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बसंत कुमार

दलितों को छात्रवृत्ति: 4 साल में सिर्फ 8 आवेदन, क्यों ‘फेल’ हो रही दिल्ली सरकार की ये योजना?

साल 2019 में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने विदेश जाकर पढ़ाई करने के इच्छुक दलित छात्रों के लिए एक योजना की शुरुआत की थी. ‘फाइनेंशियल असिस्टेंस टू एससी स्टूडेंट्स फॉर परसुइंग हायर स्टडीज एब्रॉड’ नामक इस योजना को शुरू करते हुए सरकार का इरादा हर साल 100 दलित छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध करवाने का था. 

योजना की शुरुआत करते हुए तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने कहा था कि कम आय वाले दलित परिवारों के बच्चों का विदेश में पढ़ने का सपना बस सपना ही रह जाता है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. दिल्ली में ये पहली बार हो रहा है, जब छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद मिलेगी. 

चार सालों में सिर्फ आठ आवदेन आए

न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी पड़ताल में पाया कि योजना की कुछ खामियों के कारण छात्रों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई. 

सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में सामने आया कि वित्त वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 2022-23 तक, यानी पिछले चार सालों में मात्र आठ छात्रों ने इसके लिए आवेदन दिया और मात्र चार लोगों का ही आवेदन मंजूर हुआ.  

आरटीआई के तहत मिली जानकारी के मुताबिक पहले साल (वित्त वर्ष 2019-20 ) में सिर्फ एक छात्र ने अप्लाई किया और उन्हें दो सालों तक पांच-पांच लाख की आर्थिक मदद मिली.

वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार को तीन आवदेन प्राप्त हुए. छंटनी के बाद दो छात्रों को पांच-पांच लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली. अगले साल (वित्त वर्ष 2021-22)  सिर्फ एक आवदेन आया. हालांकि, वो खारिज हो गया. बीते साल जिन दो लोगों को इसके तहत लाभ मिला था, उसमें से एक को इस साल नहीं मिला. ऐसे में केवल एक छात्र को पांच लाख की मदद मिली. वहीं 2022-23 तीन आवेदन आए. छंटनी के बाद सिर्फ एक छात्र को लाभ मिला. 

इस तरह देखें तो कुल मिलाकर आठ छात्रों ने इसके लिए आवदेन किया. जिनमें से चार को ही इस योजना के तहत लाभ मिल पाया. इन आठ छात्रों को सरकार ने 30 लाख रुपए की आर्थिक मदद की है.

किन्हें और कैसे मिलती है ये आर्थिक मदद?

इस योजना के तहत छात्र विदेश में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट, प्योर साइंसेज और एप्लाइड साइंसेज, एग्रीकल्चरल साइंसेज और मेडिसिन, इंटरनेशनल कॉमर्स, एकाउंटिंग एंड फाइनेंस, ह्यूमैनिटीज एवं सोशल साइंस में मास्टर डिग्री और पीएचडी करने वालों को आर्थिक मदद मिलती है.

हालांकि, योजना के लिए वही छात्र आवेदन कर सकते हैं, जिनका दाखिला हो चुका हो. साथ ही जिनके परिवार की सभी स्रोतों से सालाना आय आठ लाख रुपए से कम हो.  इसके अलावा भी कई शर्तें इस योजना का लाभ लेने के लिए लागू की गई. इनके बारे में जानने के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं.  

कितना बजट मिला? 

आरटीआई के तहत हमें ये भी पता चला कि दिल्ली सरकार ने इसका बजट कम कर दिया है. दिल्ली सरकार के एससी एसटी/ओबीसी कल्याण विभाग के मुताबिक, योजना के शुरुआती वर्ष यानी 2019-20 में इसके लिए एक करोड़ का बजट आवंटित हुआ.  अगले साल यह 50 लाख हुआ. वहीं 2021-22 में यह राशि बढ़कर एक करोड़ 20 लाख हो गई लेकिन पिछले साल (2022-23 में) यह घटकर 25 लाख पर पहुंच गया. 

आरटीआई के तहत प्राप्त दिल्ली सरकार का जवाब

क्यों ‘फेल’ हुई ये महत्वाकांक्षी योजना?

मालूम हो कि योजना के तहत दिल्ली सरकार 5 लाख रुपये सालाना की आर्थिक सहायता देती है. हमारी पड़ताल में सामने आया कि इसके लिए मिलने वाली ये आर्थिक मदद योजना की सफलता में आड़े आ रही है.  

अगस्त 2023 में पार्लियामेंट्री कमेटी ने भी दिल्ली सरकार को इस बारे में चेताया था. साथ ही सुझाव दिया था कि पांच लाख की राशि को बढ़ाकर 20 लाख कर दिया जाए. साथ ही यह भी कहा गया था कि योजना के तहत मिलने वाली राशि की अवधि को भी बढ़ाकर पांच सालों तक कर दिया जाए. अभी सरकार इस योजना के तहत मास्टर्स में दो साल और पीएचडी के लिए चार साल तक ही आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाती है. 

कमेटी ने यह भी सुझाया था कि इसमें दलितों के अलावा बाकी तबकों को भी योजना के लाभ में शामिल किया जाए. 

दरअसल, जब इस योजना की शुरुआत हुई तो पहले से ही एक ऐसी योजना चल रही थी. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत संचालित 'राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति' के तहत छात्रों को हर साल 15,400 अमेरिकी डॉलर या लगभग 10 लाख रुपये दिए जाते हैं. जबकि यहां छात्रों को मात्र 5 लाख रुपये मिल रहे थे.  

दिल्ली सरकार ने इस योजना का जोर-शोर से विज्ञापन किया. हर साल बजट भी जारी हुआ लेकिन छात्रों ने इसके लिए आवेदन नहीं दिया.  

योजना की एक और शर्त भी इसकी सफलता में आड़े आई. इसके तहत, अभ्यर्थी को शपथ पत्र देना होगा कि जिस पाठ्यक्रम के लिए वो यह आर्थिक मदद ले रहा है उसके लिए किसी अन्य विश्वविद्यालय, कॉलेज, सरकार या अन्य संगठन से वित्तीय सहायता ना ली हो.

दिल्ली सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र पाल गौतम की तस्वीर

‘गौतम बोले- मेरी भी गलती है’

तत्कालीन सामाजिक कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम इस योजना को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘इसमें मेरी भी गलती है. मैंने अधिकारियों पर भरोसा कर ये योजना बनवाई थी. उन्होंने विदेशों में पढ़ाई के लिए कितनी फीस लगती है. उसको लेकर कोई तहकीकात नहीं की. इतने पैसों (पांच लाख सालाना) में कोई विदेश पढ़ने जा ही नहीं सकता है. पिछले दो-तीन सालों में तो विदेशों में पढ़ाई की फीस ज़्यादा ही बढ़ गई है. इस योजना को लाने के पीछे मेरा मकसद था कि कम से कम छात्रों की फीस इससे निकल जाए.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘योजना आने के बाद मैंने देखा कि छात्र इसके लिए आवेदन नहीं कर रहे हैं. कारण पता लगाया तो मालूम हुआ कि इसमें मिलने वाले पैसे बेहद कम हैं.  मैंने सरकार से कहा कि इसकी राशि बढ़ाकर कम से कम उतनी की जाए कि छात्रों की फीस पूरी हो जाए. सरकार कह भी रही थी कि करेंगे लेकिन ऐसा आज तक नहीं हुआ.’’

मालूम हो कि इस वक्त ब्रिटेन और यूरोप में कम से कम आठ लाख रुपये तो वहीं अमेरिका में 30-40 लाख रुपये तक फीस है. यह फीस कॉलेज या यूनिवर्सिटी के नाम के हिसाब से और भी बढ़ जाती है. जबकि दिल्ली सरकार की योजना में मास्टर डिग्री के लिए 10 लाख (दो साल में) तो पीएचडी के लिए 20 लाख (चार सालों) रुपए देने का ही प्रावधान है.

अक्टूबर 2022 में विवादों के बाद राजेंद्र पाल गौतम को सामाजिक कल्याण मंत्री पद से हटा दिया गया. उनकी जगह राज कुमार आनंद को मंत्री बनाया गया. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस योजना के बारे जानने के लिए आनंद से संपर्क किया. हालांकि, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. ऐसे में हमने उन्हें अपने सवाल भेज दिए हैं. अगर उनका कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा. 

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