दिल्ली के उपराज्यपाल, विनय कुमार सक्सेना ने दिल्ली पुलिस के 23 अधिकारियों को प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) के तहत सोशल मीडिया एवं अन्य मध्यस्थ (इंटरमीडियरी) प्लेटफॉर्म से “अवैध सामग्री” हटाने के लिए “नोटिस जारी करने विशेष अधिकार” दिए हैं.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, इन अधिकारों के कानूनी पहलू पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं कि कौन नोटिस जारी कर सकता है.
गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में प्रख्यात कार्टूनिस्ट मंजुल और सतीश आचार्य को सोशल मीडिया प्लेटफार्म X द्वारा सूचित किया गया कि मुंबई पुलिस ने आईटी कानूनों के उल्लंघन के तहत प्लेटफॉर्म पर प्रस्तुत उनकी कलाकृति पर आपत्ति जताई है.
आईटी अधिनियम की धारा 79 (3)(b) के तहत, मध्यस्थ प्लेफॉर्म्स जैसे फेसबुक, यूट्यूब, नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम को तीसरे पक्ष की सामग्री प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, अगर कोई “उपयुक्त” सरकार या उसकी एजेंसी द्वारा चिन्हित किए जाने के बावजूद प्लेटफॉर्म्स उसे हटाने में विफल रहते हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 26 दिसंबर को जारी की गई अधिसूचना के तहत, दिल्ली पुलिस को एक नोडल एजेंसी के तौर पर कार्य करने के लिए नामित किया गया है, जिससे जिलों के डीसीपी, खुफिया और रणनीतिक अभियानों, आर्थिक अपराध शाखा, अपराध और अन्य डिवीजनों को "अपने आधिकारिक क्षेत्र में रिपोर्ट किए गए मामलों से संबंधित टेकडाउन नोटिस" जारी करने का विशेषाधिकार दिया गया है.
इसके साथ ही यह अधिकार पुलिस अधिकारियों को "अवैध कार्य करने के लिए उपयोग किए जा रहे मध्यस्थ प्लेटफॉर्म एवं कंप्यूटर संसाधन या उससे जुड़ी सूचना, डाटा या संचार लिंक को सरकार को सूचित करने" की अनुमति देता है.
अक्टूबर 2024 में, न्यूज़लॉन्ड्री ने बताया था कि नीदरलैंड में ग्रोनिंगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों द्वारा लिखित एक अध्ययन में सुझाव दिया गया था कि भाजपा सरकार द्वारा पेश किए गए आईटी नियम एक ऐसे माहौल का निर्माण कर रहे हैं जिसमें ऑडियो-विजुअल बिजनेस के लिए स्व-सेंसरशिप, कानूनी लड़ाई और आर्थिक जोखिम जैसे खतरे शामिल हैं.
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