Get all your news in one place.
100’s of premium titles.
One app.
Start reading
Newslaundry
Newslaundry
प्रतीक गोयल

‘मोदी जैसा रवैया और आरएसएस के चहेते': मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव

नौ साल पहले सिंहस्थ मेला सैटेलाइट टाउन के लिए लगभग 820 एकड़ जमीन आवंटित होने से उज्जैन की तीर्थ नगरी मास्टर प्लान को काफी बढ़ावा मिला था, लेकिन इस साल की शुरुआत में विवाद तब और बढ़ गया जब खेती की इस जमीन का बड़ा हिस्सा एक निजी आवासीय कॉलोनी में तब्दील कर दिया गया. इस कॉलोनी का ज्यादातर हिस्सा का मालिकाना हक भाजपा के डॉ. मोहन यादव के पास था, जो अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

उज्जैन दक्षिण से तीन बार के विधायक मोहन यादव के जमीन विवाद में शामिल होने को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों के कार्यकर्ताओं में असंतोष है. इस जमीन विवाद को लेकर मोहन यादव और भाजपा विधायक पारस जैन के बीच कथित तौर पर तीखी बहस भी हुई थी. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस विवाद में मध्यथता की थी और जमीन को फिर से खेती की जमीन में तब्दील कर दिया गया था.

लेकिन मध्य प्रदेश के 58 साल के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री से जुड़ा ये कोई अकेला विवाद नहीं है. मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद मिलने के बाद से उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं, जिनमें से एक वीडियो में उन्हें एक गांव में लोगों को गालियां देते हुए देखा जा सकता है.

विवादों के बावजूद आरएसएस के कट्टर कार्यकर्ता के मध्य प्रदेश के शीर्ष पद तक पहुंचने की क्या वजह रही?

न्यूज़लॉन्ड्री ने भोपाल के मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में शपथ लेने वाले नए मुख्यमंत्री के राजनीतिक सफर पर एक नज़र डाली.

आरएसएस के शीर्ष नेताओं का 'चहेता', भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए 'झटका' 

उज्जैन में आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि मोहन यादव "सुरेश सोनी के चहेते" हैं. सुरेश सोनी आरएसएस के शीर्ष नेताओं में से एक हैं.

मोहन यादव के व्यक्तिगत और राजनीतिक उतार-चढ़ाव के गवाह रहे संघ कार्यकर्ता ने कहा, "मोहन बहुत कम उम्र से आरएसएस से जुड़े रहे हैं और संघ के सक्रिय सदस्य हैं."

उन्होंने कहा, "सुरेश सोनी और मोहन यादव इतने करीबी हैं कि 2013 में सुरेश खुद नागपुर और भोपाल गए ताकि मोहन यादव को टिकट मिल सके. उन्होंने वह चुनाव जीता और फिर 2018 में फिर से जीत हासिल की, भले ही भाजपा चुनाव हार गई."

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के चेहरे के रूप में नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले पहले आरएसएस नेताओं में से सुरेश सोनी एक थे. साल 2014 में व्यापम घोटाले से जुड़े होने से पहले सुरेश सोनी आरएसएस नेता प्रमुख मोहन भागवत के बाद संगठन में दूसरे नंबर के नेता थे. सुरेश सोनी को आरएसएस में लालकृष्ण आडवाणी के प्रभाव को कम करने और मोदी के साथ उनकी नजदीकी के लिए जाना जाता है.   

2020 में मध्य प्रदेश में 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार गिरने के बाद भाजपा सरकार में मोहन यादव को उच्च शिक्षा मंत्री बनाया गया.

लेकिन इन सब के बावजूद संघ के कार्यकर्ता ने कहा कि "किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि मोहन यादव मुख्यमंत्री बनेंगे." 

उन्होंने कहा, "उज्जैन के लोग भी हैरान हैं. उज्जैन के बाहर के लोग उन्हें जानते तक नहीं हैं. उन्हें सीएम बनाए जाने पर प्रदेश में आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी हैरानी हुई है." 

हालांकि, आरएसएस के एक दूसरे कार्यकर्ता ने कहा कि शुजालपुर के विधायक इंदर सिंह परमार और मोहन यादव का नाम संगठन स्तर पर चल रहा था, लेकिन मोहन यादव से ज्यादा सभ्य और विनम्र होने के बावजूद इंदर सिंह परमार को नहीं चुना गया.

आरएसएस के कार्यकर्ता ने कहा कि अगर उन्हें वोट देना होता तो वह मोहन यादव को वोट नहीं देते.

उन्होंने कहा, "अगर आप मुझसे मुख्यमंत्री की पसंद के बारे में पूछते तो मैं भी उन्हें वोट नहीं देता. एमपी भाजपा के शीर्ष नेताओं का गृह राज्य है. यह पार्टी का गढ़ है और एक कमजोर नेतृत्व यहां संगठन को कमजोर कर सकता है."

आरएसएस कार्यकर्ता ने दावा किया कि प्रह्लाद पटेल भी सीएम पद की रेस में थे लेकिन आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के मुट्ठी भर लोगों ने मोहन यादव को सीएम बनाने का फैसला किया. उन्होंने कहा, "बीजेपी इसलिए जीती क्योंकि आरएसएस के कार्यकर्ता घर-घर जा रहे थे. हम लोकसभा चुनाव से पहले कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे."

भोपाल में मध्य प्रदेश भाजपा के एक नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "यह (फैसला) पार्टी में हम में से ज्यादातर के लिए बहुत चौंकाने वाला था. शिवराज जी में सैकड़ों दोष हो सकते हैं, लेकिन वह विनम्र और जमीन से जुड़े हुए हैं."

उन्होंने कहा कि प्रह्लाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय जैसे कई ‘बड़े नेताओं’ को विधानसभा चुनाव में उतारा गया था. 

भाजपा नेता ने कहा, "अगर केंद्रीय नेतृत्व इसी तरह चलता रहा तो एक समय आएगा जब भाजपा के पास राज्य स्तर पर कोई सक्षम नेता नहीं होगा. इतना महत्वपूर्ण पद किसी सभ्य, किसी राजनीतिक सद्भावना रखने वाले व्यक्ति को दिया जाना चाहिए."

उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि एक मुख्यमंत्री को 'गरिमापूर्ण' होना चाहिए.

विवादों से पुराना राब्ता

जैसे ही मोहन यादव का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया, उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने लगे. एक वीडियो में मोहन यादव एक गांव में लोगों को गालियां देते दिख रहे हैं. वहीं एक दूसरे वीडियो में उन्हें कांग्रेस के चेतन यादव के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी करते हुए देखा जा सकता है.

नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "सीएम को सार्वजनिक तौर से लोगों को गाली देते हुए नहीं देखा जाना चाहिए. उन्हें सीएम बनाया जाना निश्चित रूप से संगठन को प्रभावित करने वाला फैसला है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए हम इस तरह के मतभेदों को दूर करने की कोशिश करेंगे."

आरएसएस के एक राज्य स्तरीय कार्यकर्ता ने मोहन यादव को 'अति महत्वाकांक्षी' बताया है. उन्होंने कहा कि "मोहन यादव का रवैया बिल्कुल मोदी जी की तरह है."

उज्जैन में मोहन यादव के साथ बिताए समय के बारे में उन्होंने कहा, "मोहन यादव हमेशा सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं और दूसरों को श्रेय नहीं लेने देना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि श्रेय केवल उन्हें दिया जाए. उन्होंने अब तक उज्जैन में किसी भी स्थानीय नेता को आगे नहीं बढ़ने दिया है. वह एक अनुभवी राजनेता हैं और हालातों से कैसे निपटना है यह जानते हैं."

एबीवीपी कार्यकर्ता के तौर पर मामूली शुरुआत

मोहन यादव की राजनीतिक यात्रा 1980 के दशक की शुरुआत में एबीवीपी कार्यकर्ता के तौर पर शुरू हुई थी. वह 1982 में माधव साइंस कॉलेज के सचिव बने और दो साल बाद इसके अध्यक्ष भी बने.

साल 1984 में उन्हें उज्जैन एबीवीपी के नगर मंत्री या नगर मंत्री भी नियुक्त किया गया था. दो साल बाद उन्होंने छात्र निकाय के संभागीय प्रमुख के तौर पर कार्यभार संभाला था. साल 1988 में वह एबीवीपी की मध्य प्रदेश इकाई और संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पदाधिकारी बने.

आरएसएस में मोहन यादव साल 1991 से 1996 तक जिला स्तर के पदों पर रहे. इसके बाद वह आरएसएस की शाखा या इकाई के प्रमुख बने और फिर संगठन के उज्जैन शहर के प्रमुख बन गए. साल 1997 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा की राज्य स्तरीय समिति के सदस्य बने. साल 2004 में उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने. इसके साथ ही उनकी स्थानीय राजनीतिक यात्रा शुरू हो गई. वह 2010 तक इस पद पर बने रहे. 

वह 2011 से 2013 तक भोपाल के पर्यटन विकास निगम के शीर्ष पद पर भी रहे. इसके बाद उन्होंने पहली बार उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. 

मोहन यादव के स्कूल के दिनों के वक्त उनके पिता पूनम चंद यादव उज्जैन के मालीपुरा इलाके में आलू-वड़ा और पकौड़े बेचा करते थे, लेकिन मोहन यादव और दो भाई नंदलाल यादव और नारायण यादव समय के साथ समृद्ध कारोबारी बन गए. मोहन यादव का परिवार प्रॉपर्टी और कृषि क्षेत्रों में कोरोबार करता है. इसके अलावा वे स्टोन क्रशर के कारोबार में भी हैं. 

मोहन यादव के हालिया हलफनामे के मुताबिक उनके पास 42.04 करोड़ रुपये की संपत्ति है. 

'ओबीसी मतदाताओं को साधने की रणनीति'

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजेश बादल, मोहन यादव को मुख्यमंत्री के तौर पर चुने जाने को "2024 के आम चुनावों के लिए भाजपा की रणनीति का हिस्सा" बताते हैं."

वह कहते हैं, "यह लोकसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ के लिए किया गया है. मध्य प्रदेश में 52 फीसदी मतदाता ओबीसी समुदाय से है. ऐसे में भाजपा ओबीसी मतदाताओं की अनदेखी नहीं कर सकती है." 

राजेश बताते हैं कि भाजपा ओबीसी समुदाय को 'शांत' करने की कोशिश कर रही है, जो कथित तौर पर शिवराज सिंह चौहान की जगह किसी दूसरे ओबीसी चेहरे को लाने की मांग कर रहे थे.

राजेश बादल ने दावा किया कि इस बात की काफी संभावना है कि लोकसभा चुनाव के बाद मोहन यादव को हटा दिया जाएगा. 

उन्होंने कहा, "उनका भविष्य 2024 के चुनावों के परिणामों पर निर्भर है. मोहन यादव को अब विवादों को दूर रहने की दरकार है." 

अनुवादक-चंदन सिंह राजपूत

Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.

Sign up to read this article
Read news from 100’s of titles, curated specifically for you.
Already a member? Sign in here
Related Stories
Top stories on inkl right now
One subscription that gives you access to news from hundreds of sites
Already a member? Sign in here
Our Picks
Fourteen days free
Download the app
One app. One membership.
100+ trusted global sources.