एक सत्र में 146 सांसदों को निलंबित कर भारतीय इतिहास में एक नया रिकॉर्ड बना. इससे पहले साल 1989 में राजीव गांधी सरकार में 63 सांसदों को निलंबित किया गया था.
इस बार निलंबन का सिलसिला 13 दिसंबर के घटनाक्रम के बाद शुरू हुआ जब लोकसभा में दो युवक घुस आए. उन्होंने वहां हंगामा किया और कथित स्मोक कैन से धुआं उड़ाया. उनके दो साथी बाहर बेरोजगारी समेत अन्य मुद्दों पर प्रदर्शन कर रहे थे. सांसदों और पुलिस के सहयोग से इन्हें पकड़ लिया गया.
संसद के भीतर ये लोग मैसूर से भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा के पास पर दर्शक बनकर आए थे.
अभी तक प्रताप सिम्हा से पूछताछ की कोई जानकारी नहीं है, और ना ही गृहमंत्री अमित शाह का इस पर बयान आया है. लेकिन इसी बीच सुरक्षा में हुई चूक पर सवाल उठा रहे 146 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है. इस दौरान, ऐसे सांसदों को भी सस्पेंड किया गया जो उस दिन सदन में नहीं थे
सांसदों को सस्पेंड करने में नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से काफी आगे है.
सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक, 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जहां लोकसभा से 36 वहीं राज्यसभा से सात सांसदों को सस्पेंड किया गया. यानी कुल 43 सांसदों को सस्पेंड किया गया. वहीं मोदी सरकार 2014 से सत्ता में आने के बाद से 22 दिसंबर 2023 तक लोकसभा से 193 तो राज्यसभा से 94 सांसद निलंबित हुए. यानी कुल 287. कांग्रेस सरकार से पांच गुना ज्यादा.
गुजरात के रहने वाले संजय इजावा को आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, 2004 से 2014 के बीच जिन 43 सांसदों को संस्पेंड किया गया उसमें से एक भी भाजपा का नहीं है जबकि तब भाजपा विपक्ष में थी.
सांसदों को किन नियमों के तहत सस्पेंड किया जाता है? आखिर क्यों इतनी संख्या में सांसदों को निलंबित किया जा रहा है? पहले इतनी बड़ी संख्या में सांसद निलंबित क्यों नहीं होते थे? आखिर क्या बदल रहा है? लोकतंत्र पर इसका क्या असर होगा? इन तमाम सवालों का जवाब तलाशती हमारे ये वीडियो रिपोर्ट देखिए.
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