उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू बाबा साकार विश्व हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ से अब तक 121 लोगों की मौत हो चुकी है. दर्जनों लोग घायल हैं. मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं.
हादसा हाथरस जिले के सिकंदराराउ थाने के फुलेरिया गांव में हुआ. बाबा के सत्संग के लिए पंडाल अलीगढ़-कानपुर रोड पर करीब 100 एकड़ में बनाया गया था.
आयोजकों की ओर से प्रशासन से 80,000 लोगों के लिए सत्संग में शामिल होने की अनुमति मांगी गई थी लेकिन माना जा रहा है कि इस सत्संग में 2 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए.
हादसे के दौरान मौके पर मौजूद स्थानीय लोगों के मुताबिक, दोपहर करीब 1:30 बजे सत्संग खत्म हो गया और भोले बाबा का काफिला पंडाल के पीछे के रास्ते निकलते हुए जीटी रोड पर आ गया. भोले बाबा को एटा के लिए रवाना होना था.
चूंकी पंडाल जीटी रोड के बिल्कुल सटा हुआ था तो बहुत सारे भक्त रोड के दोनों तरफ बाबा के काफिले का इंतजार कर रहे थे. भोले बाबा के भक्तों के बीच यह मान्यता है अगर वह उसके चरणों की धूल छू लें तो उनका जीवन सफल हो जाएगा. इसीलिए बहुत बड़ी संख्या में लोग भोले बाबा के काफिले का इंतजार कर रहे थे और इसमें सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की थी. जब काफिला लोगों के बीच से गुजरा तो भोले बाबा के सिक्योरिटी में तैनात लोगों ने भीड़ को काबू करने के लिए धक्का- मुक्की की. जिसके बदले भीड़ ने भी धक्का-मुक्की शुरू की और हालात बेकाबू होते चले गए. चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई. लोग सड़क किनारे बने खड्डे में गिरने लगे और एक दूसरे को कुचल कर भागने लगे. हादसे के बाद सिकंदराराऊ थाने की पुलिस जांच में भी यही तथ्य सामने आया है.
इस सत्संग में उत्तर प्रदेश के मथुरा, रायबरेली, आगरा, हाथरस, एटा, अलीगढ़ और कासगंज के लोग शामिल थे.
रायबरेली से संगत में शामिल होने आई रामश्री देवी इस भगदड़ के दौरान अपनी साथी सुनीता के साथ दब गई थी. रामश्री के मुताबिक जब वह पंडाल से निकल रही थी तब धक्का-मुक्की के दौरान वह सड़क किनारे गड्ढे में गिर गई. उसके साथ ही सुनीता भी उसी गड्ढे में गिर गई. इसके बाद लोग उनके ऊपर गिरते चले गए. वह करीब 20 मिनट तक नीचे दबी रही.
इस दौरान सुनीता की मौत हो गई जबकि रामश्री को लोगों ने किसी तरह बाहर निकाला. इसके बाद उन्हें अलीगढ़ के जिला अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया. वह उन 20 मिनट को याद करते हुए कहती हैं, “मेरी सांस फूल रही थी. मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. मेरे बगल में जो बहन थी. उसकी मौत हो गई और उसकी आखिरी शब्द थे…अब जाने का समय आ गया है.”
हादसे के दौरान सत्संग में शामिल विनय गुप्ता के मुताबिक, इस भगदड़ में करीब 200 लोग नीचे दब गए थे. सत्संग के दिन सुबह बारिश हुई थी. इसलिए गड्ढों में पानी भरा था और कीचड़ होने की वजह से बहुत सारे लोगों का दम घुट गया.
विनय ने कहा, “जब हम लोगों को कीचड़ से निकाल रहे थे तो हमारे पास पानी भी नहीं था. किसी तरह हम लोग बोतल में पानी भरकर कीचड़ से निकाले गए लोगों को पिला रहे थे. हादसे के करीब 1 घंटे बाद एंबुलेंस आई और तभी पुलिस पहुंची. तभी दमकल की गाड़ी आई.”
हादसे में घायल और मृतक लोगों को पास के ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्थित ट्रामा सेंटर ले जाया गया. यह ट्रॉमा सेंटर सिकंदरा में स्थित है और घटनास्थल से सबसे नजदीक था.
जब यहां पर घायलों और मृतकों को लेकर लोग पहुंचे तो पता चला कि ट्रॉमा सेंटर में जगह ही नहीं है. ट्रॉमा सेंटर में कुल सात स्टाफ काम करते हैं. जिसमें एक डॉक्टर, तीन नर्स, एक लैब तकनीशियन और दो सफाई कर्मचारी हैं. पूरे ट्रॉमा सेंटर में सिर्फ दो वार्ड हैं. जगह और डॉक्टरों की अभाव की वजह से ट्रॉमा सेंटर के बाहर फर्श पर ही लाशों रखा गया.
बाद में वहां से प्रशासन द्वारा मृतकों के समूह को चार अलग-अलग जिला अस्पतालों- आगरा, अलीगढ़, हाथरस और एटा भेजा गया. जहां पर पोस्टमॉर्टम के बाद शवों को उनके परिजनों को सुपुर्द किया जा रहा था.
हमने इस रिपोर्ट में हादसे की वजह जानने के लिए लिए घायलों, मौके पर मौजूद चश्मदीदों और मृतकों के परिजनों से बात की है.
देखिए हमारी यह वीडियो रिपोर्ट-
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