साल 2019 विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनकर निकले दुष्यंत चौटाला की राह इस चुनाव में कांटों भरी नजर आ रही है. प्रदेश की जिम्मेदारी होने के बावजूद इन दिनों वे अपनी ही विधानसभा, उचाना कलां में बैठकें कर रहे हैं. दुष्यंत, जहां एक तरफ पार्टी दफ्तर में अलग-अलग गांवों से कार्यकर्ताओं को बुलाकर बैठकें कर रहे हैं. वहीं, गठबंधन के साथी चंद्रशेखर आजाद को गांवों में लेकर जा रहे हैं. दुष्यंत का इस चुनाव में कितना जोर है, यह जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम उचाना कलां गांव पहुंची.
शहर में पहुंचते ही हमारी मुलाकात रामवीर नाम के एक शख्स से हुई. जो यहां के एक प्राइवेट दफ्तर में काम करते हैं. 2019 विधानसभा चुनाव में इन्होंने दुष्यंत को वोट किया था. ये करसिंधू गांव के रहने वाले हैं.
रामवीर कहते हैं, ‘‘यहां से 2019 विधानसभा चुनाव में चौटाला को 2700 वोटों की लीड मिली थी. 2024 लोकसभा चुनाव में दुष्यंत की मां नैना चौटाला हिसार से चुनावी मैदान में थीं, तब उन्हें महज 216 वोट इस गांव से मिले थे. इस बार इससे भी कम वोट दुष्यंत को मिलेंगे.’’
ऐसा ही एक दूसरा गांव है, छात्तर. यहां तक़रीबन 9 हज़ार रजिस्टर्ड वोटर हैं. 2019 विधानसभा चुनाव के समय दुष्यंत चौटाला को यहां 3200 वोटों से बढ़त मिली थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में उनकी मां को यहां से सिर्फ 120 वोट मिले. यहां के रहने वाले संदीप कहते हैं, ‘‘इस बार दुष्यंत को उनकी मां से भी कम वोट मिलेंगे.’’
इस गांव में दलित समुदाय के एक हज़ार से ज्यादा वोट हैं. 2019 में इसमें से 600 वोट दुष्यंत को मिले थे. इस बार जेजेपी का गठबंधन चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी से है. यहां के युवा आज़ाद की रैलियों में तो जा रहे हैं लेकिन लग नहीं रहा कि जेजेपी और एएसपी के गठबंधन को वोट करेंगे. युवा इसके पीछे की वजह 2021 में यहां दबंग समुदाय द्वारा दलितों का किया गया बहिष्कार बताते हैं. उनका दावा है कि तब दुष्यंत ने हमारा साथ नहीं दिया था.
हालांकि, दुष्यंत चौटाला अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आते हैं. उन्हें लगता है कि उनके कार्यकर्ता चुनाव का माहौल बदल देंगे.
अगर उचाना हलके की बात करें तो यहां मुख्यरूप से लोकदल और छोटूराम परिवार की पकड़ रही है. अब तक हुए 11 चुनावों में 5 बार छोटूराम परिवार के बीरेंद्र सिंह, कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर यहां से विधायक रह चुके हैं.
2014 में उनकी पत्नी प्रेमलता सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर यहां से जीत दर्ज की. इस बार बीरेंद्र के बेटे बृजेन्द्र सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 2019 में वह हिसार से भाजपा की टिकट पर सासंद चुने गए थे. वहीं, चार बार चौटाला परिवार के राजनीतिक दल के उम्मीदवार यहां से चुनाव जीते हैं. 2009 में ओमप्रकाश चौटाला यहां से चुनाव जीते थे.
हलके में कुल 2 लाख 15 हज़ार वोटर हैं. जिसमें से 115164 पुरुष 99225 महिलाएं हैं. अगर जातिगत वोटरों की बात करें तो सबसे ज़्यादा जाट समुदाय के वोटर हैं. तक़रीबन एक लाख सात हज़ार, 27000 ब्राह्मण समुदाय के, दलित समुदाय के 25000 हजार के करीब वोटर हैं. बाकी बचे मतदाता अन्य समुदायों के हैं.
इस बार यहां बीजेपी ने ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखने वाले देवेंद्र अत्री को उम्मीदवार बनाया है. अत्री पहले जेजेपी में ही थे. वहीं, जेजेपी से दुष्यंत चौटाला, कांग्रेस से बृजेन्द्र सिंह मैदान में हैं. इसके अलावा यहां से निर्दलीय के तौर पर वीरेंद्र घोघड़ियां और विकास काला की भी खूब चर्चा है. दोनों ही जाट समुदाय से आते हैं. घोघड़ियां, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी माने जाते हैं और कांग्रेस में टिकट के दावेदार थे.
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