राजस्थान ऐसा राज्य है, जो अपनी मौजूदा राज्य सरकार को अमूमन दूसरा मौका नहीं देता. क्या लोकसभा के चुनावों में भी जनता वही रवैया अपनाएगी या फिर भाजपा को दोबारा से मौका देगी. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक नागौर को छोड़कर सारी सीटें जीती थीं. हमारी कोशिश इन 25 सीटों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित चार सीटों की खोज खबर लेने की रही.
भरतपुर की सीट इनमें से एक है. भाजपा ने पिछली बार चार आरक्षित सीटों में से दो सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से भरतपुर रिजर्व सीट पर रंजीता कोली और अनुसूचित जनजाति वाली दौसा सीट पर जसकौर मीणा चुनाव लड़ी थीं.
भरतपुर राजस्थान में होेने के बावजूद बृज का इलाका है, जहां की संस्कृति में राजस्थान की कम बृज या मथुरा की झलक ज्यादा दिखती है. वोटरों की संख्या के लिहाज से इस सीट पर जाटों के बाद जाटव दूसरी प्रमुख जाति है. जाटों के लगभग पांच लाख वोट हैं और जाटवों के लगभग 3.50 लाख मतदाता पंजीकृत हैं. चुनाव आयोग की 2019 के मतदाताओं की सूची के अनुसार, भरतपुर में कुल 19 लाख 43 हज़ार 794 मतदाता थे.
आठ विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर भरतपुर लोकसभा सीट आकार लेती है. दिलचस्प है कि राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का यह गृह जिला भी है. भाजपा इस सीट से पिछला दो लोकसभा चुनाव जीतती आ रही है.
अब तक एक गांव में सड़क नहीं पहुंची
भरतपुर से 10-12 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है नगलामाना. वहां पहुंचने के रास्ते में एकदम नई-नई सड़क दिखाई दी.लेकिन जैसे-जैसे गांव नजदीक आता गया पक्की सड़क खत्म होती गई, कच्ची कीचड़ वाला रास्ता शुरू हो गया. आने-जाने वाले वाहन- जिसमें हमारा वाहन भी शामिल था- इसमें धंसते और घिसटते हुए आगे बढ़ते हैं.
नगलामाना गांव की वो सड़क जो आज तक नहीं बनाई गई है. लगभग छह सौ की आबादी वाले नगलामाना गांव में इसी सड़क से पहुंचा जा सकता है. गांव में हमें फ़क़ीर सिंह मिले. वे बताते हैं कि 15 साल से सड़क बनवाने का प्रयास चल रहा है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही.
फकीर कहते हैं, “दिक्कत इतनी बढ़ गई है कि अब गांव के लड़कों के शादी के रिश्ते भी इस सड़क के चलते आने बंद हो गए हैं. कच्चा कीचड़ वाला रास्ता देखकर लोग कहते हैं- ये जंगल है, जिस गांव में रास्ता नहीं वहां जाना ही क्यों!”
दरअसल, मुख्य सड़क को गांव से जोड़ने वाला रास्ता सरकारी नहीं है बल्कि रेवेन्यू विभाग की लीज़ पर दी गई जमीन है. जिस पर किसान खेती करते हैं. वह यह जमीन सरकार को देना नहीं चाहते, जिसकी वजह से ये बन नहीं पा रही है.
सड़क का मसला इतना गंभीर है कि पिछले चुनाव में गांव के लोगों ने वोट तक नहीं दिया था. बड़े- बड़े बैनर बनवाकर गांव में लगाए गए थे- ‘सड़क नहीं तो वोट नहीं’. फिर भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा.
गांव की महिलाओं के लिए ये सड़क और बड़ी समस्या है. उन्हें बाहर से पानी भर कर लाना पड़ता है. घूंघट की आड़ से गुस्से में लाल रेखा कहती हैं, “यहां सारी सरकार वोट मांगने आती हैं, सब वादे कर के जाते हैं लेकिन जब जीत जाते हैं तो हमें ठेंगा दिखाकर चले जाते हैं.”
वोट देते समय वे किस तरह का नेता चुनती हैं, इस सवाल पर रेखा बताती हैं कि जहां हमारे घर के मर्द कहते हैं हम वहीं वोट दे देते हैं. गांव की अन्य महिलाओं ने भी लगभग यही बातें दोहराईं.
…ये वाला हिंदुइज्म हमें पसंद नहीं!
अगले दिन हम भरतपुर से रांफ पहुंचे. यह करीब 50 किलोमीटर दूर है. यहां सबसे अधिक आबादी जाटव समुदाय की है. डीग और कामां के रास्ते हमारी टीम यहां पहुंची.
कामां मुस्लिम बहुत क्षेत्र है. यहां नाश्ते के दौरान एक दुकानदार से हमारी चुनावी गपशप होती है. हालांकि, दोनों ही कैमरे पर बात करने से मना कर देते हैं.
सफ़ेद टीशर्ट में आए दिनेश मिश्रा (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “मैडम यहां कुछ सही नहीं है. नेता वादे करते हैं और चले जाते हैं. रंजीता कोली आई थी. उन्होंने कहा था कि यहां रेलवे लाइन लाएंगी, अब रामस्वरूप कोली (भाजपा के उम्मीदवार) भी वही वादा कर रहे हैं. हमें सरकार का बर्ताव पसंद नहीं.”
इसके बाद वो खुद ही राम मंदिर की बात छेड़ देते हैं. उनके मुताबिक राम मंदिर तो बन गया लेकिन उससे रोज़गार नहीं मिलेगा. ये हिंदुइज्म हमें पसंद नहीं. हम भी हिंदू हैं, भगवान को भी मानते हैं लेकिन राम के नाम पर किसी को मारते नहीं हैं. आज ‘जय श्री राम’ बोलने का मन नहीं करता.
इसी दौरान दुकानदार सड़क के दूसरी तरफ इशारा करते हुए बोला, “वो देखिए, वो है प्राइवेट अस्पताल. उससे थोड़ी दूर सरकारी स्वास्थ्य केंद्र है लेकिन वहां सिर्फ़ खांसी-जुक़ाम की दवा मिलती है. कोई भी टेस्ट कराना हो तो प्राइवेट अस्पताल में जाओ. मंदिर की जगह हमारे लिए अस्पताल ही बना देते तो हमें ज्यादा ख़ुशी होती.”
कामां में हमें पत्रकार सलीम मिले. वह बताते हैं, “पत्रकारिता इसलिए शुरू की क्योंकि उनके समाज की बात रखने वाला उनके आसपास कोई नहीं था.”
सलीम कहते हैं, “यहां ना रोज़गार है, ना शिक्षा और स्वास्थ्य. कोई बीमार पड़ता है तो 50 किलोमीटर दूर भरतपुर जाना पड़ता है. रोज़गार ना होने की वजह से यहां के लोग सबसे ज्यादा साइबर क्राइम करते हैं.”
वह आगे बताते हैं, “पांच साल पहले जब रंजीता कोली आई थी उन्होंने कई वादे किए लेकिन वे पूरे नहीं हुए. इस बार भी विश्वास नहीं किया जा सकता. यहां के लोग ऐसी सरकार चाहते हैं जो सबको एकसमान समझे.”
बोर्ड है पर सड़क नहीं, जातिवाद चरम पर…
भरतपुर से बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार अंजिला जाटव भी रांफ में ही रहती हैं. लेकिन जहां हम मौजूद थे वहां से उनका गांव लगभग 15 किलोमीटर दूर था. उनके घर के रास्ते में हमें ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ का बोर्ड मिला लेकिन सड़क नहीं मिली. जिस चौराहे पर बोर्ड लगा था वहां नाली का गंदा पानी फैला हुआ था.
एक लड़का हमें अंजिला जाटव के घर ले जाता है. यहां सबके घर लगभग एक जैसे हैं. लेकिन गली के आखिर में कोठी जैसा घर होना बताता है कि ये किसी खास आदमी का घर है. अंदर बगान में एक टेंटनुमा ऑफिस और उस पर बसपा का निशान हाथी और अंजिला जाटव की तस्वीर लगी थी.
अंजिला जाटव अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती हैं. चुनाव के सिलसिले में फिलहाल भरतपुर आई हैं. अंजिला भरतपुर और रांफ के लोगों के लिए कुछ करना चाहती हैं. वह कहती हैं कि वो बाक़ी दो उम्मीदवारों-भाजपा के रामस्वरूप कोली और कांग्रेस की संजना जाटव से ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं इसलिए लोगों के मुद्दे आसानी से रख सकती हैं. चुनाव जीतने के बाद वो सबसे पहला काम पानी की उपलब्धता पर करना चाहती हैं.
अंजिला कहती हैं कि उन्होंने कभी जातिवाद नहीं झेला, लेकिन चुनाव में उन्हें अपना सरनेम लगाना पड़ा क्योंकि ऐसी मांग की गई थी.
हिंदुत्व की राजनीति से लेकर, मायावती, इंडिया गठबंधन, विधानसभा में एक सीट आने और आकाश आनंद को कमान मिलने तक, लगभग हर सवाल का वो एक सा ही जवाब देती हैं. हर जवाब में वो शिक्षा और विकास का जिक्र करती हैं.
वह कहती हैं, “मज़हब, मंदिर, मस्जिद आपको बांधने की प्रक्रिया है, इसमें श्रद्धा रख सकते हैं, शांति मिल सकती है लेकिन इससे आपका विकास नहीं हो सकता, विकास के लिए शिक्षा की ज़रूरत है, मंदिर से भिखारी बढ़ेंगे. मंदिर से भला नहीं होगा. मैं जनता से वोट भी मंदिर-मस्जिद पर नहीं शिक्षा पर मांगना चाहती हूं.”
दीगर मुद्दों पर बहन मायावती की चुप्पी को लेकर वो कहती हैं, “वह खामोश नहीं हैं. ऐसा मीडिया दिखा रहा है. वो जरूर किसी न किसी रणनीति में लगी होंगी. लोग भ्रमित हैं, वो मंदिर-मस्जिद पर ध्यान दे रहे हैं. ये अच्छी शिक्षा से सही होगा.”
इंडिया गठबंधन के साथ बहनजी क्यों नहीं गई? इस सवाल के जवाब में अंजिला ने कहा- ये उनका फैसला है, उन्होंने कुछ सोचकर ही लिया होगा.
अंजिला के घर के सामने ही बने मकान चारदीवारी पर एक महिला बैठी थी. हम उनके पहुंचे तो पास खड़ी दो लड़कियां कहती हैं- इनसे कोई बात न कीजिए, इन्हें कुछ नहीं आता.
उस महिला का नाम मीना है. महाराष्ट्र की रहने वाली मीना कहती हैं, “यहां सड़क तो है नहीं, पानी भरा रहता है. स्कूल ठीक है लेकिन महाराष्ट्र से ज्यादा अच्छा नहीं हैं.”
वे कहती हैं, “यहां छुआछूत बहुत है. पानी भरने जाते हैं तो हमारे बरतन दूर रखवाए जाते हैं, हमारे बरतन से छींट भी नहीं लगना चाहिए. लेकिन हमारे महाराष्ट्र में ऐसा नहीं है.”
उनकी बेटी की दोस्त मीनाक्षी कहती हैं, “यहां स्कूल में खाने के टिफ़िन पर हाथ नहीं लगाने देते, कहते हैं कि तुम जाटव हो, दूर रहो. टीचर भी कुछ नहीं करते क्योंकि वो ख़ुद भी ऐसे ही हैं.”
मीनाक्षी का अभी वोटर आईकार्ड नहीं बना है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि यहां आपकी सांसद रंजीता कोली कभी आई हैं. तो वो कहती हैं, “यहां बहुत लोग आते हैं, जाते हैं लेकिन सिर्फ़ वोट मांगने, उसके बाद कोई नहीं आता. हालांकि, उन्हें अंजिला से उम्मीद है.”
इसी दौराम हमारी मुलाकात मनसा राम कन्हैया लाल तांवड़ से होती है. तावड़ सभी सरकारों से नाराज नजर आते हैं. वह कहते हैं, “यहां सड़क, पानी, बिजली, अस्पताल सबकी दिक्कत है. डिलीवरी के समय महिलाओं को भरतपुर या अलवर ले जाना पड़ता है. यहां इतनी समस्याएं हैं लेकिन आजतक किसी एमपी, एमएलए ने ध्यान नहीं दिया.”
रांफ में सबसे अधिक जाटव जाति के लोग रहते हैं. जहां लगभग 150 घर हैं और 600 मतदाता हैं. कुछ दूर जाने पर बृज मोहन मिलते हैं.
बृजमोहन कहते हैं, “हम इस सरकार को फिर से वोट नहीं देंगे. ये जात-पात ज्यादा करती है. ये भाजपा वाले संविधान को खत्म करना चाहते हैं. ऐसी सरकार का क्या करें!.”
उनके अनुसार, “जातिवाद करने वालों में सबसे ज्यादा गुर्जर और माली समुदाय के लोग हैं. उनके साथ उठना बैठना तो है लेकिन खानपान नहीं है. शादी में आना-जाना नहीं है. वे कहते हैं कि तुम नीची जात के हो.”
बृज मोहन सवाल के लहजे में कहते हैं, “राम मंदिर नहीं जाने देते छोटी जाति (दलित) को, क्या राम के कोई मैल लग जायेगा या मूर्ति खंडित हो जायेगी?”
हमने कहा कि राम तो सबके हैं तो बृज मोहन और उनके साथ खड़े व्यक्ति का एक सुर में जवाब आया, “ना… हमारे नहीं हैं राम, हमारे तो बाबा साहेब हैं. हमारे राम तो बाबा साहेब हैं. हमें जो दिया है बाबा साहेब ने दिया.”
गांव के ज्यादातर लोगों का दावा था कि उनके साथ छुआछूत होती है और सरकार की योजनाएं उन तक नहीं पहुंचती हैं.
गांव की दीवारों पर चुनाव का मौसम उतरा हुआ था. पीले रंग से पुती दीवार पर लाल रंग से लिखा था-
‘वोट डालने जाना है,
अपना फर्ज निभाना है.’
थोड़ी दूरी पर फिर ऐसा ही मिलता जुलता इश्तेहार था. रांफ में करीब 30-35 घर ब्राह्मण समुदाय के भी हैं. उन्हीं में से एक गूंद राम बताते हैं कि वो जमींदार हैं. वो भाजपा सरकार के कामकाज से खुश हैं.
रंजीता कोली के कार्यकाल के बारे में वो कहते हैं कि उसने अच्छा काम किया, लेकिन कोई किसी का पेट तो भर नहीं सकता. स्कूल-सड़क का काम उसने कर दिया. आखिर में गूंद राम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करते हैं कि वोट तो किसी को भी दे दो, आएगा तो मोदी ही.
कांग्रेस, बसपा और भाजपा: कौन है टक्कर में
भरतपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की तरफ से संजना जाटव और भाजपा से रामस्वरूप कोली उम्मीदवार हैं. अंजिला और संजना दोनों पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं. जबकि रामस्वरूप कोली 2004 में भाजपा से सांसद रहे हैं. कोली, भाजपा एससी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ-साथ मानव संसाधन विकास समिति के सदस्य सदस्य भी रह चुके हैं. उन्हें रंजीता कोली की जगह टिकट मिला है.
अंजिला और संजना दोनों से हमारी बात हुई, लेकिन रामस्वरूप कोली से कई बार संपर्क करने की कोशिशों के बाद भी भेंट नहीं हो पाई. संजना जाटव 25 साल की एक युवा महिला हैं. संजना अगर जीत जाती हैं तो वो सबसे कम उम्र की सांसद बन जाएंगी. इससे पहले ये रिकॉर्ड सचिन पायलट (26 साल) के नाम है.
संजना का घर भूसावर में है, जो भरतपुर के पास है लेकिन ससुराल कठूमर में है. कठूमर, अलवर में आता है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में वह कठूमर से मात्र 409 वोट से हार गईं. संजना बताती हैं कि एक बार फिर से काउंटिंग (गिनती) के लिए हमने इलेक्शन कमीशन को कहा था. लेकिन वो नहीं करवाया गया.
संजना हाव-भाव से संजना थोड़ा असहज लग रही थी. कारण बताते हुए कहती हैं कि मीडिया से ज्यादा बात करने की आदत नहीं है. उन्होंने एलएलबी तक पढ़ाई की है.
संजना कहती हैं कि अगर उन्हें मौक़ा मिला तो सबसे पहले जाट आरक्षण की बात और उनकी आवाज़ संसद तक लेकर जाएंगी. और भाजपा की तरह हिंदू-मुस्लिम की नहीं बल्कि काम और विकास की राजनीति करेंगी.
दूर दूर तक नहीं ढंग का अस्पताल
भरतपुर में राजकीय आरबीएम चिकित्सालय है. यहां थोड़ा अंदर जाने पर ओपीडी का रास्ता है. जहां हमें एक पोस्टर दिखा, उस पर लिखा था 'श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा'.
यहां कठूमर से आए एक मजदूर करन सिन्हा से हमारी मुलाकात हुई. काम करते वक्त उनके पैर में चोट लगी थी. इलाज के लिए कठूमर से 60 किलोमीटर दूर भरतपुर आना पड़ा था.
करन ने बताया कि स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्र में प्लास्टर नहीं होता इसीलिए यहां आना पड़ा. एक और शख्स विरेंद्र अपने चार साल के बच्चे के साथ मिले. वे बताते हैं कि बच्चे की पसलियों में दिक्कत है. इसलिए सीटी स्कैन करवाने आए हैं. उन्होंने बताया कि बच्चे को गांव में भी दिखाया लेकिन वहां मशीन नहीं थी. भरतपुर जाने को कह दिया.
ओपीडी के लिए अस्पताल के अंदर बने काउंटर खाली पड़े थे. हमें हैरानी हुई लेकिन बाहर आए तो देखा कि यहां प्लास्टिक शीट से अस्थायी काउंटर बनाए गए हैं. पता चला कि अंदर काफी भीड़ हो जाती थी इसलिए इन्हें बाहर बना दिया गया.
यहां हमें मुख्यमंत्री निःशुल्क निरोगी राजस्थान योजना, ओपीडी मरीज़ निःशुल्क दवा वितरण केंद्र की खिड़की दिखीं. वहां खड़ी एक महिला कहती हैं, “हॉस्पिटल में लापरवाही बहुत है. मरीज़ों को सही से देखते नहीं हैं. कई बार तो ऐसा होता है कि बिना देखे ही जयपुर रेफर कर देते हैं. मेरे एक रिश्तेदार की इसी वजह से मौत हो चुकी है. लेकिन यहां दवा और इलाज फ़्री में हो जाता है.”
केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 31,053 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सक्रिय थे. लगभग 24,935 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित थे और 6,118 शहरी क्षेत्रों में. देश में 6,064 सक्रिय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थे. जिनमें 5,480 ग्रामीण और 584 शहरी क्षेत्रों में हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, 2005 से अब तक उप-केंद्रों की संख्या 11,909 बढ़ी है. राजस्थान में सबसे ज्यादा 3,011 उप-केंद्र खोले गए हैं. ग्रामीण क्षेत्र में एक उप-केंद्र में औसत 5,691 लोग देखे जाते हैं.
जाटों ने क्यों शुरू किया ‘ऑपरेशन गंगाजल’
भरतपुर के जाट भी दो भागों में बंटे हैं. एक वो जो चाहते हैं कि वापस भाजपा सरकार आए और दूसरे वो जो भाजपा को दोबारा नहीं लाना चाहते. इसलिए यहां पर ‘ऑपरेशन गंगाजल’ चलाया जा रहा है. इसमें गंगाजल हाथ में लेकर कसम खिलाई जा रही है कि वे भाजपा को वोट नहीं देंगे. ‘वोट पर चोट’ और ‘ऑपरेशन गंगाजल’ जैसे नाम से इस मुहिम को जाट आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक नेम सिंह फौजदार ने शुरू किया है.
नेम सिंह बताते हैं कि भरतपुर और धौलपुर के जाट समुदाय को बरगलाया जा रहा है. सरकार द्वारा जाटों को बस आश्वासन दिया जाता है आरक्षण नहीं.
वे कहते हैं, “हमने 25 दिसंबर को संकल्प लिया था और उसी दिन से यात्रा शुरू की थी कि आचार संहिता से पहले अगर हमें जाट आरक्षण नहीं दिया गया तो हम इस तरह का ऑपरेशन चलाएंगे. हम रोजाना दर्जनों गांव में जाकर भाजपा को हराने की अपील कर रहे हैं.”
जाट और जाटवों में यहां कई तरह के विरोधाभास मौजूद हैं. मसलन जब हमने पूछा कि क्या जाट, जाटव नेता को वोट देकर जिता पाएंगे? इस पर नेम सिंह क़हते हैं कि जाटव हमारे भाई हैं और वो तो यहां के ख़ज़ाने की मालिक रहे हैं. उन्हें हम क्यों नहीं ला सकते. हम सब जाट उनके साथ हैं.
दरअसल 6 जून, 1992 को कुम्हेर कस्बे में जाट और जाटवों के बीच जातीय हिंसा हुई. टॉकीज में फ़िल्म देखने के दौरान विवाद हुआ जो बढ़कर व्यापक हिंसा में तब्दील हो गया. इसमें दलित समाज के 16 लोगों की हत्या कर दी गई. 43 लोग गंभीर घायल हुए थे. जाटवों के 79 घर आंशिक रूप से तथा 120 घर पूर्ण रूप जला दिए गए थे. 2006 में 83 लोगों के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया गया. 31 साल के लंबे ट्रायल के दौरान 32 आरोपियों की मौत हो गई. एक आरोपी फरार हो गया. बीते साल 30 सितंबर, 2023 को भरतपुर एससी, एसटी मामलों की विशेष अदालत ने 50 लोगों लोगों में से नौ को दोषी मान कर उम्रकैद की सजा सुनाई तथा 41 को बरी कर दिया.
अतीत में हुई इस घटना के आलोक में जाटों द्वारा जाटव उम्मीदवारों का समर्थन दरअसल मजबूरी का समर्थन है. आरक्षित सीट होने के चलते जाटों के पास कोई विकल्प नहीं है. भरतपुर के स्थानीय पत्रकार आकाश गुप्ता कहते हैं, “यहां जाट और जाटवों की आबादी सबसे ज्यादा है. ये दोनों कौम एक साथ आ जाएं किसी को भी हरा या जिता सकती हैं.”
जाट आरक्षण को लेकर भरतपुर के जाटों का एक हिस्सा भाजपा से खफ़ा हैं. वहीं, जाटव भी भाजपा से नाराज हैं. दोनों के कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने की संभावना है.
बयाना की रहने वाली मौजूदा सांसद रंजीता कोली से हमने तीन-चार दिन लगातार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पायी. भरतपुर से बयाना की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है. मजबूरन हमने बयाना जाने का तय किया.
बयाना में हम सीधे रंजीता कोली के घर पहुंचे. घर के बाहर खड़े गार्ड ने हमें बताया कि रंजीताजी घर पर ही हैं. उन्हें बुलावा भेजा तो अंदर से आए शख्स ने कहा- जब आपको मना किया गया था तब आप क्यों आ गए? खैर काफी मशक्कत के बाद रंजीता हमसे इस शर्त पर मिलने को राजी हो गईं कि कोई भी बातचीत ऑन रिकॉर्ड नहीं होगी.
करीब 45 मिनट इधर उधर की बात हुई. गौरतलब है कि उन्हें वाई+ सुरक्षा मिली हुई है. वे खनन माफिया के खिलाफ काम कर रही थीं, जिसकी वजह से उन पर कई हमले हुए. ये सब देखते हुए उन्हें सुरक्षा दी गई है.
उन्होंने बताया कि उनका दिल कुछ भी गलत होते हुए नहीं देख सकता. कई बार तो वो गाड़ी से उतरकर लोगों की सड़क पर मदद करने पहुंची हैं. महिलाओं के लिए काम किया है. अपने क्षेत्र के लिए लगातार मेहनत की है. टिकट न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हाईकमान के फैसले पर उन्हें कोई शिकायत नहीं.
हालांकि, पत्रकार आकाश इसके विपरीत बात कहते हैं, “कोली अपने क्षेत्र में अदिकतर समय अनुपस्थित रहीं. वो अपने ऊपर अक्सर हमले की बात कहती हैं लेकिन वो हमला आजतक किसी ने देखा नहीं. रात में बिना सूचना के वह खनन माफियाओं को पकड़ने जाती थीं और हमले की बात करती थीं. उन हमलों की जांच चल रही है और आजतक उसमें कुछ साफ नहीं हुआ है.” कोली के घर के पास के लोगों की भी रंजीता को लेकर ऐसी ही राय थी.
अमूमन यहां के ज्यादातर लोगों से हमें रंजीता कोली की शिकायत ही सुनने को मिली.
संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड्स) के अनुसार रंजीता कोली को 17 करोड़ रुपये मिलने थे लेकिन 7 करोड़ ही मिले. वह भी सांसद ने पूरा इस्तेमाल नहीं किया और अभी भी एक करोड़ 43 लाख रुपये का फंड उनकी संसद निधि में बचा हुआ है.
भरतपुर लोकसभा का व्यापक दौरा करने के बाद हमें लगता है कि यह बेहद पिछड़ा क्षेत्र है. यहां विकास की बहुत गुंजाइश है, और सामुदायिक स्तर पर बड़े सुधार की जरूरत है. जातीय धाराएं स्पष्ट रूप से खिंची हुई हैं, उनके बीच से बचते-बचाते सबको साध लेने वाला उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाएगा.
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