साल की शुरुआत में आंध्र प्रदेश में दर्ज 70 एफआईआर से लेकर चुनावों के मुहाने पर खड़ी दिल्ली में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाने के आरोप. ऐसा लगता है कि पिछले कुछ महीनों में ईवीएम की जगह मतदाता सूची विपक्ष की चिंता का मुख्य विषय बन गई हैं.
लेकिन ये केवल 2024 की समस्या नहीं है. पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका का निपटारा चुनाव आयोग द्वारा ये बयान दिए जाने के बाद किया था कि मतदाताओं को पूर्व सूचना दिए बिना नाम नहीं हटाए जा सकते. यह बात मतदाता सूची पर चुनाव आयोग की नियमावली के अनुरूप थी.
लेकिन क्या मतदाता सूची में अवैध रूप से संशोधन के दावे सही हैं? इसकी जांच करने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने तीन निर्वाचन क्षेत्रों में सर्वेक्षण करने का फैसला किया. इन क्षेत्रों में पार्टियों के बीच जीत का अंतर बहुत कम से लेकर बहुत ज्यादा तक था. हमने ऐसे बूथों को चुना जहां बड़ी संख्या में नाम सूची से हटाए गए थे.
फर्रुखाबाद, मेरठ और चांदनी चौक के सर्वेक्षण के बाद हमने जो पाया, उसके कुछ मुख्य अंश इस प्रकार हैं:
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उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 32 हजार से ज्यादा मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए, जहां कि जीत का अंतर मात्र 2,678 मतों का था. हमारे छोटे से सर्वे सैंपल में सामने आया कि उच्च जाति के लोगों की बहुलता वाले इलाकों के मुकाबले मुस्लिम, यादव, शाक्य और दलित मतदाताओं वाले क्षेत्रों में ज्यादा नाम हटाए गए.
मेरठ में बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता मिले. यहां दो बूथों के सर्वे में सामने आया कि मौजूदा सूची में 27 फीसदी मतदाता फर्जी हैं. यहां चुनाव से पहले मतदाता सूची में करीब 1 लाख मतदाताओं को जोड़ा गया. गौरतलब है कि ये वही लोकसभा सीट है, जहां से भाजपा के विधायक को मात्र 10 हजार वोट से जीत मिली है. सर्वे के दौरान मतदाता सूची में नाम जोड़े जाने और हटाए जाने को लेकर और भी कई बातें सामने आई.
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चांदनी चौक, जहां के मॉडल टाउन में पंजाबी और अगड़ी जाति के मतदाताओं वाले इलाकों के मुकाबले मुस्लिम और पिछड़े मतदाताओं वाले इलाकों की तुलना में बहुत कम नाम हटाए गए. मतदाता सूची से सबसे ज्यादा नाम हटाए जाने वाले तीन बूथों में से एक कांग्रेस उम्मीदवार के मोहल्ले में था.
हमारे सर्वेक्षण में मोटे तौर पर ये बात सामने आई कि ऐसे साम्प्रदायिक और जाति समूहों के मतदाताओं की घनी आबादी वाले इलाके, जिनके भाजपा को वोट देने की संभावना कम थी, वहां आनुपातिक रूप से ज्यादा नाम हटाए गए.
मतदाता सूची में किए गए कई संशोधन चुनाव आयोग के मैनुअल का उल्लंघन करते नजर आते हैं, जिसके अनुसार, मतदाता सूची से 2 प्रतिशत से अधिक नाम हटाए जाने की स्थिति में निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत सत्यापन अनिवार्य है. तब भी जब मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए के तहत निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी को मृत व्यक्तियों या स्वप्रेरणा से अपना निवास स्थान बदलने वाले लोगों के नाम हटाने का अधिकार है.
दिल्ली के चांदनी चौक में सूची से हटाए गए मतदाताओं के एक बड़े हिस्से ने दावा किया कि उन्हें नाम हटाए जाने के बारे में कोई नोटिस भी नहीं भेजा गया..
फर्रुखाबाद में भी सूची से हटाए गए लोगों में से करीब 15 प्रतिशत से ज्यादा ने यही आरोप लगाया. यदि यही आंकड़ा हम पूरी लोकसभा सीट पर लागू करें, तो गलत तरीके से हटाए गए नाम भाजपा की जीत के अंतर से लगभग दोगुने होंगे.
मेरठ में हमें मतदाता सूची को लेकर अजीब से रुझान देखने को मिले. जैसे कि यहां एक बूथ पर साल 2017 में मात्र 1.6 प्रतिशत मतदान हुआ. लेकिन अगली बार साल 2022 के चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़कर 43 फीसदी तक चला गया. गौरतलब है कि यह उन बूथों में शामिल हैं, जहां काफी संख्या में फर्जी मतदाता मिले.
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने चुनाव आयोग के साथ असंगत रूप से हटाए गए नामों का डाटा साझा किया, तो चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, "हम मतदाता सूची में जाति या धर्म के संबंध में कोई डाटा नहीं रखते हैं. हमारे द्वारा किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में किस धर्म या जाति के लोग अधिक हैं, इस आधार पर कोई डाटा नहीं रखा जा रहा है. हम केवल अनुसूचित जाति/जनजाति के निर्वाचन क्षेत्रों को नामित करते हैं."
नियम क्या कहते हैं?
मतदाता सूचियों का अद्यतनीकरण यानि अपडेशन एक सतत प्रक्रिया है, जिसके लिए चुनाव निकाय के पास विस्तृत दिशा-निर्देश हैं.
आमतौर पर आयोग अगस्त में संशोधन प्रक्रिया शुरू करता है और जनवरी में अंतिम सूची प्रकाशित करता है. पहले महीने में बीएलओ घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करता है. इसके बाद मतदाता सूची का पहला मसौदा तैयार करने, विसंगतियों को दूर करने, बूथों को फिर से व्यवस्थित करने आदि में एक और महीना बिताता है. पहला मसौदा आमतौर पर अक्टूबर के अंत में प्रकाशित होता है, उसके बाद एक विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (स्पेशन समरी रिवीजन) होता है. इस अवधि के दौरान, आयोग जनता और राजनीतिक दलों को आपत्तियां उठाने और जागरूकता अभियान चलाने के लिए 30 से 45 दिन का समय देता है. जिला प्रशासन समानांतर रूप से सभी दावों की जांच करता है, और दिसंबर के अंत तक या घोषित समय सीमा के अनुसार उन्हें निपटाया जाता है. इसके बाद जनवरी में मतदाता सूची प्रकाशित कर दी जाती है.
हालांकि, एक आम चुनाव या राज्य के विधानसभा चुनाव वाले साल में इन मतदाता सूचियों को और संशोधित किया जाता है, जिसमें चुनाव उम्मीदवारों की नामांकन की अंतिम तिथि कट-ऑफ तिथि होती है. अंतिम सूची उसके बाद प्रकाशित किए जाते हैं.
मतदाता सूची की तैयारी, अद्यतनीकरण और संशोधन से संबंधित सभी कामों के लिए राज्य सरकार, और खास तौर से जिले के अधिकारियों की चुनावी तंत्र में बहुत बड़ी भूमिका होती है, जिसमें एक उप-मंडल अधिकारी-रैंक का नौकरशाह, निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) के रूप में अद्यतनीकरण प्रक्रिया की जिम्मेदारी संभालता है, जिसे एईआरओ, पर्यवेक्षकों और बूथ स्तर के अधिकारियों की टीमों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है. फील्ड में सत्यापन बीएलओ द्वारा किया जाता है, जो आमतौर पर निचले स्तर के सरकारी या अर्ध-सरकारी कर्मचारी होते हैं, जैसे कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, पंचायत सचिव या प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक.
सभी नामों को फॉर्म 7 के जरिए हटाया जाता है, जिनमें वे नाम भी शामिल हैं, जो चुनावी मशीनरी द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर हटाए जाते हैं, विशेषकर तब जब नाम हटाने का प्रतिशत 2 से अधिक हो. यदि किसी बूथ पर नाम हटाने की दर 2 प्रतिशत से अधिक है तो चुनाव आयोग ईआरओ को व्यक्तिगत रूप से मामले की पुष्टि करने का निर्देश देता है.
आम तौर पर मतदाता का नाम काटने के तीन तरह के मामले होते हैं- यदि मतदाता की मृत्यु हो गई है, उसने अपना पता बदल लिया है या सूची में डुप्लीकेट एंट्री है.
यदि किसी मतदाता की मौत हो गई है तो बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) जमीन पर सत्यापन करता है या उसका मृत्यु प्रमाण पत्र देखता है. पता बदलने के मामले में ईआरओ को मतदाता के निवास पर एक नोटिस भेजना होता है, जिसमें उसे जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है. यदि डाक विभाग यह कहते हुए नोटिस लौटाता है कि व्यक्ति दिए गए पते पर नहीं मिला, या अगर मतदाता निर्धारित समय के भीतर जवाब नहीं देता है, तो ईआरओ फील्ड सत्यापन के लिए बीएलओ को भेजने के बाद ही मतदाता को सूची से हटा सकता है. डुप्लीकेट एंट्री के मामले में बीएलओ द्वारा फील्ड सत्यापन की आवश्यकता होती है.
और यदि किसी बूथ पर विलोपन यानी नाम काटे जाने की दर 2 प्रतिशत से अधिक है, तो चुनाव आयोग ईआरओ को व्यक्तिगत रूप से विलोपन के सभी मामलों को सत्यापित करने का आदेश देता है.
सभी आवेदनों को संसाधित (प्रोसेस) करने के दौरान जांच (क्रॉस-चेक) करने के लिए एक प्रणाली मौजूद है. बीएलओ द्वारा किए गए काम का निरीक्षण पर्यवेक्षक करते हैं, उनके काम की समीक्षा एईआरओ द्वारा की जाती है, और इस ये समीक्षा का सिलसिला चलता है. अंतिम फैसला ईआरओ लेते हैं. और चुनावी साल में, चुनाव आयोग को स्वः प्रेरणा (सुओ-मोटो) से नाम हटाए जाने से बचना होता है.
भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा बताते हैं कि इन संशोधनों के दौरान, आयोग आमतौर पर विलोपन को लेकर काफी संरक्षणीय रुख रखता है, क्योंकि भले ही मतदाता ने अपना घर बदल लिया हो, पर इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य ये है कि कोई भी मतदाता वोट देने के अधिकार से वंचित न हो.
भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को लगता है कि “मतदाता सूची में हेरफेर की गुंजाइश हमेशा से रही है और चुनाव आयोग इसके बारे में जानता है. मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि मतदाता सूची चुनाव आयोग का कमजोर पक्ष है. यही कारण है कि हर साल करोड़ों रुपये खर्च करके अखबारों में विज्ञापन दिया जाता है कि कृपया अपनी मतदाता सूची अवश्य देखें. क्योंकि अगर आपको अपनी मतदाता सूची में कोई गड़बड़ी या त्रुटि मिलती है तो बहुत देर होने से पहले उसे ठीक किया जा सकता है. लेकिन 99 प्रतिशत लोग इसकी जांच नहीं करते हैं.”
कार्यप्रणाली
हमने 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत के तीन अलग-अलग अंतरों के आधार पर तीन निर्वाचन क्षेत्रों को चुना.
पहला, जहां पार्टी की जीत का अंतर वोट शेयर के 0.5 प्रतिशत से कम था. ऐसी 19 लोकसभा सीटें थीं, जिनमें से आठ पर भाजपा जीती. हमने फर्रुखाबाद को चुना.
दूसरा, जहां जीत का अंतर वोट शेयर के 0.5 से 1 प्रतिशत के बीच था. ऐसे केवल दो निर्वाचन क्षेत्र थे, बालुरघाट और मेरठ, और भाजपा ने दोनों पर जीत हासिल की. हमने दिल्ली के नजदीक मेरठ को चुन लिया.
तीसरा निर्वाचन क्षेत्र ऐसा था, जहां भाजपा ने काफी बड़े वोट शेयर के साथ जीत हासिल की. जो कम से कम तीन प्रतिशत से ज़्यादा था. इस श्रेणी में हमने चांदनी चौक को चुना.
फर्रुखाबाद से भाजपा के मुकेश राजपूत ने 2,768 मतों के मामूली अंतर से जीत हासिल की. मेरठ में, अरुण गोविल ने सपा की सुनीता वर्मा को 10,585 मतों से हराया, और चांदनी चौक सीट पर भाजपा के प्रवीण खंडेलवाल ने 90,000 से ज़्यादा मतों से जीत हासिल की.
इसके बाद हमने इन तीन लोकसभा क्षेत्रों के 5,495 से अधिक मतदान केंद्रों में अंतिम मतदाता सूची की जांच की, और उस विधानसभा क्षेत्र को चुना जहां नाम हटाने की दर सबसे ज़्यादा थी. इसके बाद प्रत्येक विधानसभा में हमने ऐसे बूथ चुने जहां नाम हटाने का प्रतिशत काफी अधिक था. इसके बाद हम इन सभी इलाकों के करीब 4 हजार घरों तक पहुंचे.
चुनाव आयोग के अधिकारी ने इन सभी बूथों पर गलत तरीके से नाम हटाने के आरोपों से इनकार किया. उन्होंने कहा, “हटाए गए सभी नामों के लिए उचित सत्यापन प्रक्रियाओं का पालन किया गया है.”
एस.वाई. कुरैशी ने कहा, “उन इलाकों की जाति और धार्मिक संरचना से पता चलता है कि स्पष्ट रूप से राजनीतिक कारणों से बहुत बड़े पैमाने पर नाम जोड़े और हटाए जा रहे हैं. यह स्वीकार्य नहीं है. यह जिला प्रशासन का काम है, सबसे पहले डीएम, फिर राज्य के सीईओ और खुद चुनाव आयोग को इस ढिलाई को दूर करना चाहिए.”
2 प्रतिशत से ज़्यादा नाम कटने की दर वाले बूथों पर व्यक्तिगत सत्यापन की कमी में जिला प्रशासन की भूमिका पर अशोक लवासा ने कहा, "चुनाव आयोग पूरे राज्य में जनसंख्या के हिसाब से कितने वोट जोड़े गए और कितने काटे गए, इस पर नज़र रखता है. लेकिन यह बूथ-वार विश्लेषण नहीं करता. यह सारा विश्लेषण ईआरओ पर निर्भर करता है. इसलिए एक संभावना यह है कि आयोग अपनी रिपोर्टिंग में ऐसे बूथों के लिए कॉलम बनाए, जहां विलोपन की दर असामान्य रूप से ज़्यादा रही है."
बूथों पर विपक्ष अनुपस्थित?
चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को भी मतदाता सूची पर नजर रखने के लिए प्रोत्साहित करता है. उन्हें बूथ स्तर पर अपने एजेंट नियुक्त करने की सुविधा होती है, जो मतदाताओं को जोड़ने या हटाने के लिए फॉर्म जमा कर सकते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा प्राप्त बूथ स्तर के एजेंटों के डाटा से पता चलता है कि भाजपा एकमात्र राजनीतिक दल है, जिसके एजेंट सभी निर्वाचन क्षेत्रों में निरंतर रूप से मौजूद रहे हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हाल ही में कहा भी था कि अगर भाजपा को चुनौती देनी है तो लड़ाई बूथ स्तर पर होनी चाहिए.
उदाहरण के लिए, चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र के 129 बूथों में से 89 पर भाजपा के एजेंट हैं, जबकि आप और कांग्रेस के एजेंट की कोई जानकारी नहीं. मेरठ जिले में 2,758 बूथ हैं. भाजपा के पास उनमें से 1,271 पर एजेंट हैं, जबकि सपा, कांग्रेस और बसपा के एजेंटों के यहां होने की कोई जानकारी नहीं मिलती. फर्रुखाबाद का अलीगंज एकमात्र विधानसभा क्षेत्र है, जहां विपक्षी दलों की स्थिति कुछ बेहतर है. 395 बूथों में सपा के पास सभी पर एजेंट हैं, जबकि भाजपा के पास 360 पर, बसपा के पास 45 पर और कांग्रेस के पास सिर्फ 35 बूथों पर एजेंट हैं.
जब हमने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या वह इस बात पर गौर करता है कि कुछ राजनीतिक दल अपने एजेंट क्यों नियुक्त नहीं कर रहे हैं, तो चुनाव आयोग के अधिकारी ने कहा, "हमने यह सुनिश्चित करने के लिए तंत्र बनाए हैं कि पूरी प्रक्रिया में सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी हो. हम राजनीतिक दलों से मतदान के दिन भी अपने एजेंट नियुक्त करने के लिए कहते हैं. लेकिन अगर कोई पार्टी ऐसा नहीं करती है तो हम उनसे यह नहीं पूछ सकते कि वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं."
सभी लोकसभाओं के विभिन्न अधिकारियों ने बताया कि भाजपा चुनावी और गैर-चुनावी, दोनों तरह के सालों में मतदाताओं के नाम हटाने पर सक्रिय रूप से आपत्ति जताती है.
चांदनी चौक विधानसभा में एईआरओ एसएन मीणा ने दावा किया, "2024 के लोकसभा चुनावों तक, कांग्रेस और आप के पास पूरी विधानसभा के लिए एक भी प्रतिनिधि नहीं था. केवल भाजपा के एजेंट ही थे, जो हर हफ्ते हमसे मिलने आते थे."
मेरठ में सहायक जिला चुनाव अधिकारी वेद पाल सिंह ने हमें बताया, "हर साल हम सभी दलों के जिला अध्यक्षों से अपने बूथ लेवल एजेंट नियुक्त करने के लिए कहते हैं. लेकिन केवल भाजपा ही इसे गंभीरता से लेती है. इसलिए उनके पास अपने मतदाताओं को बढ़ाने की अधिक गुंजाइश है."
अलीगंज में, जहां भाजपा और सपा के बूथ प्रतिनिधियों की संख्या बराबर है, ईआरओ जगमोहन गुप्ता ने कहा, “इसलिए दोनों पार्टियां हर बूथ पर कड़ी टक्कर दे रही हैं. सपा अपनी चिंताओं को उजागर करने में बहुत सक्रिय है.”
अलीगंज में सपा के बूथ प्रमुख सुभाष शाक्य ने हमें बताया, “2022 के यूपी विधानसभा चुनावों के बाद, जब हमने देखा कि हमारे मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं, तो हमने निश्चित रूप से खुद में सुधार किया और यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय हो गए कि ऐसा दोबारा न हो.”
कांग्रेस सांसद और इसके राष्ट्रीय वार रूम के अध्यक्ष शशिकांत सेंथिल ने कहा, “कानून का मकसद ही उचित जांच करना है. चुनाव आयोग का यह कहना गलत है कि बूथ स्तर पर आपत्तियां उठाना राजनीतिक दलों का काम है. हां, उनकी भी भूमिका है, लेकिन एक वरिष्ठ स्तर के प्रभारी अधिकारी को ही उचित जांच करनी होती है. उन्हें बस घर जाकर सत्यापन करना होता है, लेकिन वे बिना उचित जांच के थोक में नाम हटा रहे हैं.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने आप की राजनीतिक मामलों की समिति की सदस्य और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना से भी कई बार संपर्क किया, लेकिन वे टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थीं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने दिल्ली में चुनाव आयोग के कार्यालय, उत्तर प्रदेश के सीईओ और दिल्ली के सीईओ से संपर्क किया. हमने अपने निष्कर्षों को साझा करने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से मिलने का समय भी मांगा. अगर कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
शोध में सहयोग: लायनल मुजेयी, फातिमा शबीह और सुनील यादव
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इस खोजी श्रृंखला के अगले भाग में: भाजपा विधायक के पत्र के बाद चुनाव अधिकारियों की ‘आधी रात’ बैठक, फर्रुखाबाद में मनमाने तरीके से नाम हटाए गए?
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