साफ़ हवा हमारा हक़ है. हालांकि, दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुका है. 2024 में 155 दिनों तक इसकी वायु गुणवत्ता खराब या उससे भी बदतर रही.
#FightToBreathe यानी #हवा_का_हक़ मुहिम के तहत शहर की हवा को साफ़ बनाने के लिए हमारे कुछ सुझाव हैं. विशेषज्ञों के पैनल की सलाह और सुझावों पर आधारित ये 12 कदम हम तमाम राजनीतिक दलों और दिल्ली की आगामी सरकार को प्रस्तावित करते हैं.
हम मांग करते हैं कि इन उपायों को हरेक राजनेता और पार्टी अपने एजेंडे में शामिल करे.
प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही रोकें
वायु प्रदूषण, मौसम चक्र और उत्सर्जन का एक परिणाम है. हम मौसम चक्र को तो बदल नहीं सकते लेकिन स्मॉग टावर और एंटी-स्मॉग गन जैसे दिखावटी उपायों पर करोड़ों रुपये का सार्वजनिक धन बर्बाद करने के बजाय, प्रदूषण के स्रोतों पर लगाम लगा सकते हैं. उद्योगों, वाहनों आदि जैसे सभी प्रकार के स्रोतों से उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.
स्पष्ट लक्ष्यों वाली वार्षिक अभियान योजना
दिल्ली को ग्रैप (GRAP) मॉडल जैसे अल्पकालिक समाधानों की आदत है. ये जहरीले रसायनों के संपर्क को कम तो कर सकते हैं लेकिन कभी भी दीर्घकालिक स्थायी लाभ नहीं देते हैं. इसलिए हमें एक रणनीतिक योजना की जरूरत है.
इसे सबसे पहले राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों का अनुपालन करना चाहिए. इन्हें पहली बार 2009 में अधिसूचित किया गया था. फिर 2030 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतरिम लक्ष्यों की ओर बढ़ना चाहिए.
इस योजना को उद्योगों, वाहनों, निर्माण और अपशिष्ट प्रबंधन सहित प्रमुख प्रदूषण स्रोतों की निरंतर निगरानी और विनियमन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. योजना में उत्सर्जन में कमी के मूल नज़रिए और वार्षिक लक्ष्य स्पष्ट किए जाने चाहिए.
योजना की प्रगति को पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रखा जाना चाहिए.
खतरनाक प्रदूषकों को प्राथमिकता दी जाए
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) मुख्य रूप से पीएम 10 को लक्षित करता है. इसके तहत धूल से जुड़े उत्सर्जन की रोकथाम पर ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान दिया जाता है. वहीं, अन्य महत्वपूर्ण प्रदूषण स्रोतों, जैसे वाहनों से होने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण और बायोमास जलाने पर पर्याप्त ध्यान नहीं रहता है.
दिल्ली के लिए तैयार किसी भी योजना को पीएम 2.5 को प्राथमिकता देनी चाहिए. ये सेहत के लिए सबसे ज़्यादा जोखिम पैदा करने वाले महीन कण हैं. सांस और हृदय संबंधी गंभीर बीमारियों का जोखिम इनसे सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है. इससे एक तो संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित होगा, साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रखने वाली व्यापक रणनीतियों को विकसित करने में मदद मिलेगी. ओज़ोन की बढ़ती मात्रा से निपटने के लिए भी एक रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए क्योंकि इससे स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है.
निगरानी करें, भर्ती करें और तैनाती करें
सरकार को वायु गुणवत्ता की लगातार निगरानी करने वाली प्रणालियों की स्थापना सुनिश्चित करनी चाहिए. साथ ही रिप्रेजेंटेटिव एयर सैंपल एकत्र करके उन्हें सुचारू रूप से संचालित करना चाहिए ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो. वायु प्रदूषण को लेकर निर्धारित खतरों की सीमाओं का उल्लंघन होने पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए. प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों को प्रदूषण उत्सर्जन हॉटस्पॉट में सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
वायु गुणवत्ता उपायों को व्यापक रूप से लागू किया जा सके इसके लिए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति में रिक्त पदों को भरना प्राथमिकता होनी चाहिए. पर्यावरण विभाग और दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी के लिए उपलब्ध पर्यावरण मुआवजे, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) फंड और अन्य निधियों का समय पर वितरण और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जाए.
परिवहन को दुरुस्त किया जाए
जीवाश्म ईंधन से चलने वाले निजी वाहनों की बढ़ती संख्या, परिवहन क्षेत्र में प्रदूषण उत्सर्जन लोड को कम करने के लिए किए गए पिछले प्रयासों से मिले लाभ को नगण्य बना रही है. सरकार को एक व्यापक परिवहन रणनीति पर काम करना होगा. सार्वजनिक परिवहन और गैर-मोटर चालित परिवहन के बुनियादी ढांचे का विकास किया जाना चाहिए.
भविष्य में सरकार जो भी नए वाहन सड़क पर लाए, वे इलेक्ट्रिक वाहन होने चाहिए ताकि गाड़ियों के धुंए से होने वाला उत्सर्जन शून्य हो सके. हमने यूरो-6 तकनीक लागू की है. अब अगला बदलाव पूरी तरह से इलेक्ट्रिक इंजन में होना चाहिए. दिल्ली में बसों की संख्या वर्तमान में 8 हजार से बढ़ाकर कम से कम 25 हजार की जानी चाहिए. बस और मेट्रो का एकीकरण एवं आखिरी छोर तक कनेक्टिविटी के लिए ज़रूरी है.
लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग तभी करेंगे जब सुरक्षित और सुविधाजनक बुनियादी ढांचा उपलब्ध होगा. जनता को आखिरी पड़ाव तक कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए मोहल्ला स्तर तक बस सेवा बढ़ाई जानी चाहिए.
सड़क के इस्तेमाल को तर्कसंगत बनाया जाना चाहिए. पैदल चलने और साइकिल चलाने के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए. सरकार यह सुनिश्चित करे कि फुटपाथ पर अतिक्रमण, अनधिकृत खोमचे, फूड वैन और पार्किंग न हो. खराब रखरखाव वाली सड़कों से होने वाली धूल और गड्ढे पीएम 10 के स्तर को बढ़ाने में प्रमुख योगदान देते हैं, इन्हें कम किया जाना चाहिए.
उद्योग जगत में कमियों को दूर किया जाए
उद्योगों ने अब कोयले की जगह प्राकृतिक गैस का उपयोग करना शुरू कर दिया है. लेकिन आस-पास के क्षेत्रों में कई इकाइयों ने अभी भी स्वच्छ ईंधन का उपयोग शुरू नहीं किया है. सरकार को दिल्ली की बिजली आपूर्ति में वास्तविक रिन्यूएबल ऊर्जा हिस्सेदारी की बारीकी से निगरानी करनी चाहिए. उसे प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि अनुबंधित क्षमता से आगे बढ़कर असली असर लाया जा सके.
इसके अलावा दिल्ली को स्वच्छ ऊर्जा की तरफ रुख करना चाहिए. 2028 तक अपनी वार्षिक बिजली मांग का कम से कम 50 प्रतिशत रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों से पूरा करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करके देशभर में उदाहरण पेश करना चाहिए. अभी यह लक्ष्य 2025 तक 25 फीसदी साफ ऊर्जा स्रोतों का ही है.
सरकार को सर्दियों के दौरान एनसीआर में कोयला आधारित संयंत्रों से बिजली खरीद को कम से कम करना चाहिए. फ्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (एफजीडी) सिस्टम इस्तेमाल न करने वाले संयंत्रों से कोई खरीद न हो, ऐसा सुनिश्चित करना चाहिए.
कचरा प्रबंधन
दिल्ली में कचरे के बड़े अंबार हैं. यहां प्रतिदिन लगभग 11,000 टन ठोस कचरा पैदा होता है. शहर को ठोस कचरे को अलग करने और उसके प्रबंधन के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है.
गीले कचरे का उपयोग खाद बनाने के लिए किया जाना चाहिए. सूखे कचरे को स्रोत पर ही कम से कम किया जाए. साथ ही उसे रीसायकल किया जाना चाहिए, ताकि कचरा उत्पादन की मात्रा कम हो. साथ ही कचरे से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्रों आदि के आगे विस्तार की ज़रूरत ही खत्म हो जाए. कचरे को उसके स्रोत पर ही अलग करने से लैंडफिल पर पहुंचने वाला कुल कचरा कम होगा.
सरकार को स्वच्छता और कचरा प्रबंधन सेवाओं में 50 हजार कर्मचारियों की कमी को पूरा करना चाहिए. लोगों को स्रोत पर कचरे को कम करने, पुनः उपयोग करने और रीसायकल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. स्वयंसेवी संगठनों और गैर सरकारी संगठनों का सहयोग इस मामले में मदद कर सकता है. इन लैंडफिल में जमा कचरे को भी समयबद्ध योजनाबद्ध तरीके से हटाया जाना चाहिए.
निर्माण कार्यों पर नियंत्रण
राजधानी में धूल और वायु प्रदूषण केवल भवन निर्माण के कारण ही नहीं, बल्कि बुनियादी ढांचे के निर्माण (जैसे सड़क, पुल, मेट्रो आदि) के कारण भी बढ़ रहा है. निर्धारित कानूनों और दिशा-निर्देशों को जमीनी स्तर तक लागू करके इस पर नियंत्रण किया जाना चाहिए. यह सुनिश्चित करने के लिए अधिक मानक निर्धारित किए जाने चाहिएं कि कार्यान्वयन सख्त हो तथा इन परियोजनाओं से उत्पन्न कचरे को निर्माण गतिविधियों के लिए रीसायकल किया जाए.
स्वच्छ हीटिंग और खाना पकाना
कचरा जलाने पर कठोर जुर्माना होना चाहिए, लेकिन सर्द रातों के लिए बेघर लोगों को गैर-प्रदूषणकारी ताप (हीटिंग) विकल्प मुहैया कराए जाएं. गरीब और प्रवासी खाना पकाने और ताप के लिए लकड़ी, कोयला या गोबर जलाने के लिए मजबूर होते हैं. इन लोगों को किफायती स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा
गरीबों, बुजुर्गों और बच्चों के लिए दिल्ली भर में प्रदूषण स्वास्थ्य क्लीनिक स्थापित किए जाएं. प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से ज़्यादा जोखिम में जनसमूहों के लिए नियमित जांच की सुविधा प्रदान की जाए. स्वास्थ्य कर्मियों को दमा, ब्रोंकाइटिस (फेफड़ों का रोग) और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों सहित प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के निदान और उपचार के लिए ट्रेनिंग देकर तैयार करना चाहिए.
फंडिंग बढ़ाई जाए, और उसे खर्च करें
सरकार को जहरीली हवा को साफ करने के लिए एक खास बजट निर्धारित करने की जरूरत है.
केंद्र सरकार ‘प्रदूषण नियंत्रण’ योजना को फंड देती है. इसके उप-घटक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी जैसे कार्यक्रम हैं. लेकिन दिल्ली, केंद्र से मिलने वाले पैसे को खर्च करने में पीछे रह जाती है.
इसके अलावा राज्य सरकार के पास भी वायु प्रदूषण पर एक खास बजट का अभाव है. राज्य के प्रदूषण उपायों को पर्यावरण और वन क्षेत्रों के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है. फंडिंग को बढ़ाने और इसे पूरी तरह से खर्च करने की आवश्यकता है.
समाज की मदद लें
सरकार को वायु प्रदूषण को रोकने के लिए मीडिया (अखबारों के विज्ञापन, रेडियो एफएम, टीवी और सोशल मीडिया हैंडल्स) की मदद से जागरूकता फैलानी चाहिए.
दिल्ली के पार्षदों और विधायकों के लिए एक दिशा-निर्देश बनाया जाए ताकि वे लोगों को बताएं कि कचरा जलाने और पटाखे जलाने से प्रदूषण कैसे बढ़ता है. त्योहारों के दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण मुक्त कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
[यह घोषणापत्र न्यूज़लॉन्ड्री टीम द्वारा #हवा_का_हक़ मुहिम के लिए गठित एक विशेषज्ञ पैनल के सुझावों के आधार पर लिखा गया है. हम सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की अनुमिता रॉय चौधरी को भी उनके व्यावहारिक सुझावों के लिए धन्यवाद देते हैं.]
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित घोषणा पत्र को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
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एक मीडिया संस्थान होने के बावजूद इस मुहिम की जरूरत क्यों पड़ी, जानने के लिए अभिनंदन सेखरी का यह लेख पढ़िए.
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