लोकसभा चुनावों के सातवें और आखिरी चरण में कुल 30 दलबदलू उम्मीदवार मैदान में उतरे. इनमें से 11 भाजपा, सात आम आदमी पार्टी, आठ कांग्रेस, दो बीजू जनता दल और शिरोमणि अकाली दल में हैं.
पंजाब में दलबदलू उम्मीदवारों की संख्या सबसे ज्यादा 18 है. तीन ऐसे उम्मीदवार उत्तर प्रदेश में हैं, दो-दो पश्चिम बंगाल, झारखंड व उड़ीसा और एक बिहार में हैं. इस चरण के चुनावों में हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में कोई भी उम्मीदवार नहीं था.
पंजाब में सबसे ज्यादा कांग्रेस में दल बदलू हैं. वहीं पश्चिम बंगाल में दो टीएमसी नेता भाजपा में चले गए. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने झारखंड में एक दलबदलू उम्मीदवार खड़ा किया है. दोनों राष्ट्रीय पार्टियां उड़ीसा में अपने विश्वासपात्रों पर भरोसा कर रही हैं पर क्षेत्रीय बीजद ने भाजपा और कांग्रेस से आए एक-एक नेताओं को उम्मीदवार बनाया.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने तीन तो वहीं भाजपा ने एक दलबदलू उम्मीदवार को मैदान में उतारा. वहीं बिहार से एकलौते दलबदलू उम्मीदवार कांग्रेस से हैं. आइए इन दोनों पिछड़े राज्यों के दलबदलू उम्मीदवारों पर एक नज़र डालते हैं.
नीरज शेखर सिंह: पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे, राज्य सभा सांसद
नीरज शेखर सिंह उत्तर प्रदेश के बलिया से भाजपा के उम्मीदवार हैं.
55 वर्षीय नीरज तीन बार सांसद रह चुके हैं. वे पूर्व में समाजवादी पार्टी में थे. वे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे हैं. 2007 में उनके पिता की मृत्यु के बाद वे राजनीति में आए. उनके पिता का गढ़ रहे उनके गृहक्षेत्र बलिया से ही सपा की टिकट पर वे चुनाव लड़े. दो साल बाद, 2009 में उन्होंने दोबारा चुनाव जीता.
2014 के चुनावों में नीरज को भाजपा के भरत सिंह के हाथों मात मिली. बाद में उन्हें राज्यसभा सांसद बना दिया गया. इसके लिए सपा के अलावा उन्हें सीपीआईएम और भाजपा के राजनाथ सिंह का भी साथ मिला.
2019 में सपा ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया. चार महीने बाद, सिंह ने पार्टी छोड़ी और भाजपा में चले गए. उन्होंने कहा कि चुनावों में मोदी को मिले समर्थन से उन्हें “विश्वास” हो गया है कि “अगर राष्ट्रहित में काम करना है तो उन्हें मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में काम करना चाहिए... उनके हाथों में देश खुद को सुरक्षित मानता है.” उसी साल पुलवामा हमला हुआ था.
एक साल से कम समय पहले नीरज ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि मोदी सरकार से ऊब चुके लोगों को यह समझना जरूरी है कि यह सरकार “दूसरों की परवाह करने की बजाय सिर्फ अपने मन की बात करती है. पर अब नीरज के सोशल मीडिया पर मोदी और योगी की तस्वीरों के साथ भाजपा के लिए वोट मांगते हुए पोस्ट हैं.
उनके पास वर्तमान में 13.03 करोड़ रुपए की संपत्ति है. इसमें 2014 से 86 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. हलफनामे से पता चलता है कि सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं और और “समाज सेवा” करते हैं. उनकी सांसद पेंशन ही उनके आय का एकमात्र स्रोत है. उनपर कोई भी आपराधिक मुकदमा नहीं है.
सदल प्रसाद : पूर्व बसपा नेता, दो बार के विधायक
सदल प्रसाद उत्तर प्रदेश की आरक्षित सीट बांसगांव से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 67 वर्षीय प्रसाद के राजनीतिक जीवन की शुरुआत बसपा से हुई. वे मायावती की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं.
2014 और 2019 के चुनावों में वे भाजपा के कमलेश पासवान से हार गए. इस साल मार्च में उन्होंने बसपा से अपना दो दशकों का नाता तोड़ लिया. वे पासवान के खिलाफ तीसरी बार चुनाव लड़े हैं पर इस बार वे बसपा से नहीं बल्कि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े.
गोरखपुर विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट प्रसाद के आय का एकमात्र साधन सांसद पेंशन है. उनके पास 1.18 करोड़ रुपयों की संपत्ति है. यह संपत्ति 2019 के मुकबले 35 फीसदी बढ़ी है. हलफनामे में उन्होंने अपने उपर कोई भी आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होने की जानकारी दी है. वे सोशल मीडिया पर नहीं हैं.
रमेश बिंद: पुलवामा कनेक्शन, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मुकदमा
रमेश चंद्र बिंद मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं. लेकिन 50 वर्षीय बिंद, चुनाव के हफ्तों पहले तक भाजपा में थे. वे राजेंद्र बिंद के साथ अखिलेश यादव के दल में चले गए. राजेंद्र बिंद भी मिर्जापुर में टिकट की दावेदारी कर रहे थे.
2002, 2007 और 2012 तीनों विधानसभा चुनावों में मझावन विधानसभा सीट से जीतने वाले बिंद मल्लाह समुदाय से आते हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत बसपा से की थी. वे 2019 तक मायावती के साथ रहे, फिर उन्हें “पार्टी-विरोधी गतिविधियों” के चलते निकाल दिया गया.
उनको निकाले जाने के बाद, उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें वे कह रहे थे, “ मायावती ने उनको इसलिए पार्टी से निकाला क्योंकि उन्होंने पुलवामा हमले का ज़िक्र पार्टी के मुख्यालय में कर दिया था”. एक महीने के अंदर वे भाजपा में चले गए और बाद में भदोही सीट जीत भी गए.
गौरतलब है कि बिंद का सिर्फ पुलवामा के संबंधित वीडियो ही नहीं वायरल हुआ था बल्कि 2019 चुनावों के बीच, ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ उनके द्वारा की गई टिप्पणी भी चर्चा में रही. उनके खिलाफ धार्मिक भावना आहत करने का मामला भी दर्ज हुआ. बिंद ने उस वीडियो को फर्जी बताया था, मामले की जांच अभी भी चल रही है.
हलफनामे में बिंद ने अपने कक्षा 9वीं तक पढ़े होने की सूचना दी है. वे पेशे से खुद को किसान बताते हैं. उनकी संपत्ति की कीमत 2019 से 24 फीसदी बढ़कर 11.73 करोड़ रुपए हो गई है.
मनोज कुमार भारती: नाबालिग के यौन शोषण का मुकदमा, कांग्रेस के वफादार का बेटा
मनोज कुमार भारती बिहार के सासाराम से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 40 वर्षीय मनोज 2017 में विकासशील इंसान पार्टी से राजनीति में आए. दो साल बाद, भारती सासाराम से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़े. इस बार के चुनावों के ठीक पहले, भारती फिर से कूदकर कांग्रेस में चले गए और लोकसभा टिकट भी मिल गई.
गौरतलब है कि भारती की मां यशोदा देवी कांग्रेस की पुरानी वफादार रही हैं और वे पार्टी के रोहतास व कामपूर महिला विंग की प्रमुख रही हैं.
भारती के खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं. एक नाबालिग लड़की के उत्पीड़न और यौन शोषण से जुड़ा हुआ है. उनके बेटे उज्ज्वल कुमार इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं. इसी दौरान, पीड़िता और उसकी मां के एक प्रेस कांफ्रेस में मुकदमे से पल्ला झाड़ने की भी ख़बर आई.
उनकी आय का स्रोत कृषि है जबकि उनकी पत्नी नर्स हैं. उनके पास 3.24 करोड़ रुपए की संपत्ति है. यह 2019 से 266 प्रतिशत बढ़ गई है.
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