उत्तर पूर्वी दिल्ली के गौतमपुरी इलाके में गुरुवार को ईद उल मिलाद के जश्न में लोग सड़कों से गुजर रहे थे. वहीं, यहां के टी ब्लॉक में रहने वाले मोहम्मद आज़ाद और उनकी पत्नी शबनम चिंता में डूबे हुए थे. सुबह से दो बार दिल्ली पुलिस के अधिकारी पूछताछ के लिए उनके यहां आ चुके हैं.
इसकी वजह है उनके पड़ोसी मोहम्मद हसनैन का अपने बेटे इशाक अमीर के साथ अवैध रूप से पाकिस्तान जाना. यह खबर 26 सितंबर को सामने आई.
आज़ाद बताते हैं कि बुधवार शाम को वे एक दुकान पर थे. वहीं पर किसी ने उन्हें हसनैन का वीडियो दिखाया. तभी उन्हें इस बारे में पता चला.
क्या वे आपसे कुछ कहकर गए थे. इस सवाल पर आजाद कहते हैं, ‘‘5 सितंबर को वो यहां से गए थे. हमें बताया कि अबू धाबी में मेरे बेटे की नौकरी लगी है. 10 सितंबर को उसकी जॉइनिंग है. मैं 15 सितंबर को वापस आ जाऊंगा. कमरे की चाबी भी मुझे ही देकर गए हैं. जाने के बाद मेरी उनसे कोई बात नहीं हुई है.’’
इशाक ने 12वीं की पढ़ाई करने के बाद डिप्लोमा किया था. उसके बाद सेफ्टी का एक कोर्स किया था. आज़ाद बताते हैं, ‘‘इससे पहले भी उनका लड़का 2021 में दुबई में काम करके आ चुका है. ऐसे में हमें कोई शक भी नहीं हुआ.’’
आजाद और मोहम्मद बीते डेढ़ सालों से पड़ोसी थे. पहले ये गौतमपुरी के टी ब्लॉक के एक दूसरे मकान में रहते थे. सात महीने पहले आज़ाद जब यहां रहने आए तो हसनैन भी अपने बेटे के साथ उनके पड़ोस में रहने आ गए. हसनैन का 1983 में ही तलाक हो गया था. वो अपने बेटे के साथ ही रहते थे. ऐसे में आज़ाद की पत्नी कभी उन्हें खाना बनाकर दे देती थीं तो कभी वो छात्र अपने घर से खाना ला देते थे जिन्हें हसनैन पढ़ाया करते थे.
5 सितंबर को अबू धाबी के लिए निकले हसनैन ने अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश किया. डॉन अख़बार ने कराची पुलिस के हवाले से लिखा कि मोहम्मद हसनैन और इशाक अमीर भारत में धार्मिक उत्पीड़न के कारण अपनी जान को खतरा होने पर शरण लेने के लिए अफगानिस्तान सीमा के रास्ते पाकिस्तान में दाखिल हुए.
इसके अलावा हसनैन ने भारत में मुस्लिम समुदाय पर कथित ज्यादती का जिक्र कर कहा, "हम जेल जाने को तैयार हैं, लेकिन भारत वापस नहीं. अगर वापस भेजा गया तो भारत में कदम रखते ही हमें मार दिया जाएगा.’’
हसनैन ने पाकिस्तान के एक दूसरे चैनल ‘जिओ न्यूज़’ से भी बात की. इशाक ने यहां बताया, ‘‘5 सितंबर 2023 को यूएई का वीजा लेकर हम इंडिगो से अबू धाबी पहुंचे. वहां दो दिन रहे. 7 सितंबर को अफगानिस्तान की एम्बेसी गए. वहां ट्रैवलिंग वीजा के बारे में पता किया. डेढ़ से दो घंटे के भीतर उन्होंने वीजा दे दिया. यहां से काबुल पहुंच गए फिर दो-तीन दिन बाद कांधार. यहां पाकिस्तान जाने के लिए लोगों से बात करनी शुरू की क्योंकि वीजा तो मिल नहीं रहा था. तब कुछ एजेंटों से मुलाकात हुई. उनमें से एक ने कहा कि वो सौ फीसदी उधर (पाकिस्तान) पहुंचा देगा. हमने बिस्मिलाह की और बॉर्डर क्रॉस कर गए. फिर चमन आ गए और वहां से हम क्वेटा (बलोचिस्तान) पहुंचें. उसके बाद हम टैक्सी से कराची आए.”
चार बार चुनाव लड़ चुके हैं हसनैन
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, हसनैन अब तक चार बार चुनाव लड़ चुके हैं. साल 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा और साल 2013 में दिल्ली विधानसभा के चुनावों में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा था. साल 2009 में जहां 3194 वोट मिले थे. वहीं, 2014 में मात्र 879 वोट मिले.
वह कौमी पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. हालांकि, यह चुनाव आयोग से पंजीकृत पार्टी नहीं है. पार्टी के फेसबुक पेज के मुताबिक, ‘‘भारत की कौमी पार्टी एक मुस्लिम नेतृत्व वाली राजनीतिक पार्टी है, संक्षेप में यह मुसलमानों के लिए मुसलमानों की पार्टी है.’’
2017 तक इस पार्टी से जुड़े रहे जाफराबाद के एक शख्स ने बताया, ‘‘साल 2016 तक इसका दफ्तर भी हुआ करता था लेकिन उसके बाद वह भी नहीं रहा. मैं उस पार्टी से अलग होकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से जुड़ गया क्योंकि वहां (कौमी पार्टी में) कोई भविष्य नहीं था. कौमी पार्टी ऑफ़ इंडिया मतलब मोहम्मद हसनैन ही था. उससे कोई और जुड़ा भी नहीं था.’’
हसनैन सिर्फ खुद चुनाव नहीं लड़ते थे बल्कि लड़वाते भी थे. गौतमपुरी में मोबाइल रिपेयर शॉप चलाने वाले मोहसिन को 2017-18 में उन्होंने निगम पार्षद का चुनाव लड़वाया था. निर्दलीय के तौर पर लड़ने वाले मोहसिन ये चुनाव हार गए थे.
मोहसिन न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मैं उनका छात्र रहा हूं. उनके कहने पर ही मैंने बीए (एलएलबी) में एडमिशन लिया था. यहां वो काफी मशहूर और इज्जतदार शख्स थे. बीते छह साल में हमारे संबंध काफी अच्छे बन गए थे. उनके साथ से ही मैं निगम पार्षद का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. चुनाव बाद मिलना जुलना कम हो गया था.”
राजनीतिक दल चलाने, चुनाव लड़ने के साथ-साथ हसनैन पत्रकारिता भी करते थे. वे ‘दि मीडिया प्रोफ़ाइल’ नाम से एक साप्ताहिक अख़बार भी निकालते थे. हालांकि, इसका भी आखिरी अंक 2015-16 में आया था. जानकारी के मुताबिक, यह अख़बार चंदे के रुपयों से प्रकाशित करवाते थे.
इस अख़बार में वो देश के मुसलमानों के हालात को लेकर ही लिखते थे. 2015 में अख़बार में छपे संपादकीय में उन्होंने लिखा, ‘‘हिंदूवादी तंजीमों ने जब से देश में मुसलमानों को दोबारा हिंदू बनाने की मुहिम छेड़ी है, आम मुसलमान दहशत में है. ख़ास मुसलमानों की बात इसलिए छेड़ना नहीं चाहता क्योंकि ख़ास लोग ख़ास बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. यह तो बस आम आदमी है जो ईमान को अपने दिल से लगाए रखता है.’’
दो मामले भी दर्ज हैं हसनैन के खिलाफ
आज़ाद पर जाफराबाद और खजूरी खास थाने में दो मामले में दर्ज हैं. वो जेल भी जा चुके हैं. साल 2012 में जब म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर विवाद शुरू हुआ और वे वहां से पलायन कर आस-पास के देशों में शरण लेने लगे तब हसनैन ने पोस्टर छपवाया और प्रदर्शन किया था. जिसके बाद 19 अगस्त 2012 को उनपर जाफराबाद थाने में एफआईआर दर्ज हुई. 220/12 नंबर की इस एफआईआर में उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए (बी) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ. हसनैन के वकील ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस मामले में वो 68 दिन जेल में रहे. इसके बाद वे जमानत पर बाहर आ गए. मामला अभी विचाराधीन है.
मालूम हो कि आईपीसी की धारा 153 ए (बी) के तहत ऐसे कृत्यों के लिए दंड का प्रावधान है जो कि विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सद्भाव के खिलाफ हैं, और जिनसे सार्वजनिक शांति भंग होती हो या भंग होने की आंशका हो.
इसके अलावा 2002 में खजूरी खास थाने में हसनैन पर आईपीसी की धारा 353, 186, 427, 506, 34 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था. इसका एफआईआर नंबर है, 6/2002. इनके एक करीबी ने बताया कि खजूरी खास में कुछ घरों को तोड़ा जा रहा था. वहां पर विरोध करने पहुंचे तो उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ. हालांकि, इस मामले में वे बाद में बरी हो गए.
हसनैन कोर्ट में अपने केस की पैरवी खुद भी करते थे.
मुस्लिम छात्रों की पढ़ाई को लेकर चिंतित
जाफराबाद-गौतमपुरी इलाके में रहने वाले लोगों में मोहम्मद हसनैन की छवि पढ़े लिखे सामाजिक शख्स की है. इनके मकान मालिक शाहिद अहमद न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘वो नामी हस्ती हैं. लोकसभा का उन्होंने चुनाव लड़ा है. यहां कम से कम एक हज़ार लड़के हैं, जिनको उन्होंने पढ़ाया है. उनके पढ़ाए हुए कई लड़के आज वकील हैं.’’
चुनावी हलफनामे के मुताबिक हसनैन ने बिहार बोर्ड से 10 तक की पढ़ाई की थी. हालांकि, यहां वो शुरू से ही गरीब-अमीर हर तबके के बच्चों को उर्दू और अंग्रेजी की पढ़ाई कराते थे. टी ब्लॉक में ही रहने वाले 62 वर्षीय रईसुद्दीन बताते हैं, ‘‘मेरे दो बच्चों को उन्होंने मुफ्त में पढ़ाया था. मैंने पैसे देने की कोशिश की तो उन्होंने लेने से मना कर दिया.’’
कड़कड़डूमा में वकालत करने वाले एक स्थानीय युवा ने बताया कि जब मैं दिल्ली विश्विधालय में पढ़ाई कर रहा था तो हसनैन से अंग्रेजी पढ़ने के लिए जाता था. उनकी अंग्रेजी पर पकड़ बहुत मज़बूत थी. अंग्रेजी कोई भी पढ़ायेगा तो कम से 500 से हज़ार रुपए लेगा लेकिन वो मुझे मुफ्त में पढ़ाते थे. उनके पास काफी संख्या में छात्र पढ़ने आते थे. वो कहते थे कि अगर तुम पढ़ाई नहीं करोगे तो अपने और अपनी कौम के हक़ के लिए नहीं लड़ सकते हो. वो ज़्यादातर छात्रों को वकालत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे. जिसका नतीजा हुआ कि यहां कई वकील हैं.’’
आज़ाद बताते हैं, ‘‘शुगर और बीपी की बीमारी से ग्रसित हसनैन अभी भी छात्रों को पढ़ाते थे. उनका मकसद था कि क़ौम के बच्चे अनपढ़ न रहें.’’
कुछ लोग हसनैन और उनके बेटे से परेशान भी थे. ऐसे ही एक शख्स बताते हैं, ‘हमारा घर बन रहा था. दिन में मलबा उठाने पर सरकार की तरफ से मनाही थी. हम रात ग्यारह बजे के बाद मलबा हटाते थे. एक रात इशाक ने कहा कि आप रात में मलबा नहीं उठा सकते हैं. मेरे पिता को दिल की बीमारी है. मैंने उसे बताया कि ऐसे में तो काम ही नहीं हो पाएगा. तुम कहो तो देर रात में उठा लेते हैं लेकिन रोक दें ऐसा मुमकिन नहीं. इसपर वो बहस करने लगा. दोनों बाप-बेटे को चलती चिड़िया पकड़ने का शौक था. हर बात पर बहस करते थे.’’
पाकिस्तान जाने का फैसला गलत
हसनैन अब पाकिस्तान को ख्वाबों का मुल्क बता रहे हैं लेकिन 2015 में यूट्यूब पर अपलोड एक वीडियो में वह खुद के भारतीय होने पर गर्व महसूस करने का जिक्र करते हैं. उर्दू प्रेस क्लब में आयोजित इस कार्यक्रम में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस की मुखालफत करते भी नजर आते हैं.
इसी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था- "गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए जो कुछ हुआ उसमें क्या आरएसएस का हाथ नहीं था. इस देश में दो तरह के संविधान हैं. एक वो जो दिखता है. एक वो जो दिखता नहीं है, यह आरएसएस का संविधान है. जो आज से 80 साल पहले बना था. पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की हालत सबसे ज़्यादा खस्ता है. यह आरएसएस के एजेंडे का ही हिस्सा है.’’ यह सब इन्होंने तब राम माधव के सामने बोला था.
हसनैन का यूट्यूब पर एक और वीडियो मौजूद है. जिसमें वो महेश भट्ट के सामने बोलते नजर आते हैं. इसमें ये महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की आलोचना करते नजर आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम (मुस्लिम) बीते 60 सालों से जो कुछ भी झेल रहे हैं, उस मानसिकता को तैयार करने में हमारे उन बुजुर्गों का हाथ हैं, जिन्हें हम सेक्युलर कहते हैं.’’
इसके बाद वो कहते हैं, ‘‘इस कौम को आपने बंद गली में तो धकेल ही दिया है. मगर अब इसकी पीठ दीवार से लगने वाली है. और जब पीठ दीवार से लग जाती है. फिर वही होता है जिसके नजारें कहीं-कहीं देखने को मिलते हैं. मैं दुआ करता हूं खुदा न करे कि ऐसा वक़्त फिर ना आये जब हमारी आंखें ऐसे मंजर को देखें, लेकिन दुआओं से तक़दीर के फैसले नहीं होते हैं.”
हसनैन आज पाकिस्तान में जो कह रहे है, वो हिंदुस्तान में रहते हुए भी अपने लेखों और भाषणों के जरिए लगातार कह रहे थे. पाकिस्तान में उन्होंने भारत में मुस्लिमों पर ज्यादती का जमकर जिक्र किया. उनके दावे को यहां के कई लोग सही बताते हैं तो कई गलत. हालांकि, कोई कैमरे पर बात नहीं करना चाहता.
एक स्थानीय मुस्लिम पत्रकार जो हमें उनके घर ले गए थे वो सड़क की तरफ (जहां से ईद-उल-मिलाद का जश्न मनाते हुए लोग गुजर रहे थे) इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘सड़क जाम है. यह घंटों तक जाम रहेगी. इससे परेशान तो दोनों ही क़ौम के लोग हो रहे हैं. लेकिन क्या ये आज़ादी नहीं है? पाकिस्तान में उनको ऐसी क्या आज़ादी मिल जाएगी? दिक़्क़तें हर जगह है लेकिन वहां जाकर वो हिंदुस्तान की बदनामी करा रहे हैं.’’
वहीं, एक दूसरे शख्स कहते हैं, ‘‘कभी गाय के नाम पर तो कभी किसी और चीज के नाम पर हमारे लोगों का क़त्ल किया जा रहा है. संसद में एक मुस्लिम सांसद को भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने आतंकवादी तक बोल दिया. यह उत्पीड़न नहीं तो क्या है? उन्होंने वहां की मीडिया से जो कुछ भी बोला उसमें कुछ भी गलत नहीं है लेकिन मैं उनके भारत छोड़कर जाने के फैसले से सहमत नहीं हूं. यह हमारे बाप- दादाओं की जमीन है. वो यहीं दफन हो गए हम भी यहीं दफन होंगे. संविधान के तहत हम यहां अपने हक़ की लड़ाई लड़ेंगे.’’
गौतमपुरी में ठेकेदार के तौर पर काम करने वाले मुस्लिम बुजुर्ग उन्हें गालियां देने लगते हैं. वो कहते हैं, ‘‘गौतमपुरी एक मुस्लिम बाहुल्य इलाका है. दिल्ली दंगे के समय भी यहां किसी को नुकसान नहीं हुआ था. सब भाईचारे से रहते हैं. उनको न जाने कौन परेशान कर रहा था. दूसरे देश में जाकर अपने देश की बुराई करना कहीं से उचित नहीं है.’’
हसनैन के पढ़ाये हुए एक वकील न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘वो कौम पर हो रहे अन्याय के खिलाफ बोलते रहते थे. वो चिंता जाहिर करते थे कि भविष्य में स्थिति और खराब होगी. लेकिन पाकिस्तान चले जायेंगे इसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी. उनकी उम्र 70 से ज़्यादा है. कुछ सालों में उनका इंतकाल हो जाएगा. वो अपने बेटे की जिंदगी खराब कर गए. यहां उनका लड़का 25-30 हज़ार रुपए की नौकरी करता था. पाकिस्तान में क्या करेगा? पाकिस्तान तो अपने युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रहा है. उसे क्या देगा?’’
आगे वकील कहते हैं , ‘‘वो अपने वीडियो में कह रहे है कि वो वापस इंडिया नहीं आना चाहते हैं. हम खुद भी दुआ करते हैं कि वो वापस न आए.’’
इस मामले में गुरुवार को पुलिस हसनैन के पड़ोसियों से उनके बारे में जानकारी लेने पहुंची थी. आगे क्या कार्रवाई होगी इसको लेकर पुलिस अधिकारी कुछ कहते नजर नहीं आ रहे हैं.
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