद्योगपतियों से वापस लेने जा रहे हैं.

मैं यह नहीं कह रही हूं कि मैं किसी से कुछ वापस ले लूंगी. मैं कह रही हूं कि भाजपा जैसी चाहे आलोचना करने के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते कि यह सभी पर लागू हो. मैं यह कह रही हूं कि अगर भाजपा कह रही है कि राजकोषीय विवेक हमारे किसानों को ऋण माफी देने में सक्षम होने पर लागू होता है, तो हम कह रहे हैं कि निश्चित रूप से यह आपके 16 लाख करोड़ रुपये के ऋण माफी पर भी लागू होना चाहिए जो आप देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों को दे रहे हैं. हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम इसे एक व्यक्ति से छीनकर दूसरे को देने जा रहे हैं. हम कह रहे हैं कि आपकी आलोचना अमान्य है क्योंकि आप उसी का उपयोग अपनी नीतियों की जांच के लिए नहीं कर रहे हैं. हम बस इतना ही कह रहे हैं.

प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि आपकी उद्योगपतियों के साथ गुप्त डील है. अडाणी-अंबानी कांग्रेस को काला धन टेंपो में भेज रहे हैं और इसीलिए कांग्रेस ने बोलना बंद कर दिया है...

...अगर प्रधानमंत्री अब सार्वजनिक रूप से अडाणी और अंबानी के साथ अपने संबंधों का बचाव कर रहे हैं तो जाहिर तौर पर बचाव करने के लिए कुछ है.

लेकिन कोई गुप्त सौदा नहीं है?

साफ़ तौर पर नहीं.

तो आप लोग आगे भी जारी रखेंगे...

उनका कहना है कि मेरा भाई अब अडाणी- अंबानी के बारे में बात नहीं करता है. मैं कल दो बैठकों में उनके साथ थी. उन्होंने कम से कम 12 बार उनका (अंबानी-अडाणी का) नाम लिया होगा. इसलिए वह हर दिन उनके बारे में बात कर रहे हैं. इसलिए वह गलत आधार पर गलत आरोप लगा रहे हैं . और आप मुझसे उत्तर की उम्मीद करते हैं?

...यह आरोप कितना उचित है कि प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद कांग्रेस अपने आप को पूरी तरह से साधने में कामयाब नहीं रही है? आप अब लड़ाई में हैं, लेकिन पिछले पांच वर्षों में...संगठन अपने पैरों पर खड़ा नहीं हुआ है.

जब कोई पार्टी सत्ता से बाहर होती है तो उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.. सिर्फ इसलिए कि वह सत्ता से बाहर है, आप हार गए हैं. आपके पास एक कैडर है, जो हार गया है. मनोबल की हानि होती है. साथ ही भारत के इतिहास में विपक्षी दलों पर इस तरह का हमला कभी नहीं हुआ, जैसा मोदी जी ने पिछले 10 वर्षों में किया है. कृपया हमारे इतिहास के किसी एक कालखंड का नाम बताएं, जब इस तरह से हुआ हो. ऐसा है ही नहीं. एक चुनाव जिसमें दो मुख्यमंत्रियों को जेल में डाल दिया गया है. जो भी राजनीतिक नेता उनका विरोध कर रहे हैं, उनके खिलाफ मामले हैं, झूठे मामले हैं. हर तरह की चीजें. ईडी, सीबीआई के छापे, इनकम टैक्स के छापे. जो नेता भाजपा के विरोधी हैं उन पर बहुत ज़्यादा दबाव है.

...सरकारें चुने जाने पर अन्य दलों के राजनेताओं को… भुगतान करके, रिश्वत देकर गिराई जा रही हैं. यह सब चल रहा है… मेरा मतलब है कि जब यूपीए सरकार थी तो मीडिया दिन-ब-दिन हर नीति पर हमसे सवाल पूछता था, आलोचना करता था, आड़े हाथों लेता था, जो कि एक अच्छी बात थी.

नहीं - नहीं. मैं कह रहा हूं कि यह सब स्वीकार करें.

एक सेकंड मुझे खत्म करने दीजिए, और जब विपक्ष ने कोई मुद्दा उठाया तो आप लगभग हमेशा सरकार से सवाल पूछने के लिए विपक्ष के साथ एकजुट हो जाते. आज हमारे पास इतना भी नहीं है. हमारे पास निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया का बुनियादी समर्थन भी नहीं है... आप टीवी चालू करें. तो पूरा भाजपा का प्रोपेगेंडा लगता है.

ठीक है, मैं कहता हूं कि यह ठीक है, लेकिन फिर भी...

अब बताइए, जिस स्थिति में आप हैं, आप जानते हैं कि आप हार गए हैं. आपकी पार्टी में ऐसे नेता हैं, जिन पर सरकार बेरहमी से हमला कर रही है. आपको मीडिया का कोई समर्थन नहीं है. आपके सामने बेहद कठिन परिस्थितियां हैं, जिनमें आप काम कर रहे हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा है कि कांग्रेस जो कर पा रही है, वह कर रही है...

लेकिन अब इस तथ्य का क्या होगा कि अगर, क्या मैं बस एक प्रश्न पूछ सकता हूं?

नहीं.

नहीं? ठीक है तो मुझे और समय चाहिए.

ये दो यात्राएं थीं जो पूरे देश में हुईं, जिनमें लाखों लोग आए. इन तमाम मुश्किलों के बावजूद हमारे नेता मैदान में उतरे. वे जनता के बीच जाने के लिए चार महीने तक बिना रुके 4,000 किलोमीटर तक चले. मुझे लगता है कि यह एक बड़ी उपलब्धि है. और मुझे लगता है कि आप सभी कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी नहीं लड़ रही है, यह बिल्कुल सच नहीं है.

नहीं, मैं संगठन के बारे में बात कर रहा हूं...

वह संगठन है. यह क्या है?

ठीक है यात्राएं, हां. लेकिन मैं इन पिछले 10 वर्षों के बारे में कह रहा हूं, मैं मानता हूं कि ये 10 वर्ष कठिन रहे हैं. लेकिन एक संरचना के निर्माण के संदर्भ में, जब कोई वहां जाता है, तो ऐसा नहीं होता...

तो जब तूफान आता है, तो बहुत बड़ा तूफान आता है. आप अपने घर में हैं. तो क्या आप उसी वक्त अपना घर बनाना शुरू कर देते हैं या फिर कुछ देर इंतजार करेंगे ताकि कम से कम मामला कुछ शांत हो जाए.. आप ऐसा होने तक इंतजार करेंगे और फिर से खड़े होंगे.. हम भी यही कर रहे हैं.

तो क्या आप तूफ़ान में बैठे हैं?

यदि आप चाहते हैं कि हम इस समय कुछ करना शुरू करें… यह कुछ करने का समय नहीं है. यह समय हमारे पास मौजूद हर चीज़ को लेकर लड़ने का है. और जैसे हम लड़ते हैं, वैसे ही हम

बनाएंगे. क्योंकि जब आप लड़ते हैं तो क्या होता है?... जिनके पास लड़ने का माद्दा नहीं है, जो भयभीत हैं, जिनके पास मामले हैं और उन्हें अपना मामला सुलझाना है, वे चले जाते हैं.

मैं आपसे उसके बारे में पूछने जा रहा था.

तो वे चले जाते हैं. तो फिर आपके पास जो बचता है वह आपकी वास्तविक सेना है. आपके पास लड़ने के लिए वास्तविक साहस रखने वाले लोग बचे हैं.

लेकिन आप पलायन को लेकर चिंतित नहीं हैं? इतने सारे नेता. (ज्योतिरादित्य) सिंधिया, गुलाम नबी आजाद, (कपिल) सिब्बल. ये सूची असीमित है.

मैं प्रत्येक व्यक्ति पर नहीं जा रही हूँ.

...मैं कह रहा हूं कि निश्चित रूप से यह भी एक संकेत है कि यह सिर्फ मामले नहीं हैं, कि उन्हें लगता है कि पार्टी की संभावनाएं धूमिल हैं. उन्हें लगता है कि यह, आप जानती हैं नेतृत्व को लेकर...

देखो हम किसके लिए लड़ रहे हैं? हम किस लिए लड़ रहे हैं? क्या हम सत्ता के लिए लड़ रहे हैं? उस स्थिति में कृपया भाजपा के पास जाएं और उनके साथ रहें, क्योंकि वही आपको मिल रहा है… आज यह दो विचारधाराओं की लड़ाई है. भाजपा, आरएसएस और हम. और जिस विचारधारा के लिए हम लड़ रहे हैं, उसी विचारधारा पर हमारा देश बना है. तो यह एक बड़ी लड़ाई है. तो यह कमज़ोरों के लिए नहीं है. यह उन लोगों के लिए नहीं है जो सत्ता की तलाश में हैं. यह लोगों के लिए नहीं है जो बस यह देख रहे हैं कि हे भगवान, अगर मैं यहां हूं तो मैं यह चुनाव जीतने जा रहा हूं. हो सकता है कि मैं वहां जाऊं और इसे जीतूं.

लेकिन आप भी तो जीतना चाहती हैं? यह एक राजनीतिक बात है.

जाहिर है… यह एक वैचारिक लड़ाई है लेकिन जाहिर तौर पर यह उन्हें सत्ता से हटाने के लिए है. क्योंकि जब तक वे सत्ता में हैं, वे हर उस चीज़ को नष्ट कर रहे हैं जिसे कांग्रेस ने बनाया था और जिस पर इस देश का निर्माण हुआ था… कृपया, एक सेकंड के लिए भी यह कहकर गलत अर्थ न निकालें कि सत्ता मायने नहीं रखती. बिलकुल करती है. पर मैं कह रही हूं कि कुछ मामलों में लोग इससे ज़्यादा के लिए प्रेरित होते हैं… ऐसी स्थिति में शायद यही वह समय है जब वे जाने वाले हैं.

...तो आप कह रहे हैं कि यह नेतृत्व का मुद्दा नहीं है. लेकिन आइए यहां अमेठी और रायबरेली में जो हुआ उसका उदाहरण लें...

यह एक घंटे का साक्षात्कार है?

...वो आखिरी मिनट तक का सस्पेंस, जो पहले भी हो चुका है. क्या राहुल आने वाले हैं? क्या राहुल आने वाले हैं...

तो आप कैसे जानते हैं कि यह रणनीतिक नहीं है? आप कैसे जानते हैं कि यह रणनीतिक नहीं था?

मुझे नहीं पता. मैं आपसे पूछ रहा हूं. क्या यह रणनीतिक था?

तो फिर? आप बस मान रहे हैं.

मैं पूछ रहा हूं.

तो आप मान रहे हैं.

ठीक है.

मैं आपको बता रही हूं.

तो क्या यह जानबूझकर किया गया?

जब मैंने उन्हें बताया तो उनसे पूछिये. वह जा रहे हैं, हां.

ये किशोर लाल जी हैं. वह अब अमेठी से आपके उम्मीदवार हैं. लेकिन क्यों नहीं? आपने क्यों नहीं लड़ीं?

क्योंकि हम दोनों चुनाव प्रचार कर रहे हैं. हम पूरे देश में अभियान चला रहे हैं. आप देख सकते हैं कि मैं यहां 15 दिनों से हूं. यहां किसी का होना जरूरी है. ये ऐसे निर्वाचन क्षेत्र नहीं हैं जहां आप रिमोट कंट्रोल से चुनाव लड़ सकें. हमने यहां बहुत मेहनत की है. इन निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों के साथ हमारा यहां पारिवार जैसा रिश्ता है. वे हमसे आस-पास रहने की उम्मीद करते हैं. वे हमसे मिलने की उम्मीद करते हैं. उन्हें हमसे मिलने की उम्मीद है. वे हमसे बात करने की उम्मीद करते हैं… इसलिए यदि हममें से एक लड़ने जा रहा था, तो दूसरे को किसी एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रबंधन करना होगा. अगर हम दोनों लड़ते तो हम दोनों निर्वाचन क्षेत्रों का प्रबंधन कर रहे होते. और हममें से कोई भी देश के बाकी हिस्सों में प्रचार नहीं कर पाता.

नहीं, तो आखिरी मिनट में इसे अपने पास रखने की रणनीतिक बात क्या थी? वहां क्या फायदा हुआ?

मैं आपको अपनी सभी रणनीतियां बताने के लिए बाध्य नहीं हूं.

नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं. लेकिन आप कर सकती हैं. लेकिन आप मुझे एक संकेत दे सकती हैं. लेकिन आपको इसका अफसोस नहीं है?

बिल्कुल नहीं. क्या? अफसोस किस बात का?

...क्या खुद मैदान में उतरने की कमी आपको नहीं खलती?

बिल्कुल नहीं.

ठीक है. क्योंकि बहुत से लोगों का आपके बारे में, आपकी भूमिका के बारे में यही सवाल है... किसी प्रकार का नेतृत्व पद ग्रहण करें.

ऐसा करने के लिए मेरे पास काफी समय है.

लेकिन राहुल के बारे में क्या?

उनके बारे में क्या?

क्या वह प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं? अगर इंडिया (गठबंधन) जीत गया तो?

यह निर्णय इंडिया (गठबंधन) करेगा.

क्या आप एक बहन के रूप में ऐसा चाहती हैं?

एक बहन के तौर पर मैं चाहूंगी कि मेरा भाई एक प्रसन्न इंसान बने.

क्या वह एक प्रधानमंत्री के रूप में खुश होंगे...? 

(सवाल के बीच में ही टोकते हुए) जो कि वह (राहुल) हैं.. एक प्रसन्न इंसान…

तो क्या वह खुश होंगे...

मैं चाहूंगी कि वह शादी कर ले. मैं चाहूंगी कि उसके बच्चे हों. एक बहन के रूप में मैं यही चाहूंगी.

क्या कोई ब्रेकिंग न्यूज़ अपडेट है?

नहीं, काश ऐसा होता.

अनुवाद- शार्दूल कात्यायन

प्रियंका गांधी से इस बातचीत को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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