25 मई को हुए छठे चरण के लोकसभा चुनाव में 58 लोकसभा क्षेत्रों में कुल 23 दलबदलू उम्मीदवार शामिल थे. इनमें से दो बीजू जनता दल से, नौ भाजपा के एनडीए गठबंधन से और 12 इंडिया गठबंधन से रहे.
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 10 पाला बदलने वाले उम्मीदवार रहे. इनमें से 5 बसपा से सपा में गए हैं. सबसे कम झारखंड में पाला बदलने वाले उम्मीदवार हैं. वहां से इस चरण में कोई भी दलबदलू उम्मीदवार नहीं है. इन 23 में से 6 को भाजपा ने टिकट दिया है तो वहीं छह अन्य पहले कांग्रेस का हिस्सा थे.
आइए इस चरण के दिग्गजों पर एक नज़र डालते हैं.
नवीन जिंदल: 1241 करोड़ रुपये की संपत्ति, 9 मुकदमे, पूर्व कांग्रेसी
नवीन जिंदल हरियाणा के कुरुक्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार हैं. 54 वर्षीय अरबपति उद्यमी जिंदल दो बार सांसद रह चुके हैं. वे जिंदल स्टील और पावर के अध्यक्ष हैं. वे ओपी जिंदल विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं.
उनके माता-पिता, ओपी जिंदल और सावित्री जिंदल, दोनों ही विधायक रह चुके हैं. जबकि नवीन ने अपना राजनीतिक जीवन 1991 में कांग्रेस के साथ शुरू किया था. हालांकि, पहली बार 2004 में उन्होंने कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर जीता. वे 33 सालों तक कांग्रेस के साथ रहे. इस बार चुनाव के हफ़्तों पहले ही वह भाजपा में चले गए.
कांग्रेस के साथ रहते हुए 2009 में उन्होंने जीत दर्ज की और खाद्य सुरक्षा अधिनियम का मार्ग प्रशस्त किया. तीन साल बाद, कथित कोयला आवंटन घोटाले में सीबीआई ने उनकी भूमिका की जांच शुरू कर दी थी. 2014 के चुनावों में कांग्रेस गठबंधन के साथ-साथ जिंदल भी चुनाव हार गए.
जिंदल को आपराधिक षड़यंत्र और धोखाधड़ी के मामले में पिछले 10 सालों में बहुत बार समन भेजा जा चुका है. 2019 में दिल्ली की एक अदालत ने उनपर आरोप तय कर दिया था. इस साल जाकर जनवरी में कोर्ट ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति दी.
2014 में जिंदल को उम्मीद थी कि वे नरेंद्र मोदी की “अति लोकप्रिय छवि” से लोहा ले पाएंगे. लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद उनका रुख नरम हो गया. “सतत विकास” की अपील के साथ-साथ “कोयला क्षेत्र को दशकों के लॉकडाउन से बाहर निकालने” के लिए वे मोदी को धन्यवाद देते दिखे. इस साल मार्च में भाजपा में शामिल होने के बाद, जिंदल ने मोदी का प्रचार करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया. उनके शब्दों में मोदी “अभूतपूर्व नेतृत्वकर्ता” हैं जिसकी वजह से “भारत को वैश्विक मंच पर जगह मिली है और सिलिकॉन वैली के उद्यमियों से सराहना मिली है”. जिंदल के एक्स अकाउंट पर “सनातन धर्म की जय” जैसे धार्मिक नारे भी यदाकदा दिखते हैं.
टेक्सास विश्वविद्यालय से एमबीए कर चुके जिंदल पर कुल 9 मामले लंबित है. उनकी संपत्ति की कीमत पिछले 10 साल में 10 गुना बढ़ गई. 2014 में उनके पास 308 करोड़ रुपये की संपत्ति थी जो 2024 में बढ़कर 1,241 करोड़ रुपये हो गई.
सौमेंदु अधिकारी: दो बार के विधायक, अधिकारी परिवार के वारिस, 6 मुकदमे
सौमेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल के कांठी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार हैं. वे दिसंबर 2021 में टीएमसी से भाजपा में आ गए थे. 41 वर्षीय उद्यमी सौमेंदु तामलुक से विधायक हैं और भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी के भाई हैं.
रसूखदार परिवार के सौमेंदु के राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांठी नगर निकाय के सभासद के तौर पर हुई थी. इसी दौरान, कांठी से उनके पिता और केंद्रीय मंत्री शिशिर अधिकारी तृणमूल कांग्रेस की टिकट पर तीन बार चुने गए.
सौमेंदु 2021 में विधानसभा चुनावों के ठीक पहले भाजपा में में यह कहकर चले गए कि “टीएमसी में कोई सम्मान नहीं है. पार्टी को ऐसे लोगों के हाथ में देखकर दुख होता है.” सौमेंदु बेहद गुस्से में थे कि उनके भाई सुवेंदु को ‘मीर जाफ़र’ कहकर टीएमसी ने उनके “परिवार का अपमान” किया है. सुवेंदु के दिसंबर 2020 में ही भाजपा में चले जाने के बाद से ही वे टीएमसी के नेताओं की आंख में किरकिरी बन गए थे. इसीलिए सुवेंदु की तुलना पलासी के युद्ध में सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात करने वाले मुग़ल सेनापति ‘मीर जाफ़र’ से की जा रही थी.
2021 में अधिकारी परिवार के कई लोग भाजपा में आए. सुवेंदु के पाला बदलने के बाद, शिशिर को दीघा-शंकरपुर विकास समिति के अध्यक्ष और टीएमसी की जिला इकाई के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था. सौमेंदु को भी नगर निकाय से हटा दिया गया था. जल्द ही उन्होंने भाजपा का हाथ थाम लिया.
2022 में पुलिस ने सौमेंदु के खिलाफ कांठी में 14 दुकानों को आवंटित करने के लिए कथित तौर पर पैसों के हेरफेर के आरोप में भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया. इसके अलावा, उनपर 6 मुकदमे लंबित हैं. इनमें आपराधिक धमकी और धोखाधड़ी के मामले भी हैं. अप्रैल 2024 में उनके पास कुल 2.61 करोड़ रुपये की संपत्ति है.
अपने एक्स अकाउंट पर सौमेंदु इंडिया गठबंधन पर “टैक्स आतंकवाद” का आरोप लगाते हैं और ममता के “विभाजनकारी रणनीति” की काट मोदी सरकार को बताते हैं.
कन्हैया कुमार: पूर्व-जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष, राजद्रोह का मुकदमा, सीपीआई से कांग्रेस
कन्हैया कुमार दिल्ली के उत्तर-पूर्व क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. 37 वर्षीय कन्हैया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) से की थी. एआईएसएफ को अक्सर सीपीआई के छात्र संगठन के तौर पर जाना जाता है. 2016 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी के दौरान, वे वहाँ के छात्र संघ के अध्यक्ष बने.
उन दिनों, वे तब विवादों के घेरे में आ गए जब वे और अन्य छात्रों ने सरकार द्वारा अफजल गुरु को फांसी दिए जाने का विरोध करने के लिए एक सभा का आयोजन किया था. सभा में कथित तौर “देशद्रोही नारे” लगने के मीडिया के दावों के बाद उन्हें राजद्रोह के आरोप में जेल भेजा गया लेकिन बाद में छोड़ दिया गया.
तीन साल बाद, कन्हैया ने बिहार के बेगूसराय से सीपीआई की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा पर भाजपा के गिरिराज सिंह से चुनाव हार गए. 2021 में वे कांग्रेस में आ गए. उन्होंने कहा, “कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी है, और मैं लोकतांत्रिक पर ज़ोर दे रहा हूं… सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि देश में बहुत से लोगों का मानना है कि यह देश कांग्रेस के बिना नहीं बच सकता है.”
कन्हैया पर सात आपराधिक मुकदमे दर्ज़ हैं. इनमें पुलिस पर हमला, ड्यूटी पर चिकित्सक के साथ दुर्व्यवहार और “देशद्रोही नारे लगाने” का मामला शामिल है. पिछले पांच साल में उनकी संपत्ति 92% बढ़ी है. अपने हलफनामे में उन्होंने अपनी आय का साधन “ब्याज” और प्रकाशित किताब फ्रॉम बिहार टू तिहाड़ से प्राप्त “रॉयल्टी” बताया है.
सुजाता मंडल: कांग्रेस में प्रेम हुआ, अब टीएमसी और भाजपा की लड़ाई में पूर्व पति के खिलाफ खड़ी
सुजाता मंडल पश्चिम बंगाल की सुरक्षित सीट बिष्णुपुर से तृणमूल कांग्रेस की टिकट पर उम्मीदवार हैं. 38 वर्षीय विद्यालय की अध्यापिका रह चुकी मंडल का राजनीति में पहला कदम तब पड़ा जब 14 साल पहले वे अपने पूर्व-पति सौमित्र खान से मिलीं. वे उस वक्त कांग्रेस के नेता थे. 2014 में दम्पत्ति ने टीएमसी का हाथ थाम लिया और दो साल बाद परिणय सूत्र में बंध गए.
2019 लोकसभा चुनावों के ठीक पहले जब खान टीएमसी से भाजपा में गए तब मंडल भी पीछे हो लीं. खान को बिष्णुपुर से टिकट भी मिल गई. हालांकि, नौकरी के बदले रुपये लेने के कथित घोटाले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने उनपर लोकसभा क्षेत्र में प्रवेश करने पर रोक लगा दी. इसके बाद मण्डल ने ही पति के चुनाव अभियान की सारी जिम्मेदारी संभाली और खान की जीत का श्रेय भी उन्हें ही मिला.
इसके 2 साल बाद, दम्पत्ति ने अलग होने की सार्वजनिक घोषणा की. मंडल भी राज्य में 2021 विधानसभा चुनावों के ठीक पहले टीएमसी में वापस आ गईं. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा में “नए आए, अक्षम और भ्रष्ट नेताओं” को तरजीह दी जा रही थी और अपने पति को जिताने के बदले उन्हें “कुछ भी नहीं” मिला. उन्हें खान के भी टीएमसी में वापस लौट आने की उम्मीद थी.
हालांकि, दोनों में कोई भी सुलह नहीं हो पाई और जल्द ही खान ने एक प्रेस वार्ता में तलाक लेने की घोषणा कर दी. अब बिष्णुपुर से दोनों को उनके दलों ने चुनाव में खड़ा किया है. मंडल टीएमसी से हैं तो खान भाजपा से. दोनों ही अपनी चुनावी सभाओं में एक-दूसरे पर हमलावर हो रहे हैं. खान ने मंडल को “लालची” और एक “अराजनीतिक व्यक्तित्व” कहते हुए नकार दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर टीएमसी कार्यकर्ताओं ने किसी तरह की हुड़दंग की तो उनकी “आंखें निकाल” लेंगे. वहीं, मंडल ने कहा है कि खान के साथ “रहते उन्होंने भी ऐसी ही यातना सही’ थी और खान का “स्तर बेहद नीचा” है. उन्होंने खान पर अपने क्षेत्र में कुछ भी काम ना करने का आरोप भी लगाया.
एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इन दोनों के बीच चल रहे तीखे निजी हमलों में कूद पड़ी. उन्होंने कहा, “मंडल थोड़ी गाबलू-गोबलू हैं. उनके पति बहुत ही शातिर हैं, इसीलिए वह इन्हें छोड़कर चला गया… लेकिन मुझे आश्चर्य है कि मंडल ने उससे शादी करने का फैसला कैसे किया था.”
मंडल पर दो मुकदमे लंबित हैं. उनकी संपत्ति में 5 प्रतिशत की कमी आई है. 2019 में उनके पास 96 लाख रुपये की संपत्ति थी जो अप्रैल 2024 में 91 लाख रुपये की हो गई है.
शोध सहयोग- दृष्टि चौधरी
अनुवाद- अनुपम तिवारी
इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
इस श्रृंखला के अन्य भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.