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निकिता सिंह

आया राम गया राम, भाग 17: 'झारखंड बचाने' की कोशिश में जुटे बीजेपी विधायक, पूर्व मंत्री, यूपी में 'बाहरी'

लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण मे केंद्रीय एजेंसियों की निगरानी में मौजूदा विधायक, बंगाल के पार्टी-पार्टी कूदने वाले और बिहार के दलबदलू नेताओं की हॉट सीट समेत 15 दलबदलू नेताओं में से आठ एनडीए में और छह इंडिया गठबंधन में हैं.

इस श्रृंखला के पिछले दो भागों में हमने एनडीए में बदलाव और हॉट सीटों पर नजर डाली.  इस भाग में हम इंडिया गठबंधन द्वारा मैदान में उतारे गए शेष पांच दलबदलू नेताओं की बात करेंगे. 

जय प्रकाश भाई पटेल: पूर्व कैबिनेट मंत्री, झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता के बेटे और भाजपा विधायक

जय प्रकाश भाई पटेल झारखंड के हजारीबाग से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 2011 में अपने पिता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता टेकलाल महतो की मृत्यु के बाद 41 वर्षीय जय प्रकाश भाई पटेल ने राजनीति में अपना पहला कदम रखा.

उनके पिता की मृत्यु के बाद मांडू विधानसभा सीट खाली होने पर उन्होंने उप-चुनाव लड़ा और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के टिकट पर विधायक बन गए. वह अगले आठ वर्षों तक पार्टी के साथ रहे. 2013 में जब वे 30 साल की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बने तब उनकी पार्टी के नेताओं ने कथित तौर पर कहा था कि उनका मंत्री पद झामुमो नेता मथुरा महतो की ओर से "दहेज के रूप में उपहार" है, जिनकी बेटी ललिता की शादी पटेल से हुई है. कथित तौर पर इस युवा राजनेता ने तब कसम खाई थी कि “चाहे कुछ भी हो जाए” वह एक मंत्रालय से कम पर समझौता नहीं करेंगे. 

2019 के विधानसभा चुनावों से पहले, पटेल भाजपा में शामिल हो गए. पार्टी में लगभग पांच साल के बाद, मौजूदा मांडू विधायक इस साल मार्च में फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने कहा कि वह “एनडीए में अपने पिता की विचारधारा को खोजने में असमर्थ थे” और उन्हें पदों की परवाह नहीं थी, बल्कि वह “झारखंड को बचाना" चाहते हैं”  

उनका पहला लोकसभा मुकाबला भाजपा के मनीष जायसवाल के खिलाफ है. परिवहन व्यवसायी और राजनेता पटेल की संपत्ति 2019 में 3.66 करोड़ रुपये से घटकर इस साल अप्रैल में 2.89 करोड़ रुपये हो गई है. उन पर कोई आपराधिक मामला भी लंबित नहीं है.

विश्वजीत दास: किसान, भाजपा विधायक और सात आपराधिक मामले

57 वर्षीय विश्वजीत दास पश्चिम बंगाल के बनगांव से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. तीन बार के इस विधायक ने 2010 में तृणमूल कांग्रेस के साथ अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी.

2019 में, वह 12 पार्षदों के साथ भाजपा में शामिल हो गए, जिससे बनगांव नगर पालिका का नियंत्रण टीएमसी से भाजपा के पास चला गया. भगवा पार्टी ने तब कहा था कि टीएमसी नेता भाजपा में इसलिए शामिल हो रहे हैं क्योंकि ममता बनर्जी ने पूरे पश्चिम बंगाल में हिंसा फैला दी है.

दो साल बाद, दास ने भाजपा के टिकट पर उत्तर 24 परगना के बागदा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. लेकिन अगले कुछ महीनों में ही वह टीएमसी में वापस लौट आए और कहा कि उन्होंने भाजपा में कभी भी सहज महसूस नहीं किया. मैं बहुत पहले ही टीएमसी में लौटना चाहता था. भाजपा ने बंगाल के लिए कुछ नहीं किया है. इस राजनेता ने यह भी कहा कि उन्होंने “गलतफहमी” के कारण ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को छोड़ दिया था लेकिन अब वह “घर लौट आए हैं”. 

मौजूदा लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री और बनगांव से भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर के खिलाफ मैदान में उतरने के बाद दास ने दल-बदल विरोधी कानून की कार्यवाही से बचने के लिए इस साल अप्रैल में राज्य विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. दास ने आरोप लगाया है कि भाजपा “आंतरिक कलह से प्रभावित है” और उसके पास “काम करने के लिए कोई जगह नहीं है”. उन्होंने भगवा पार्टी पर सीएए के तहत नागरिकता को लेकर मतुआ समुदाय को डरा-धमका कर वोट मांगने का भी आरोप लगाया है.

पेशे से किसान, दास ने 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की है और उनके पास 1.08 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है, जो 2021 में 49 लाख रुपये थी. उनके खिलाफ सात आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें विश्वासघात, धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी जैसे मामले शामिल हैं.

भगत राम मिश्रा: ब्राह्मण चेहरा और बृजभूषण के बेटे के खिलाफ मैदान में हैं

भगत राम मिश्रा उत्तर प्रदेश के कैसरगंज से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं. 71 वर्षीय वकील रहे मिश्रा ने अपना राजनीतिक सफर कांग्रेस से शुरू किया और सपा, बसपा होते हुए फिर भाजपा में शामिल हो गए. वे पिछले साल फिर से अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी में लौट आए.

मिश्रा बहराइच के निवासी एक ब्राह्मण हैं और क्षेत्र के अधिवक्ताओं के बीच भी लोकप्रिय हैं. उन्होंने बहराइच जिला अदालत में काफी समय बिताया है. वकील और राजनेता मिश्रा की लोकप्रियता किसानों और हाशिए पर रहने वाले लोगों तक भी फैली हुई है. वे आखिरी बार 2004 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और सपा उम्मीदवार रुबाब सईदा से हार गए थे.

इस साल मिश्रा को भाजपा उम्मीदवार करण भूषण सिंह के खिलाफ खड़ा किया गया है, जो एक वकील, राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज और उत्तर प्रदेश कुश्ती महासंघ के प्रमुख भी हैं. राजनीति में नए करण को भाजपा ने उनके पिता, छह बार के विधायक और पूर्व डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह की जगह पर मैदान में उतारा है. बृजभूषण कई महिला पहलवानों से जुड़े यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी हैं.

मिश्रा को सिंह के खिलाफ कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है. वहीं स्थानीय सपा कार्यकर्ता कथित तौर पर उनकी उम्मीदवारी से नाराज हैं और उन्होंने उनके “बाहरी व्यक्ति” होने की शिकायत की है. जाहिर तौर पर उन्हें सपा के शीर्ष नेताओं ने यह तर्क देकर शांत किया कि अंतिम समय में अपना उम्मीदवार बदलने से मतदाता भ्रमित हो जाएंगे.

भगत राम के हलफनामे के अनुसार, उनकी संपत्ति बढ़कर 5 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है, जो 2004 में 31 लाख रुपये थी. उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित है, जिसमें हत्या के प्रयास, घर को नष्ट करने के इरादे से आग लगाने का आरोप, राष्ट्रीय-अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले दावे और आपराधिक धमकी शामिल है.

कृष्णा शिवशंकर सिंह पटेल: राजनेता दम्पति, गृहिणी

कृष्णा शिवशंकर सिंह पटेल उत्तर प्रदेश के बांदा से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं. नामांकन से कुछ दिन पहले उनके पति शिवशंकर सिंह पटेल के बीमार पड़ने के बाद 54 वर्षीय पटेल को आखिरी समय में मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा.

बबेरू से तीन बार विधायक और पूर्व राज्य मंत्री कृष्णा और शिवशंकर पहले भाजपा में थे. लेकिन 2021 के यूपी पंचायत चुनाव से पहले, जब भाजपा ने कृष्णा को टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा. उसी वर्ष, भाजपा ने शिवशंकर को “पार्टी विरोधी” गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया. इसके बाद राजनेता दंपत्ति सपा में शामिल हो गए. कभी बीजेपी के वफादार रहे ये दोनों इस बात पर जोर देते रहे हैं कि अयोध्या का राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं है बल्कि बेरोजगारी और महंगाई है.

उनके हलफनामे के अनुसार, पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाली कृष्णा एक “गृहिणी” हैं और उन्होंने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है. उनके पास 3.62 करोड़ रुपये की संपत्ति है लेकिन कोई आपराधिक मामला नहीं है.

संजय दीना पाटील: एनसीपी से शिवसेना और भांडुप के मजबूत नेता

संजय दीना पाटील महाराष्ट्र में मुंबई उत्तर-पूर्व से चुनावी मैदान में उतरे हैं. 55 वर्षीय संजय ने अपने राजनीतिक सफर शुरुआत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से की. उन्हें भांडुप, मुलुंड और मानखुर्द-शिवाजी नगर बेल्ट में काफी समर्थन प्राप्त है.

पाटील 2004 में भांडुप से विधायक और 2009 में मुंबई उत्तर-पूर्व से सांसद चुने गए. उन्हें 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ा. अप्रैल 2019 में, राजनेता ने शरद पवार के अजेय कद का जिक्र करते हुए उन्हें “पहाड़” कहा था और शिवसेना में भाई-भतीजावाद की ओर इशारा किया. उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना दोनों ‘एक ही बुराई’ के खिलाफ लड़ रहे हैं. लेकिन महीनों बाद, राज्य चुनावों से पहले, पाटील उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए.

राजनेता कथित तौर पर अपने भाषणों में अन्य समुदायों के खिलाफ मराठियों को खड़ा करते हैं. विशेष रूप से मुंबई उत्तर-पूर्व में मराठियों की आबादी ज्यादा है. पर यहां मुसलमानों और गुजरातियों की भी अच्छी खासी आबादी है. पिछले महीने, पाटील के समर्थकों ने आरोप लगाया था कि कई “गुजराती बहुल सोसाइटी" में उन्हें चुनाव प्रचार के लिए घुसने नहीं दिया गया था.

उनके हलफनामे के अनुसार, पाटील की संपत्ति 2019 में 2.62 करोड़ रुपये से 52 प्रतिशत बढ़कर पिछले साल अप्रैल में 3.99 करोड़ रुपये हो गई.

अनुवाद- अनुपम तिवारी

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

इस श्रृंखला के अन्य भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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